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बिना ऑक्सीजन व जीवनरक्षक दवाओं के चल रहे जिले के सरकारी एंबुलेंस

भभुआ सदर : चिकित्सा महकमे का हिस्सा बन चुके सरकारी एंबुलेंस सहित एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस 1099 में न तो पूरे जीवनरक्षक उपकरण हैं और न ही पूरी दवाईयां. जानकारी के अनुसार, पूरे जिले के सरकारी अस्पतालों के एंबुलेंसों में से किसी में भी ऑक्सीजन सिलिंडर तक नहीं है. एंबुलेंसकर्मियों को अस्पताल में मिलनेवाले ऑक्सीजन […]

भभुआ सदर : चिकित्सा महकमे का हिस्सा बन चुके सरकारी एंबुलेंस सहित एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस 1099 में न तो पूरे जीवनरक्षक उपकरण हैं और न ही पूरी दवाईयां. जानकारी के अनुसार, पूरे जिले के सरकारी अस्पतालों के एंबुलेंसों में से किसी में भी ऑक्सीजन सिलिंडर तक नहीं है. एंबुलेंसकर्मियों को अस्पताल में मिलनेवाले ऑक्सीजन सिलिंडर सहित दवाओं से अपना काम चलाना पड़ रहा है.
यह हालत पिछले दो महीनों से है.जिले के सभी सरकारी एंबुलेंस बिना जीवनरक्षक उपकरणों व दवाइयों के बगैर मरीजों को वाराणसी या अन्य कहीं के अस्पतालों में पहुंचा रहे हैं. गौरतलब है कि जिले में उपलब्ध अधिकतर एंबुलेंस भी कुछ हद तक खटारा हो चुके हैं. इसके बावजूद इस योजना के नाम पर अनुबंधित एजेंसी को हर माह लाखों का भुगतान किया जा रहा है.
हाल में जब स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय कैमूर पहुंचे थे, तो उन्होंने भी पहले से जिले में चलनेवाले एंबुलेंसों की स्थिति के बारे में पूछा था, तो कई चिकित्सा पदाधिकारियों ने मंत्री के समक्ष अपने अपने केंद्रों पर चलनेवाले एंबुलेंस की खस्ताहाल स्थिति से अवगत कराया था. मंत्री जी ने पहले की व्यवस्थाओं में सुधार की जगह और नये एंबुलेंस देने की घोषणा कर दी.
मरीजों को नहीं मिल रही चिकित्सकीय सुविधा : मरीजों को बेहतर चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने के उद्देश्य से सरकार ने कुछ साल पहले जिले के सभी अस्पतालों व पीएचसी में 108 व 1099 एंबुलेंस की व्यवस्था शुरू की थी. इस योजना के तहत जिला अस्पताल भभुआ, अनुमंडलीय अस्पताल मोहनिया व रेफरल अस्पताल रामगढ़ सहित सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को एक-एक 108 वाहन उपलब्ध कराया गया था. शुरुआती दौर में लोगों के लिए वास्तव में संजीवनी साबित होने वाले 108 व 1099 वाहनों की दशा वर्तमान में बदतर हो चुकी है.
सिर्फ इतना ही नहीं, जो वाहन चालू हालत में पाये गये. उनमें पूरे यंत्र तो दूर, जरूरी दवाएं तक उपलब्ध नहीं है. मेंटेनेंस के अभाव में वाहन बीच रास्ते ही धोखा दे जा रहे हैं. 108 एंबुलेंस का यह हाल पूरे जिले में है. बावजूद इसके, स्वास्थ्य महकमा इस सेवा के संचालक को हर माह लाखों का भुगतान कर रहा है, जो समझ से परे है.
एंबुलेंस पर अफसरों का नियंत्रण नहीं
बेहतर चिकित्सा मुहैया कराने के उद्देश्य से 1099 और 108 एंबुलेंस भले ही जिले के अस्पतालों को उपलब्ध कराया गया है. लेकिन, इसके संचालन को लेकर स्थानीय स्तर पर किसी का नियंत्रण नहीं है. स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक, इसका संचालन सीधे राजधानी से होता है.
मरहम पट्टी तक उपलब्ध नहीं : गौरतलब है कि 1099 और 108 एंबुलेंस में मरीज और घायल की मरहम-पट्टी करने के लिए करीब 15 प्रकार का सामान तथा सॉल्यूशन हर वक्त उपलब्ध होना चाहिए. लेकिन, जिले में चलनेवाले कई एंबुलेंसों में मामूली रूप में मिलने वाले रुई, बैंडेज सहित बिटाडिन सॉल्यूशन तक उपलब्ध नहीं है. साथ ही इन एंबुलेंसों में कई तरह की महत्वपूर्ण दवाइयां व वाहनों में आक्सीजन सिलेंडर भी उपलब्ध नहीं है. वाहन में उपलब्ध स्ट्रेचर भी कंडम हालत में है, जिसमें लगे खून के धब्बों तक की सफाई नहीं करायी जाती.
एएलएस और बीएलएस एंबुलेंस में होता है अंतर : एंबुलेंस का काम मरीजों को घर से अस्पताल या निचले स्तर के अस्पताल से ऊपरी स्तरके अस्पताल तक ले जाना है. जैसे पीएचसी से ब्लॉक और ब्लॉक से सदर अस्पताल. वहीं एंबुलेंस दो तरह के होते हैं.
एएलएस सुविधा यानी एडवांस लाइफ सपोर्ट और बीएलएस यानी बेसिक लाइफ सपोर्ट वाले. एएलएस में वेंटिलेशन, सीरिंज पंप और कार्डियक मॉनिटर होता है. जबकि, बीएलएस में वेंटिलेटर और सिरिंज पंप नहीं होता. वैसे बिहार में सरकारी फॉर्मूले से तीन तरह की एंबुलेंस सेवा 1099, 108 और 102 चलाये जाने का प्रावधान फिलहाल है.
जांच करने का आरडीडी-एच का आदेश ठंडे बस्ते में
कैमूर में चलनेवाले लाइफ सपोर्ट सिस्टमयुक्त 1099 में बरती जा रही अनियमितता की जांच करने का निर्देश एक माह पूर्व कार्यपालक निदेशक सह विशेष सचिव लोकेश कुमार सिंह ने कैमूर सिविल सर्जन डॉ नंदेश्वर प्रसाद को दिया था.
विशेष सचिव ने सीएस को 1099 में स्थापित जीवनरक्षक उपकरणों, एसी सहित 1099 एंबुलेंस में प्रतिनियुक्त कर्मियों तथा चालक, ईएमटी व हेल्पर के मानदेय का भुगतान कई महीनों से सेवा प्रदाता कंपनी द्वारा नहीं किये जाने की जांच भी करा कर रिपोर्ट पटना भेजने का निर्देश दिया गया था. इस निर्देश पर सीएस ने सदर अस्पताल के डॉक्टरों सहित चार सदस्यीय टीम बनाकर सदर अस्पताल से चलनेवाले 1099 की रिपोर्ट एक सप्ताह में मांगा था.
जांच टीम में सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ विनोद कुमार, डॉ जयशंकर मिश्रा, महिला डॉक्टर डॉ किरण सिंह और लेखापाल सतीश तिवारी थे. लेकिन, अब तक न तो 1099 एंबुलेंस में उपलब्ध सुविधा व बरती जा रही अनियमितता की जांच ही की गयी और न ही महीना बीत जाने के बाद भी रिपोर्ट विशेष सचिव को भेजी गयी.

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