संवाददाता, पटना प्रेमचंद रंगशाला पटना में एचएमटी पटना की नवीनतम प्रस्तुति नाटक बड़ा कौन का मंचन किया गया. यह कहानी असीमित इच्छाओं की दौड़ में पागल न होकर संतोष और परिश्रम से जीवन बिताने का संदेश देती है. इस नाटक से एचएमटी के कलाकारों ने अपने अभिनय से लोगों को अचंभित करने में सफल रहे और खूब वाह वाही लूटी. राहुल कुमार रवि, चंदन उगना ने नाटक में चार चांद लगा दिये. सुरेश कुमार हज्जू ने इसे निर्देशित किया. बड़ा कौन विजयदान देथा की कहानी पर आधारित नाटक है. यह दो भाइयों की कहानी है. बड़ा भाई दौलत धनलोभी है. वह छोटे भाई दलित की सारी जमीन जायदाद हड़प लेता है और दलित को अपने यहां नौकरी पर रख लेता है और झोंपड़ी में जीवन गुजारने को विवश करता है. देवी लक्ष्मी और भाग्यदेव में इस बात पर बहस होती है कि उनमें से बड़ा कौन है. देवी लक्ष्मी अपनी बात को सच साबित करने के लिए दलित को धनवान बनाने में जुट जाती हैं. वह फसलों की पैदावार कई गुना बढ़ा देती हैं, पर दौलत दलित का हिस्सा हड़पकर उसे तरबूज-ककड़ियां दे देता है और लक्ष्मी उनमें कीमती रत्न भर देती हैं, लेकिन दलित पत्थर समझकर उन्हें कूड़े में डाल देता है. लक्ष्मी लक्खी बंजारे को दलित के पास भेजती है, पर दलित रत्नों के बदले थोड़ा सा अनाज ही लेता है. असल में दलित अपने जीवन से संतुष्ट है और वह मानता है कि परिश्रम से कमाये भोजन पर ही मनुष्य का अधिकार होता है. उसे न तो भौतिक सुखों की चाह है और न ही आराम की जिंदगी का लोभ. अब भाग्य कोशिश करता है कि लक्खी बंजारे दलित के बारे में जानकर राजकुमारी उससे शादी करने को तैयार हो जाये, लेकिन दलित ऐसा नहीं चाहता. उसे न तो राजमहल की चकाचौंध भाती है और न ही उसे राजा बनने की कोई इच्छा है. वह राजमहल जाता है और शादी से मना कर वापस गांव आने लगता है. इधर राजकुमारी यह बात सुनकर दुखी हो जाती है और रानी की सहायता से दलित को ढूंढने निकल पड़ती है. अंत में राजकुमारी दलित से मिलती है और उसे शादी के लिए मना लेती है. लक्ष्मी और भाग्य भी झगड़े का फैसला करने वहां पहुंचते हैं और लक्खी यह कहता है कि दोनों बराबर हैं, न कोई छोटा है, न बड़ा.
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