सुपौल : जिले के नर्सिंग होम, अस्पताल, क्लिनिक, पैथोलॉजी लैब को कानून के दायरे में लाने के लिए सरकार ने नर्सिंग होम एक्ट बनाया. स्वास्थ्य विभाग के पास एक्ट का पालन करवाने का जिम्मा है. लेकिन इस मामले में स्वास्थ्य विभाग निश्चिंत है. इधर, जिनको नर्सिंग होम एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन कराना है वह भी मौन है. जानकार बताते हैं कि पर्दे के अंदर की सच्चाई के कारण एक्ट का उल्लंघन होने पर भी पैथोलॉजी जांच केंद्र पर कार्रवाई नहीं हो पा रही है.
जिले में पैथोलॉजी सेंटरों की भरमार है. बता दें कि ज्यादातर पैथोलॉजी सेंटर पर बिना टेक्निशियन के जांच की जाती है. पैथोलॉजी सेंटर की आड़ में जांच के नाम पर मरीजों से पैसा वसूलने का खेल स्वास्थ्य महकमे की चुप्पी के कारण फलफूल रहा है. कुल मिलाकर, जिले के मरीजों की जिंदगी पूरी तरह भगवान के रहमो-करम पर निर्भर है. एक तरफ जिले की उम्मीद सदर अस्पताल का हाल बेहाल है, तो दूसरी तरफ झोला छाप डॉक्टरों की वजह से मरीजों की जान सांसत में है.
ना केवल डॉक्टर बल्कि पैथोलॉजी और अल्ट्रासाउंड तक के मामले में भी पूरे जिले में फर्जीवाड़ा चल रहा है. आलीशान बिल्डिंग से लेकर झुग्गी झोपड़ी तक में डॉक्टरों और नर्सिंग होम के बोर्ड लगे हुए हैं जहां मरीजों का शोषण जारी है. हैरानी की बात यह है कि इस फर्जीवाड़े से विभागीय अधिकारी भी वाकिफ है, लेकिन सबों ने एक दूसरे को मौन समर्थन दे
रखा है.
जिले में क्लिनिकल एक्ट की उड़ रही धज्जियां
राज्य सरकार ने नैदानिक स्थापन अधिनियम 2010 के तहत निजी अस्पताल, नर्सिंग होम, क्लिनिक और प्रयोगशाला के निबंधन के संबंध में दिशा निर्देश जारी कर रखे हैं. लेकिन जिले के सभी नर्सिंग होम और क्लिनिकों में इस अधिनियम की धज्जियां उड़ायी जा रही है. वर्ष 2014 में 20 जून को तत्कालीन सिविल सर्जन उमा शंकर मधुप ने स्वास्थ्य विभाग के अपर सचिव को पत्र लिख कर बताया था कि नैदानिक स्थापन 2010 के तहत जिले में एक भी निजी अस्पताल, नर्सिंग होम, क्लिनिक और प्रयोगशाला को निबंधन प्राप्त नहीं है. इतना ही नहीं निबंधन के लिये एक भी आदेवन प्राप्त नहीं हुआ है. वर्षों बाद भी इस स्थिति में कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा है. लिहाजा आज भी किसी नर्सिंग होम अथवा क्लिनिक ने निबंधन प्राप्त नहीं किया है. स्याह सच यह है कि क्लिनिक और नर्सिंग होम में सुविधाएं नगण्य है और यहां केवल मरीजों का शोषण होता है.
50 फीसदी चिकित्सकों के पास ही वैध डिग्री
जिला मुख्यालय से लेकर सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के इलाके में डॉक्टर के क्लिनिक और पैथोलॉजी की भरमार है. जानकार बताते हैं कि बहरहाल जितने भी डॉक्टर प्रैक्टिस कर रहे हैं, उसमें बमुश्किल 50 फीसदी चिकित्सकों के पास ही वैध डिग्री प्राप्त है. इसके अलावा अजब-गजब डिग्री भी बोर्ड पर लिखे होते हैं और विश्व विद्यालय या संस्था के भी नाम भी अजीबो-गरीब होते हैं. फर्जीवाड़ा का हाल यह है कि चिकित्सक भले ही पटना और दरभंगा में कार्यरत हो, लेकिन उनके नाम का बोर्ड यहां लगा रहता है. ऐसे क्लिनिकों व नर्सिंग होम में धड़ल्ले से ऑपरेशन भी किये जाते हैं. मिली जानकारी अनुसार कई जगह पर तो स्वर्गवासी हो चुके डॉक्टर के भी बोर्ड लगे हुए है. जिसकी आड़ में फर्जी चिकित्सकों का धंधा बेरोक-टोक जारी है.
अभी हमने योगदान किया ही है. इस मामले में आवेदन मिलने पर जांच की जायेगी. तत्पश्चात अवैध रूप से चल रहे पैथोलॉजी सेंटर पर कार्रवाई की जाएगी.
डॉ धनश्याम झा, सिविल सर्जन, सुपौल