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बीमार बढ़े, पर डॉक्टर हो गये कम

सुपौल : लोगों को बेहतर चिकित्सा देने के लिए सूबे की सरकार कई दूरगामी योजनाएं चला रही है. लेकिन अस्पताल में चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मियों के कारण यह योजना दम तोड़ रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह चिकित्सकों सहित स्वास्थ्य कर्मियों का भी अभाव माना जा रहा है. सदर अस्पताल से लेकर पीएचसी और एपीएचसी […]

सुपौल : लोगों को बेहतर चिकित्सा देने के लिए सूबे की सरकार कई दूरगामी योजनाएं चला रही है. लेकिन अस्पताल में चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मियों के कारण यह योजना दम तोड़ रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह चिकित्सकों सहित स्वास्थ्य कर्मियों का भी अभाव माना जा रहा है. सदर अस्पताल से लेकर पीएचसी और एपीएचसी तक बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. जिले की लगभग 23 लाख आबादी की स्वास्थ्य जैसी महती जिम्मेदारी का निर्वहन करने वाला जिले का स्वास्थ्य विभाग अंतिम सांसें गिन रहा है. विभाग में कई दर्जन महत्वपूर्ण पद खाली हैं अथवा प्रभार के भरोसे काम चलाया जा रहा है.

यही कारण है कि कई महत्वपूर्ण अभियान और योजनाएं भी भगवान भरोसे ही चलायी जा रही है. सुपौल को जिला का दर्जा मिले ढाई दशक बीत चुके हैं. लेकिन हैरत की बात यह है कि स्वास्थ्य विभाग में स्वीकृत 1533 के विरुद्ध महज 535 पद पर ही स्वास्थ्य कर्मी कार्यरत हैं. वहीं सर्जन के स्वीकृत 12 में से महज 02 पद पर चिकित्सक पदस्थापित हैं. यहां तक कि मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी भी प्रभार पर ही चल रहा है. ऐसे में यह कहना लाजिमी होगा कि यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था खुद बीमारी से जूझ रहा है.

जिले में वैसे तो कुल 20 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व 178 उप स्वास्थ्य केंद्र हैं. 20 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में से 14 को अपना भवन है. जबकि 06 भवन विहीन हैं, इसमें 04 को हाल-फिलहाल में जमीन उपलब्ध हो पाया है और 02 को अभी तक जमीन उपलब्ध नहीं हो पाया है. वहीं स्वास्थ्य उपकेंद्र को देखा जाय तो 178 केंद्रों में मात्र 79 को अपना भवन नसीब हो सका है. जबकि 99 भवन विहीन है. जिसमें महज 35 केंद्रों को इसी बीच में जमीन मिल पायी है. शेष 64 को अपने ठौर-ठिकाने के लिए जमीन तक मयस्सर नहीं है.
299 के बदले 94 चिकित्सक कार्यरत
स्वास्थ्य विभाग में यूं तो सभी क्षेत्र में कर्मियों का टोटा है. जिसके कारण मरीजों को काफी परेशानी होती है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले चिकित्सकों की संख्या सृजित पद के विरुद्ध एक तिहाई रह गयी है. दरअसल जिले में 299 चिकित्सकों के पद सृजित हैं. जिसमें नियमित रूप से 251 तथा अनुबंध पर 48 पदों की स्वीकृत है. लेकिन इसकी जगह महज 94 चिकित्सक ही जिले में कार्यरत हैं. इनमें 83 नियमित तथा 11 चिकित्सक अनुबंध के आधार पर अपना योगदान दे रहे हैं. इन्हीं 94 चिकित्सकों के भरोसे ही जिले का स्वास्थ्य विभाग रेंग रहा है. बात सदर अस्पताल की ही करें तो सृजित 36 पदों के विरुद्ध यहां महज 17 चिकित्सक पदस्थापित हैं.
जिले में ए ग्रेड नर्स के 256 पद स्वीकृत हैं. जिसमें 174 नियमित व 82 अनुबंध पर नियुक्ति होनी है. लेकिन इसके विरुद्ध फिलहाल केवल 40 नर्स ही कार्यरत हैं. इसमें 39 नियमित और 01 ए ग्रेड नर्स अनुबंध के आधार पर नियुक्त है. इस प्रकार कुल मिलाकर 75 फीसदी से भी अधिक ए ग्रेड नर्स के पद रिक्त हैं. जबकि जिला स्वास्थ्य विभाग में एएनएम का भी घोर अभाव है. एएनएम के 458 स्वीकृत पद के विरुद्ध मात्र 238 कार्यरत हैं. इसके तहत 212 नियमित तथा 246 अनुबंध के आधार पर एएनएम का पद स्वीकृत है.
लेकिन इसके विरुद्ध 90 नियमित तथा अनुबंध पर 148 एएनएम कार्यरत हैं. दिलचस्प यह है कि इन एएनएम को टीकाकरण जैसी कई महत्वाकांक्षी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए लगाया जाता है. ऐसे में कर्मियों पर काम का अतिरिक्त बोझ बढ़ रहा है और इसका असर योजना की सफलता पर भी दिखने लगा है.
जिले में ए ग्रेड नर्स के 256 पद स्वीकृत हैं. जिसमें 174 नियमित व 82 अनुबंध पर नियुक्ति होनी है. लेकिन इसके विरुद्ध फिलहाल केवल 40 नर्स ही कार्यरत हैं. इसमें 39 नियमित और 01 ए ग्रेड नर्स अनुबंध के आधार पर नियुक्त है. इस प्रकार कुल मिलाकर 75 फीसदी से भी अधिक ए ग्रेड नर्स के पद रिक्त हैं. जबकि जिला स्वास्थ्य विभाग में एएनएम का भी घोर अभाव है.
एएनएम के 458 स्वीकृत पद के विरुद्ध मात्र 238 कार्यरत हैं. इसके तहत 212 नियमित तथा 246 अनुबंध के आधार पर एएनएम का पद स्वीकृत है. लेकिन इसके विरुद्ध 90 नियमित तथा अनुबंध पर 148 एएनएम कार्यरत हैं. दिलचस्प यह है कि इन एएनएम को टीकाकरण जैसी कई महत्वाकांक्षी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए लगाया जाता है. ऐसे में कर्मियों पर काम का अतिरिक्त बोझ बढ़ रहा है और इसका असर योजना की सफलता पर भी दिखने लगा है.
स्वास्थ्य विभाग में कुल मिलाकर देखा जाय तो सृजित पद के विरुद्ध 40 फीसदी भी कर्मी नहीं हैं. यही कारण है कि कई महत्वपूर्ण पद हैं, जो अभी भी रिक्त पड़ा है. विशेष तौर पर कोसी तटबंध के अंदर के क्षेत्र में इसका असर दिख रहा है. दरअसल सुपौल जिला कोसी नदी की रेत पर बसा हुआ है. यही कारण है कि यहां नाविक के पद भी स्वीकृत किये गये हैं. लेकिन पद की स्वीकृति केवल कागजों पर ही रह गयी है. क्योंकि आलम यह है कि पद सृजित होने के बाद से लेकर अब तक सरकार द्वारा इस पद पर कर्मी की पदस्थापना नहीं की गयी है. यहां नाविक के 10 पद स्वीकृत किये गये हैं, लेकिन सभी पद रिक्त है. इसके अलावा प्रखंड प्रसार प्रशिक्षक के 09 पद, महिला स्वास्थ्य परिदर्शिका के 42 पद, स्वच्छता निरीक्षक के 12 पद व रात्रि प्रहरी के 01 पद स्वीकृत हैं, लेकिन सभी पद रिक्त पड़ा है.
फार्मासिस्ट के 28 पद है स्वीकृत, कार्यरत हैं केवल तीन
जिला स्वास्थ्य विभाग में चिकित्सक, ए ग्रेड नर्स व एएनएम की जहां कमी है, वही अन्य कर्मियों का भी घोर अभाव है. स्वास्थ्य विभाग में फार्मासिस्ट के 28 पद स्वीकृत हैं. लेकिन इसके विरुद्ध मात्र 03 फार्मासिस्ट ही कार्यरत हैं. वही आशुलिपिक के 03, लिपिक के 48 स्वीकृत पद के बदले 01 और 28 पदों पर ही कर्मी पदस्थापित हैं. जबकि संगणक के 09 के बदले 05, स्वास्थ्य प्रशिक्षक में 04 के बदले 01, बुनियादी स्वास्थ्य कार्यकर्ता 36 के बदले 02 व परिवार कल्याण
कार्यकर्ता में 27 के विरुद्ध 15 कर्मी ही कार्यरत हैं. जबकि 27 स्वास्थ्य कार्यकर्ता के बदले 03, प्रयोगशाला प्रावैधिक 24 पद के बदले 10 तथा 06 एक्स-रे तकनीशियन की जगह 01 कर्मी से ही काम चलाया जा रहा है. इसके अलावा शल्य कक्ष सहायक में 10 पद के विरुद्ध 01, परिधापक के 42 स्वीकृत पद के बदले 06, विरुद्ध कक्ष सेवक के 38 के विरुद्ध 21, सेवक सह झाडू कक्ष में 36 के बदले 09, श्रमिक में 15 के बदले 03, महिला कक्ष सेविका 19 के विरुद्ध 09, स्वीपर 36 के बदले 26, रसोई सेवक 05 के विरुद्ध 02, रसोईया के 05 पद के विरुद्ध 01 व 27 आदेशपाल स्वीकृत पद के विरुद्ध 22 कर्मी पदस्थापित हैं.

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