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निरसा विधानसभा: भाजपा ने पिछली हार की पूरी की कसर, लालगढ़ में पहली बार लहराया भगवा परचम

निरसा-चिरकुंडा: लाल गढ़ के नाम से जाना जाने वाले निरसा विधानसभा सीट से पहली बार भाजपा का भगवा झंडा फहरा है. बेशक इसमें एक कारण पीएम मोदी के प्रति लोगों का रुझान रहा. अब तक यहां यह होता रहा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को अधिक और विधानसभा चुनाव में मासस को अधिक मिलते थे. […]

निरसा-चिरकुंडा: लाल गढ़ के नाम से जाना जाने वाले निरसा विधानसभा सीट से पहली बार भाजपा का भगवा झंडा फहरा है. बेशक इसमें एक कारण पीएम मोदी के प्रति लोगों का रुझान रहा. अब तक यहां यह होता रहा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को अधिक और विधानसभा चुनाव में मासस को अधिक मिलते थे. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. इस क्षेत्र में रघुवर सरकार के प्रति नाराजगी थोड़ी बहुत रही भी तो केंद्र में मोदी सरकार के प्रति लोगों का झुकाव रहा. यही कारण है कि इस बार शहर के साथ-साथ गांवों से भी भाजपा को काफी वोट मिले.

मासस प्रत्याशी अरूप चटर्जी की लगातार हो रही जीत से लोगों में भी थी. एन्टी इनकंबैंसी (सत्ता विरोधी लहर) का लाभ भाजपा प्रत्याशी को मिला. साथ ही, अल्पसंख्यक मतों का बिखराव भी भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. भाजपा पिछले कुछ दिनों से जो बूथ मैनेजमेंट पर फोकस दे रही थी. भाजपा द्वारा अपर्णा सेनगुप्ता को पार्टी का प्रत्याशी बनाया जाना फायदेमंद रहा. भाजपा वोट के साथ-साथ श्रीमती सेनगुप्ता का जो निजी वोट था, उसे समेटने में वह सफल रही. हालांकि पिछले दो चुनाव से भाजपा यहां दूसरे स्थान पर थी. वर्ष 2014 में भाजपा ने प्रदेश प्रशिक्षण प्रमुख गणेश मिश्रा को प्रत्याशी बनाया था. गणेश मिश्रा भी 2014 के चुनाव में जीतते-जीतते हार गए.

उन्होंने ऐतिहासिक 50 हजार से अधिक मत लाया. मात्र 1053 मत से भाजपा की हार हुई. इसके पूर्व वर्ष 2009 के चुनाव में भी भाजपा प्रत्याशी अशोक मंडल दूसरे स्थान पर थे. लगातार दो बार से भाजपा दूसरे स्थान पर रहने के बाद तीसरी बार भाजपा को सफलता हाथ लगी. इसके पीछे यह भी कारण रहा कि मासस महागबंधन का हिस्सा नहीं बन पायी. इस कारण अल्पसंख्यक मतों का बिखराव हुआ. मासस से अधिक झामुमो की ओर अल्पसंख्यकों का रुझान था. इससे भी जो नयी बात मासस की हार का एक कारण रहा, वह था भितरघात. मासस के कई दिग्गज कार्यकर्ताओं ने परोक्ष रूप में झामुमो को फायदा पहुंचाया. सनद रहे कि वर्ष 1985 को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस पार्टी इसके बाद कभी भी निरसा सीट पर वापसी नहीं कर पायी. पूरे धनबाद के साथ-साथ झारखंड में निरसा लाल दुर्ग के नाम से जाना जाता है. 1967 से लेकर वर्ष 2014 तक निरसा में केवल लाल झंडा का ही सत्ता रहा है. केवल एक टर्म 1985 में इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कृपाशंकर चटर्जी ने जीत हासिल की थी.

लालगढ़ में पहली बार लहराया भगवा परचम
निरसा विधानसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी की अपर्णा सेनगुप्ता ने मासस प्रत्याशी अरूप चटर्जी को 25458 मतों से पराजित किया. अपर्णा सेनगुप्ता को कुल 89082 मत मिले. 63624 मतों के साथ अरूप चटर्जी दूसरे स्थान पर रहे, जबकि 47168 मत लाकर झामुमो के अशोक कुमार मंडल तीसरे स्थान पर रहे. दूसरे राउंड से अपर्णा सेनगुप्ता ने जो बढ़त बनानी शुरू की जो पीछे मुड़ कर नहीं देखी. हर राउंड में आंकड़ा बढ़ता गया. यहीं कारण रहा कि जीत का अंतर 25458 पर पहुंच गया. जिले के छह विधानसभा सीटोंं में सबसे अधिक अंतर से भाजपा को धनबाद के बाद निरसा विधानसभा क्षेत्र में जीत मिली.

आठ में पांच प्रत्याशियों को नोटा से भी कम मत मिले

निरसा से आठ प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे. इसमें से पांच प्रत्याशियों का नोटा से भी कम वोट मिले हैं. इस बार नोटा पर 3800 वोट पड़े हैं. उमेश गोस्वामी 1087, बामापद बाउरी को 1533, बंपी चक्रवर्ती को 2007, अवधेश कुमार दास को 1603 व भागवत महतो को 1159 वोट मिले हैं. इन सभी की जमानत जब्त हो गयी है.

2005 में भी हराया था अरूप को, पति ने गुरुदास को दी थी जबरदस्त टक्कर
अपर्णा का निरसा के पोद्दारडीह निवासी सुब्रत सेनगुप्ता ( सुशांतो) के साथ 31 दिसंबर 1989 को इनका विवाह हुआ था. शादी के बाद से ही अपर्णा अपने पति के साथ सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थी. वर्ष 2000 में सुशांतो सेनगुप्ता पहली बार फारवर्ड ब्लॉक के टिकट पर चुनाव लड़ा. उसमें उन्होंने तत्कालीन विधायक गुरुदास चटर्जी को कड़ी टक्कर दी थी. पांच अक्तूबर 2002 को सुशांतो की हत्या कर दी गयी. इसके बाद अपर्णा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. इसके बाद 2005 में हुए चुनाव में अपर्णा ने सहानुभूति लहर में करीब 2400 वोट से अरूप चटर्जी को पराजित कर दिया. अपर्णा पहले टर्म में विधायक बनने के साथ साथ मंत्री बनी. इसके बाद 2009 व 14 में फाब्ला के टिकट पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा. उसके बाद 2015 में ही वह भाजपा में शामिल हो गयी. पार्टी ने उन्हें टिकट दिया और जबरदस्त वापसी की.

क्या कहते हैं प्रत्याशी

15 साल से इस समय का इंतजार था. जनता के समर्थन मिलने से इंतजार खत्म हुआ है. जनता के विश्वास को पूरा करना ही प्राथमिकता होगी.
अपर्णा सेनगुप्ता

जनका का फैसला मंजूर है, हार किन कारणों से हुई, इसकी समीक्षा की जायेगी. गलतियों को दूर कर मजबूती के साथ जनता के बीच रहेंगे.
अरूप चटर्जी

झलकियां
सुबह छह बजे से ही कैंप में कार्यकर्ताओं का होने लगा था जुटान, लोग पहला रुझान आने का इंतजार करने लगे.

रुझान नहीं आने पर कार्यकर्ता मतगणना केंद्र की गतिविधि जानने में जुट गये.

अचानक से सातवें राउंड की घोषणा हुई. माइक से निरसा विधानसभा की आवाज आते ही खामोशी छा गयी

पहले राउंड में 2433 मतों से अशोक कुमार मंडल ने बढ़ाई थी बढ़त

दूसरे राउंड में अपर्णा ने बढ़ायी बढ़त, फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखी

9, 13 व 19वें राउंड में अरूप चटर्जी को अपर्णा से मिली बढ़त

शाम 5 बजे तक अरूप चटर्जी समर्थक कैंप छोड़ कर जाने लगे थे.

अपर्णा की जीत पर भाजपा के कार्यकर्ता जश्न में डूब गये. लोगों ने एक-दूसरे को बधाई दी.

भाजपा समर्थकों ने पटाखे छोड़े. जयकारे लगाये गये

अब तक के विधायक

1952 राम नारायण शर्मा : कांग्रेस

1957 लक्ष्मी नारायण मांझी : कांग्रेस

1962 रामनारायण शर्मा : कांग्रेस

1967 निर्मलेन्दु भट्टाचार्य : सीपीआइ

1969 निर्मलेन्दु भट्टाचार्य : सीपीआइ

1977 कृपाशंकर चटर्जी : मासस

1980 कृपाशंकर चटर्जी : मासस

1985 कृपाशंकर चटर्जी : कांग्रेस

1990 गुरुदास चटर्जी : मासस

1995 गुरुदास चटर्जी : मासस

2000 गुरुदास चटर्जी : मासस

2000 (उपचुनाव) अरूप चटर्जी : मासस

2005 अपर्णा सेनगुप्ता : फॉरवर्ड ब्लॉक

2009 अरूप चटर्जी : मासस

2014 अरूप चटर्जी : मासस

2019 अपर्णा सेनगुप्ता : भाजपा

भाजपा की जीत के तीन कारण

वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में महज 1035 वोट से भाजपा का निरसा विधानसभा क्षेत्र से पीछे रहना

निरसा में संगठन की एकजुटता. गणेश मिश्रा, अनीता गोराईं, प्रशांत बनर्जी का दूसरे किसी दल से चुनाव न लड़ना

अपर्णा द्वारा अपने विधायिकी काल में कई काम जैसे बारबेंदिया पुल का शुरू कराना, पांड्रा रेफरल अस्पताल बनाना

मासस की हार के तीन कारण

निरसा में महागठबंधन प्रत्याशी के रूप में झामुमो नेता अशोक मंडल को मैदान में उतारा जाना.

मासस से पुराने कार्यकर्ताओं का धीरे-धीरे निष्क्रिय होना. केवल चिह्नित व्यक्तियों द्वारा ही पार्टी को चलाना

कई कार्यकर्ताओं द्वारा भितरघात किया जाना. लगातार जीत के कारण कैडरों की मनमानी बढ़ना

त्रिकोणीय संघर्ष के कारण भाजपा की राह हुई आसान

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