सहरसा : जिस पुलिस फोर्स का गठन लोगों को सुरक्षा देने, उनके डर को दूर भगाने व नियम कानून की रक्षा के लिए हुआ है, जिले में वही पुलिस अब जनता का विश्वास पूरी तरह खो चुकी हैं. उन्हें पुलिसिया सहयोग की कोई अपेक्षा नहीं रह गयी है. सबने पुलिस से न्याय की उम्मीद छोड़ दी है.
बेलवारा कांड के बाद कामाधान कांड में पुलिस की लापरवाही सामने आयी, लेकिन उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई और न ही मृतक के परिवार को किसी तरह की न्याय ही मिल सका. दोनों ही कांडों में नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म हुआ फिर उसकी हत्या कर दी गयी. दोनों ही गरीब व लाचार परिवार से संबंध रखती थी. दोनों ही मामलों में गांव सहित जिले में राजनीति करने का दावा करने वालों ने इसे मुद्दा बना आंदोलन नहीं किया.
दोनों की जघन्य कांडों को पुलिसिया प्रयास से दबा दिये जाने की कवायद की जाती रही. बेलवारा कांड के पीड़ित परिजन ने तो पहले ही पुलिस से किसी भी तरह के न्याय मिलने की आस छोड़ दी थी. अब कामाधान कांड से सामना करने वाले परिवार के समक्ष भी अपने आंसू को आंखों में दबाने के सिवाय कोई उपाय नजर नहीं आ रहा है.
गर्दन मरोड़ मार डाली गयी थी सुधा: 17 महीने पूर्व 15 दिसंबर 2012 को सिमरी बख्तियारपुर के बेलवाड़ा पंचायत स्थित पुनर्वास टोले में दिल को दहलाने वाली घटना घटी थी. उस मनहूस तारीख को शाम छह बजे अपने घर से महज एक किमी की दूरी पर बड़े पापा को संदेश पहुंचाने गयी नौ वर्षीय सुधा का लौटने के क्रम में अपहरण कर लिया गया था. अपराधी उसे पश्चिम की दिशा की ओर करीब 500 मीटर की दूरी पर बाध में ले गये. जहां घासों के बीच उसके साथ दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया गया.
फिर गर्दन मरोड़ कर वहीं उसकी नृशंस हत्या कर दी गयी. दुष्कर्मी व हत्यारों ने उसकी लाश को वहीं पूर्वी कोसी तटबंध के बाहर जलकुंभी के बीच कीचड़ में दबा दिया था. इधर, वापस नहीं पहुंचने पर घर के लोग रात भर उसे गांव के अलावा आसपास के गांवों में भी खोज आये. अगली सुबह सुधा की मां उसे तलाशने बाध की ओर गयी, जहां विकृत हालत में बेटी की लाश दिखी. चिल्लाने पर दौड़ कर आये ग्रामीणों ने शव को निकाला और पुलिस को सूचना दी. घटना स्थल पर पहुंची पुलिस पोस्टमार्टम के लिए शव को अपने साथ ले गयी, लेकिन पुलिसिया कार्रवाई अब तक शून्य तक ही सिमटा पड़ा है. पुलिस ने पहले तो फोरेंसिक जांच रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई का भरोसा दिलाया.
घटना के 19 दिनों के बाद फोरेंसिक जांच के लिए भेजे गये दुष्कर्म पीड़िता व मृतका के कपड़ों का रिपोर्ट 135 दिनों के बाद आने की जानकारी सिमरी बख्तियारपुर डीएसपी ने दी, लेकिन डीएसपी ने उसे सार्वजनिक किये जाने से इनकार किया. एसपी ने आरोपियों का पोलिग्राफिक टेस्ट भी करवाया, लेकिन उस रिपोर्ट को भी सार्वजनिक नहीं किया. इस कांड को ठंढ़े बस्ते में डाल दिया गया. एसपी एम सुनील नायक ने अपने पदस्थापन के बाद भी सुधा हत्याकांड को गंभीरता से लेने व फाइल फिर से खुलवाने की बात कही थी, लेकिन पदस्थापन के छह माह बाद भी फाइलों पर चढ़ी धूल तक नहीं हटायी जा सकी है.
मकई खेत में ही मार डाली गयी फूलो: इधर, इसी महीने की 18 तारीख को सलखुआ प्रखंड के चिरैया ओपी अंतर्गत कामाधान गांव में 13 वर्षीय फूलो के साथ भी दुष्कर्म कर हत्या कर दिये जाने की घटना हुई. बेटी के घर नहीं लौटने बाद ही उसके पिता ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करायी थी. लेकिन पुलिस ने उसे ढ़ूंढ़ने में कोई सक्रियता नहीं दिखायी. दो दिनों के बाद बुधवार को घास काटने जा रहे लोगों को खेत से दरुगध का आभास हुआ. वे करीब गये तो बच्ची का शव पड़ा देखा. ग्रामीण सहित पुलिस वालों को खबर किये जाने के बाद आनन-फानन में बगैर उसके शव को पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल भेज दिया.
यहां भी उस तीन दिनों की सड़ी लाश के साथ अधिकारियों ने खूब मजाक किया. बगैर कागजात पूर्ण किये दो चौकीदारों को प्रतिनियुक्त कर गुरुवार को शव के साथ भागलपुर भेज दिया गया, जहां जाते ही आधे-अधूरे कागजात पर बिफरते हुए अस्पताल ने लाश को बैरंग लौटा दिया. इसकी सूचना चिरैया ओपी अध्यक्ष सहित एसपी व डीएसपी को दिया गया, लेकिन कोई भी अधिकारी अस्पताल नहीं आये. अंत में छठे दिन लाश को फारेंसिक जांच के लिए पटना भेजा गया. दोनों ही मामलों में पुलिसिया लापरवाही व शिथिलता की हद हो गयी. इस व्यवस्था के विरोध में किसी तरह की आवाजों का नहीं उठना भी उनकी कार्यशैली में सुधार नहीं होने देने के लिए जिम्मेवार है.