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धनबाद : आइएसएम की तकनीक से बनेगी हिमालय पर सड़क
अशोक कुमार धनबाद : आइआइटी आइएसएम के माइनिंग डिपार्टमेंट ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसकी मदद से हिमालय की दुर्गम और ऊंची बर्फीली चोटियों पर भी बेहद आसानी से सड़कों का निर्माण हो सकेगा. यह निर्माण कार्य कंट्रोल ब्लास्टिंग की तकनीक पर आधारित होगा. आइआइटी के विशेषज्ञ सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के इंजीनियरों […]
अशोक कुमार
धनबाद : आइआइटी आइएसएम के माइनिंग डिपार्टमेंट ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसकी मदद से हिमालय की दुर्गम और ऊंची बर्फीली चोटियों पर भी बेहद आसानी से सड़कों का निर्माण हो सकेगा.
यह निर्माण कार्य कंट्रोल ब्लास्टिंग की तकनीक पर आधारित होगा. आइआइटी के विशेषज्ञ सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के इंजीनियरों को नयी तकनीक का प्रशिक्षण दे रहे हैं. इसकी मदद से बीआरओ उत्तराखंड के जोशीमठ क्षेत्र में हिमालय की ऊंचाइयों पर सड़क निर्माण कर सकेगा. राष्ट्रीय महत्व की कंट्रोल ब्लास्टिंग तकनीक को माइनिंग इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर (डॉ) एके मिश्रा ने विकसित किया है. हिमालय अपने देश की सीमा पर है. अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए यह जरूरी है कि वहां तक सेना आसानी से आ-जा सके. आवागमन के लिए सड़कों का होना काफी महत्वपूर्ण है.
अभी हिमालय क्षेत्र में सड़कों का निर्माण काफी खर्चीला, समय लेने वाला है. यह तकनीक बीआरओ को काफी मदद करेगी. इसे अब तक का सबसे बेहतर और अधिक सुरक्षित टेक्नोलॉजी बताया जा रहा है. आइआइटी आइएसएम के विशेषज्ञों की मानें तो ब्लास्टिंग का खर्च पहले की तुलना में एक तिहाई कम आयेगा तथा खनन एवं पहाड़ों पर सड़क निर्माण की प्रक्रिया को एक नया आयाम मिल सकेगा. सघन पहाड़ी इलाकों के लोगों को भी काफी फायदा होगा.
समय के साथ पैसे की होगी बचत : आइआइटी आइएसएम की नयी ब्लास्टिंग तकनीक से पर्यावरण को अधिक नुकसान नहीं पहुंचेगा. विशेषज्ञों की मानें, तो बर्फीली चोटियों पर उसी हिस्से को विस्फोट से उड़ाया जायेगा, जहां इसकी आवश्यकता होगी.
इससे पहाड़ों को कम नुकसान होगा, पर्यावरण पर भी इसका खास असर नहीं होगा. पुरानी तकनीक में ब्लास्टिंग से आसपास के क्षेत्र को काफी नुकसान पहुंचता था. पहले एक जगह का अवरोध हटाने के लिए तीन-चार बार ब्लास्ट करना पड़ता था. आइआइटी आइएसएम की तकनीक में सिर्फ एक बार के ब्लास्ट में ही लक्ष्य आधारित अवरोध हटाया जा सकेगा. कहा जाये तो कम ब्लास्टिंग कर अधिक तेजी से खनन कार्य तथा सड़क का निर्माण किया जा सकेगा.
नॉर्दर्न कोलफील्ड्स में सफल रहा है प्रयोग
आइआइटी आइएसएम की यह तकनीक सबसे पहले नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड में प्रयोग किया गया, जो काफी सफल रहा. एनसीएल की निगाही, सिंगरौली और खड़िया माइंस में इस तकनीक का प्रयोग किया गया था. यहां इस्तेमाल के दौरान पैदा हुई त्रुटियों को बाद के दिनों में दूर किया गया. तकनीक में थोड़ा बदलाव कर अब इसे पहाड़ों पर होने वाले सड़क निर्माण कार्य के उपयुक्त बना दिया गया है.
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