Mother’s Day 2025: आज बेटियां ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’ में मेडल पर मेडल जीतकर बिहार का नाम रोशन कर रही हैं. लेकिन इन सफलताओं की नींव उन माओं ने रखी, जिनके संघर्षों की कोई गिनती नहीं. इस मदर्स डे पर आइए, उन माओं को सलाम करें, जो हर पदक के पीछे चुपचाप खड़ी रहती हैं- मुस्कुराती हुई, मजबूती के साथ.
इन माओं ने रखी अपनी होनहार बेटियों की सफलताओं की नींव
मेरी मां ने हर मोड़ पर बढ़ाया हौसला: अंशु, गतका खिलाड़ी, न्यू जगनपुरा
पटना की अंशु, गतका जैसे पारंपरिक मार्शल आर्ट में न सिर्फ महारथ हासिल कर चुकी हैं, बल्कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिहार का नाम भी रोशन कर चुकी हैं. इस बार उन्होंने ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’ में कांस्य पदक जीता है. मधुबन कॉलोनी, न्यू जगनपुरा की रहने वाली अंशु के पिता सेना में रहे, लेकिन असली कमान उनकी मां रेखा सिन्हा ने संभाली. अंशु बताती हैं कि जब वह बेंगलुरु के आर्मी स्कूल में पढ़ती थीं, तभी पहली बार गतका देखा और खेल से जुड़ाव शुरू हुआ. शुरुआत कराटे से हुई, फिर गतका ने उनकी पहचान गढ़ी. रेखा सिन्हा ने कभी भी बेटी के खेल में बाधा नहीं बनने दी. उन्होंने अंशु को हमेशा प्रोत्साहित किया, चाहे पढ़ाई हो या खेल. अंशु की हर जीत में मां का विश्वास और साथ शामिल है. आज वह सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि मां-बेटी की साझी सफलता की मिसाल बन चुकी हैं.
वर्किंग मदर के बावजूद बेटी खेल में चमकी: आर्यांशी, सेपक टाकरा खिलाड़ी, कंकड़बाग
कंकड़बाग, पटना की रहने वाली आर्यांशी ने ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’ में सेपक टाकरा में रजत पदक जीता है. 12वीं की छात्रा आर्यांशी की सफलता के पीछे उनकी मां रेणु कुमारी की अनथक मेहनत और समझदारी है. खुद स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा में कार्यरत रेणु कुमारी, डायट हाजीपुर वैशाली में काम करती हैं. वर्किंग मदर होने के बावजूद उन्होंने कभी बेटी की खेल यात्रा में रुकावट नहीं आने दी. शुरुआत में आर्यांशी बास्केटबॉल खेलती थीं, लेकिन पाटलिपुत्र स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में अभ्यास के दौरान सेपक टाकरा ने उनका ध्यान खींचा. उनके चाचा, डॉ करुणेश कुमार, भी इस खेल से जुड़े थे, जिससे प्रेरणा मिली. 9वीं कक्षा से खेलना शुरू किया और अब राष्ट्रीय व सीनियर लेवल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती हैं. उनकी मां रेणु कहती हैं, मैंने उसे सिर्फ मां की तरह नहीं, दोस्त की तरह समझा. धैर्य रखना और खुद पर विश्वास करना सिखाया.
समाज ने उठाये सवाल, पर मां ने दिया साथ: सुहानी कुमारी, साइक्लिंग, छपरा
छपरा जिले के छोटे से गांव धोबवल काकन टोला की रहने वाली सुहानी कुमारी आज साइक्लिंग के क्षेत्र में बड़ा नाम बन चुकी हैं. वह पिछले पांच वर्षों से इस खेल में सक्रिय हैं और जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुकी हैं. उन्होंने एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर देश और बिहार का नाम रोशन किया है. ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’ में भी उन्होंने कास्य और रजत पदक हासिल किये हैं. सुहानी की प्रेरणा उनकी बड़ी बहन मंजू बनीं, जो खुद साइक्लिंग करती थीं. मां संगीता देवी कहती हैं, मैंने केवल आठवीं तक पढ़ाई की, लेकिन मेरी बेटियों के सपनों में कभी रुकावट नहीं बनने दी. जब कोच प्रभात सर ने पटना बुलाया, तो बिना संकोच भेजा. समाज और रिश्तेदारों ने सवाल उठाए, लेकिन मैंने अपनी बेटी का साथ दिया. हर खेल में साथ रही, मानसिक संबल और हर मोड़ पर मार्गदर्शन देती रहीं.
मेडल्स ने आलोचकों को चुप करा दिया: दिव्यांशु भारती, रग्बी प्लेयर, अरवल
अरवल जिले की दिव्यांशु भारती ने ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’ में रग्बी जैसे कठिन खेल में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया. अभी वह 11वीं कक्षा में पढ़ रही हैं और पिछले चार सालों से रग्बी खेल रही हैं. उन्होंने अंडर-14, अंडर-17 और अंडर-18 वर्गों में मेडल जीतकर खुद को साबित किया है. उनकी मां रंजु भारती सरकारी टीचर हैं और उनकी सबसे बड़ी ताकत भी. रंजु कहती हैं कि शुरुआत में समाज ने काफी विरोध किया, लेकिन कोच कृष्णा कुमार के मार्गदर्शन में अपने सफर की शुरुआत की. बेटी ने गोल्ड मेडल जीता और उन सभी आलोचकों को चुप कर दिया. रंजु कहती हैं, मैंने हमेशा घर में ऐसा माहौल रखा कि बच्चों से दोस्ती बनी रहे. जब वे खुलकर बोलते हैं, तभी हम सही दिशा दे सकते हैं. आज दिव्यांशु सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि मां के सपनों को भी साकार कर रही हैं.
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