पटना : पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम राम मांझी के निकटवर्ती और आधिकारिक रूप से जदयू के बागी विधान पार्षद नरेंद्र सिंह और सम्राट चौधरी की बिहार विधान परिषद की सदस्यता समाप्त हो गयी है. लंबी सुनवाई के बाद बुधवार को विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह की कोर्ट ने इनकी सदस्यता समाप्त करने का फैसला सुनाया. दोनों पर जदयू के सदस्य होते हुए विधान सभा के चुनाव में हम पार्टी के लिए काम करने का आरोप था.
विधान परिषद में जदयू के मुख्य सचेतक संजय कुमार सिंह उर्फ गांधी जी ने सभापति सचिवालय को लिखित रूप से दोनों की सदस्यता समाप्त करने का अनुरोध किया था. इसके पहले इसी आधार पर सभापति सचिवालय ने पूर्व मंत्री महाचंद्र प्रसाद सिंह की सदस्यता समाप्त कर चुकी है. जबकि, सुनवाई के दौरान ही मंजर आलम ने सदन की सदस्यता से खुद इस्तीफा दे दिया था. एक अन्य सदस्य शिवप्रसन्न यादव के खिलाफ भी सदस्यता समाप्त करने की सुनवाई चल रही है. फिलहाल श्री यादव बीमार चल रहे हैं और इसी आधार पर कारण बताओ नोटिस का जवाब देने के लिए मोहलत मांगी है.
नरेंद्र सिंह का कार्यकाल 2018 में समाप्त होना था. जबकि, सम्राट चौधरी को विधान परिषद की सदस्यता 2014 में दिलायी गयी थी. उनका कार्यकाल 2020 में समाप्त होना था. 1974 के बिहार आंदोलन के नेता नरेंद्र सिंह पहली बार 2006 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के साथ विधान परिषद के सदस्य बने थे. इसके बाद 2012 में दूसरी बार जदयू की टिकट पर वह विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए. कभी नीतीश कुमार औरलालू प्रसाद के खास रहे नरेंद्र सिंह 2014 में जीतन राम मांझी की सरकार में भी मंत्री हुए.
इसके बाद उनकी गिनती मांझी खेमें के प्रमुख नेताओं में होने लगी. इस बार के विधानसभा के चुनाव में उनके एक बेटे भाजपा की टिकट पर और एक निर्दलीय उम्मीदवार हुए. खुद श्री सिंह मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख प्रचारक रहे. इसी प्रकार सम्राट चौधरी राजद छोड़ कर जदयू में शामिल हुए थे. उन्हें मनोनयन कोटे से विधान परिषद का सदस्य बनाया गया. विधानसभा चुनाव में वह मांझी खेमें में रहे. इसी आधार पर जदयू ने उनकी सदस्यता समाप्त करने की अनुशंसा की थी.