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बिना निबंधन के ही चल रहे निजी विद्यालय

उदासीनता. नियमों को ताक पर रख कर हो रहा संचालन, विभाग नहीं कर रहा कार्रवाई 30 अक्तूबर तक बीइओ को देनी थी जांच रिपोर्ट अब तक जांच का काम नहीं हो सका है पूरा सुपौल : सरकार व विभाग के निर्देश के आलोक में जिले भर के निजी विद्यालयों की शैक्षणिक व्यवस्था में अपेक्षित सुधार […]

उदासीनता. नियमों को ताक पर रख कर हो रहा संचालन, विभाग नहीं कर रहा कार्रवाई

30 अक्तूबर तक बीइओ को देनी थी जांच रिपोर्ट
अब तक जांच का काम नहीं हो सका है पूरा
सुपौल : सरकार व विभाग के निर्देश के आलोक में जिले भर के निजी विद्यालयों की शैक्षणिक व्यवस्था में अपेक्षित सुधार लाने के लिए विशेष पहल की जा रही है, लेकिन अधिकांश प्रखंड स्तरीय शिक्षा अधिकारी द्वारा इस दिशा में शिथिलता बरती जा रही है. इस कारण निजी विद्यालयों के संचालकों की मनमानी चरम पर है. मालूम हो कि जिले के किसनपुर प्रखंड क्षेत्र में अवैध रूप से 70 से अधिक प्राइवेट विद्यालय संचालित हैं. निजी विद्यालयों के संचालकों द्वारा नियम को ताक रख काम किये जाने से नामांकित छोटे-छोटे बच्चे पूरी तरह असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. हालांकि ऐसा नहीं है कि इस बात की जानकारी स्थानीय शिक्षा कार्यालय को नहीं है.
इसके बावजूद विभाग जांच कर कार्रवाई करने में असमर्थ दिख रहा है. मालूम हो कि सरकारी आदेशानुसार विद्यालय संचालकों को 30 अक्तूबर तक बीइओ को जांच रिपोर्ट देनी थी, लेकिन अब तक प्राइवेट विद्यालयों की जांच का काम पूरा नहीं हो सका है. इधर निजी विद्यालय के संचालक अभिभावकों को तरह-तरह की पढ़ाई की सुविधा बता कर शोषण व दोहन कर रहे हैं. अंग्रेजी माध्यम के नाम पर अभिभावकों से ऊंची फीस वसूली जा रही है.
यू-डायस कोड के सहारे संचालित हैं विद्यालय: मालूम हो कि प्रखंड क्षेत्र में संचालित मां भारती पब्लिक स्कूल श्रीपुर-सुखासन, न्यू प्रभा सिंगिआवन, ग्रीन बेली पब्लिक स्कूल कजही, सर्वोदय विद्यालय, सुधा कांवेंट, संत कारू महीपट्टी, आस्था पब्लिक स्कूल अंदौली, ज्ञान-गणेश स्कूल, सन लाइट स्कूल, पाटलिपुत्रा स्कूल, ज्ञान गंगा स्कूल जैसे 70 निजी विद्यालय यू डायस कोड के सहारे संचालित हो रहे हैं. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सिर्फ डायस कोड निकाल कर बिना रजिस्ट्रेशन से विद्यालय चलाया जा रहा है.
कई विद्यालय ऐसे हैं जहां भवन निर्माण कार्य पूर्ण भी नहीं कराया गया है. विद्यालय के संचालक द्वारा टीचर्स ट्रेनिंग के नाम पर राशि की उगाही कर शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है. कई विद्यालयों में शिक्षकों की उपस्थिति पंजी तक भी उपलब्ध नहीं है. छात्र के नाम पर फर्जी छात्रों का नामांकन कर कोरम पूरा किया जा रहा है. आरटीइ के तहत एक भी बच्चे का नि:शुल्क नामांकन नहीं लिया जाता है. प्राइवेट विद्यालय खोलने के लिए कम से कम चार कट्ठा जमीन चाहिये. इधर कई विद्यालय भाड़े के रूम में संचालित किये जा रहे हैं. कई ऐसे विद्यालय भी हैं जहां दो सौ बच्चों का नामांकन है, जबकि नियमानुसार 30 बच्चे पर एक शिक्षक होने चाहिये. अधिकांश विद्यालय में बीएड डिग्रीधारी शिक्षक नहीं हैं और न ही कोई शिक्षक ट्रेंड हैं. सरकारी स्तर पर अगर फर्जी विद्यालय पर नकेल नहीं कसी गयी तो एक दिन सरकारी विद्यालय छात्र विहीन हो जायेंगे.
अभिभावकों का दर्द: निजी विद्यालयों की व्यवस्था के बाबत पंकज कुमार, आलोक प्रसाद, हरिहर कामत सहित अन्य अभिभावकों ने बताया कि संस्कारित जीवन जीने के लिए शिक्षा का विशेष महत्व रहा है. वहीं शिक्षा का व्यवसायीकरण होने तथा सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर खराब रहने के कारण अभिभावक अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से उनका नामांकन निजी विद्यालयों में करा रहे हैं. अभिभावकों ने यह भी बताया कि समाज में शिक्षा के प्रति अधिक से अधिक जागरूकता फैलने के कारण धड़ल्ले से नये-नये निजी शिक्षण संस्थानों का संचालन किया जा रहा है. इसके साथ ही संचालकों द्वारा सरकारी नियम के प्रतिकूल काम को अंजाम दिया जा रहा है. यहां तक कि अभिभावकों को बच्चों के बेहतर भविष्य का सपना दिखा कर अधिक से अधिक मुनाफा कमाने का निरंतर प्रयास जारी है. बताया कि विद्यालय संचालकों द्वारा बच्चों को कॉपी, किताब, पेंसिल सहित अन्य स्टेशनरी सामग्री भी मुहैया करायी जाती है. और इन सामग्री पर भी बाजार मूल्य से अधिक राशि वसूली जाती है. मामले में स्थानीय शिक्षा पदाधिकारी द्वारा किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जा रही है. इस कारण निजी विद्यालय के संचालकों का हौसला बढ़ा हुआ है.

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