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अमान परिवर्तन कार्य पूर्ण नहीं होने से लोगों को हो रही परेशानी
राघोपुर : क्षेत्र की दशा व दिशा बदलने में रेलमार्ग का अभूतपूर्व योगदान रहा है. वहीं सहरसा- फारबिसगंज रेलखंड पर ट्रेनों के परिचालन बंद होने से प्रखंड वासियों को आवाजाही में भारी परेशानी हो रही है. मालूम हो कि वर्ष 2008 की कुशहा त्रासदी के बाद रेलखंड को पहुंची क्षति के कारण फारबिसगंज से राघोपुर […]
राघोपुर : क्षेत्र की दशा व दिशा बदलने में रेलमार्ग का अभूतपूर्व योगदान रहा है. वहीं सहरसा- फारबिसगंज रेलखंड पर ट्रेनों के परिचालन बंद होने से प्रखंड वासियों को आवाजाही में भारी परेशानी हो रही है. मालूम हो कि वर्ष 2008 की कुशहा त्रासदी के बाद रेलखंड को पहुंची क्षति के कारण फारबिसगंज से राघोपुर रेलमार्ग पर अमान परिवर्तन किये जाने के कारण सरकार व रेल प्रबंधन द्वारा बजट का प्रावधान कराया गया. जहां आरंभिक दौर में कार्य में काफी गति भी दिख रही थी.
लेकिन संबंधित विभाग द्वारा समुचित तरीके से पर्यवेक्षण नहीं किये जाने के कारण अब तक अमान परिवर्तन का कार्य पूर्ण नहीं कराया जा सका है. साथ ही अब उक्त रेलखंड पर खर्च हुई सरकारी राशि लोगों के लिए बेकार साबित हो रहा है. गौरतलब है कि बड़ी रेल लाइन की सुविधा उपलब्ध नहीं होने के कारण जहां प्रखंड क्षेत्र के एक बड़ी आबादी को जिला मुख्यालय सहित अन्य प्रदेशों की यात्रा के लिए भारी परेशानी उठानी पड़ रही है. वहीं सरकार द्वारा लोगों की यातायात सुविधा के मद्देनजर वैकल्पिक व्यवस्था नहीं कराये जाने के कारण लोगों को आर्थिक दोहन का शिकार होना पड़ रहा है.
2003 में हुआ था शिलान्यास : तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 06 जून 2003 को कोसी महासेतु व आमान परिवर्तन कार्य का शिलान्यास किया गया. उस वक्त जिले के निर्मली अनुमंडल मुख्यालय में आयोजित समारोह लाखों की भीड़ उमड़ी थी़ लोग खुशी से उत्साहित थे़ उन्हें लगा था कि कुछ वर्षों बाद ही उन्हें बड़ी रेल लाइन पर दौड़ने वाली ट्रेनों की सुविधा उपलब्ध हो जायेगी़ वहीं परियोजना के पूर्ण होने से दशकों बाद कोसी व मिथिलांचल एक बार फिर से रेल मार्ग से जुड़ जायेगा़ शिलान्यास समारोह में रेल मंत्रालय द्वारा वर्ष 2009 तक कार्य को पूर्ण कर लेने की घोषणा की गयी थी़ लेकिन दुर्भाग्य है कि तत्कालीन सरकार के बाद भी केंद्र में कई सरकारें बनी़ लेकिन किसी ने भी इस महत्वाकांक्षी परियोजना को पूर्ण करने के प्रति रुचि नहीं दिखायी़
आंदोलन की धमकी
फारबिसगंज-राघोपुर-सहरसा रेल परिचालन अमान परिवर्तन के नाम पर लंबे समय से बंद रखने और यात्रियों को कोई विशेष सुविधा उपलब्ध नहीं कराने के खिलाफ पांच नवंबर को क्रांति कन्ज्युमर वेलफेयर के बैनर तले एक दिवसीय जन आक्रोश सभा का आयोजन राघोपुर रेलवे स्टेशन परिसर में किया जायेगा. जानकारी देते हुए दुर्गा प्रसाद चौधरी ने बताया कि जन आक्रोश सभा के माध्यम से सरकार और रेलवे के अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट कराया जायेगा. अगर समय रहते अमान परिवर्तन कार्य पूर्ण नहीं किया गया तो वेलफेयर के बैनर तले निर्णायक लड़ाई का शंखनाद किया जायेगा.
पांच वर्षों से लगा है मेगा ब्लॉक
कुसहा त्रासदी के करीब चार साल बीतने के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार की नींद खुली़. आमान परिवर्तन की चर्चा फिर से प्रारंभ हुई़ राघोपुर -फारबिसगंज के बीच रेल मंत्रालय द्वारा 20 जनवरी 2012 को आमान परिवर्तन के लिए मेगा ब्लॉक किया गया़. मायूस हो चुके लोगों में फिर से आशा बंधी कि इन स्टेशनों के बीच शीघ्र ही बड़ी रेल लाइन सेवा प्रारंभ हो जायेगी़ लेकिन विडंबना है कि पांच साल बीत जाने के बावजूद मामला जस का तस पड़ा है़ कुछेक जगहों पर छिट-फुट अमान परिवर्तन का कार्य कराया गया है़ लेकिन विभागीय सूत्रों की माने तो फंड के अभाव में कार्य अंजाम तक नहीं पहुंच सका है. वहीं राशि अभाव रहने के बावजूद 01 नवंबर 2015 से थरबिटिया व राघोपुर व 24 दिसंबर 2016 को सहरसा – थरबिटिया के बीच मेगा ब्लॉक ले लिया गया.
सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है रेलखंड
सहरसा-फारबिसगंज रेल खंड को सामरिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है़ सीमावर्ती जिला व नेपाल सीमा से सटे होने की वजह से इस क्षेत्र में रेल परिचालन सुरक्षा व सामरिक दृष्टि से अहम है़ इस बाबत स्थानीय सुरेश सिंह, स्मृति कुमारी, बिनोदानंद, बिलास प्रसाद यादव, अमित अग्रवाल, संतोष सर्राफ, भुवनेश्वर यादव, जगेश्वर यादव, धनिकलाल मंडल, उत्तिमलाल मंडल, बीरेंद्र साह, भोला साह, रामेश्वर साह, अनिल शर्मा, नंदलाल शर्मा, लालन शर्मा, सतीश राम, संतोष राम, मो नूर आलम, बीबी हजरत, मो असफाक, सीकेन्द्र आलम, प्रकाश यादव, हरिनारायण मुखिया, विजय झा, लक्ष्मीकांत झा आदि लोगों का कहना है कि चुनाव के समय जब जब आता है तो यहां के जनप्रतिनिधि लोगों से कार्य होने का वादा करते रहे हैं. लेकिन चुनाव जीतने के बाद सभी वादे भूल जाते हैं. कहा कि जब इस रेलखंड पर ट्रेन का परिचालन होता था तो छोटे गरीब तबके के लोग व्यवसाय कर जीवन यापन करते थे. लेकिन परिचालन बंद होने के बाद सभी लोग बेरोजगार हो चुके हैं.
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