30 एकड़ भूमि में होगी खेतीमोरवा. एक समय था जब ज्वार बाजरा, मडुआ, सामा कौनी इत्यादि ही लोगों का मुख्य आहार हुआ करता था. लोग इसे खाकर रोगरहित रहा करते थे. उस समय के अनुभवी लोगों का कहना है कि इनत माम फसलों में फाइबर की मात्रा प्रचूर हुआ करती थी. फाइबर पेट के लिये काफी फायदेमंद माना जाता है. बदलते समय के साथ यह लोगों की थाली से दूर होने लगा. लोग फाइबर का विकल्प तलाशने लगे. इस कारण जब लोगों में बीमारी बढी तो विभाग भी चौकन्ना होने लगा. मौजूदा समय में किसान खेती के जरिये जीविकोपार्जन तो करते हैं लेकिन उन्हें इसका भरपूर लाभ नहीं मिलता है. लोग पुरानी फसलों के स्वाद का बखान तो करते हैं लेकिन वास्तव में उन्हे खाने को वह सामान आसानी से नहीं मिल पाता है. अब तो पर्व त्योहार के लिए वह चीज उपलब्ध नहीं हो पाता जिसकी परंपरा बरसों से चली आ रही है. जितिया, तीज आदि पवार्ें में लोग कौनी एवं मडुआ के आटे तलाशते नजर आते हैं. इन्हीं सब समस्याओं के मद्देनजर विभाग ने इन सब फसलों को दोबारा उपजाने की कवायद कर रही है. प्रखण्ड कृषि पदाधिकारी लोकनाथ ठाकुर के अनुसार इस सीजन में प्रखंड के तीस एकड़ में मडुआ की खेती करने का लक्ष्य रखा गया है. विभिन्न पंचायतों के उपयुक्त भूमि पर इसकी खेती कर नये परंपरा को दिशा देने का काम शुरू कर दिया गया है. मडुआ बीज प्रत्यरक्षण के तहत किसानों को इसके लिए प्रशिक्षित किया जायेगा तथा इसकी खेती पर भरपूर अनुदान दी जायेगी. गोढियारी जैसे फार्म हाउस में इस फसल के लिये विशेष व्यवस्था कर इस फसल को दोबारे लोगों के सामने परोसने की तैयारी किसानों के लिये भी काफी लाभदायक होगा, ऐसा विभाग का कहना है.
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मोरवा में होगा मडुआ बीज का प्रत्यरक्षण
30 एकड़ भूमि में होगी खेतीमोरवा. एक समय था जब ज्वार बाजरा, मडुआ, सामा कौनी इत्यादि ही लोगों का मुख्य आहार हुआ करता था. लोग इसे खाकर रोगरहित रहा करते थे. उस समय के अनुभवी लोगों का कहना है कि इनत माम फसलों में फाइबर की मात्रा प्रचूर हुआ करती थी. फाइबर पेट के लिये […]
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