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तालाब के जल से चर्म रोगों से मिलती है मुक्ति

* प्राचीनता के लिए प्रसिद्ध है बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ का मंदिर ब्रह्मपुर : जिले के ब्रह्मपुर स्थित बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ का मंदिर अपनी भव्यता व प्राचीनता के लिए जिला ही नहीं, बल्कि राज्य एवं देश में भी प्रसिद्ध है. मंदिर के पुजारी रमेश पांडेय बताते हैं कि यहां शंभू शिवलिंग की स्थापना स्वयं ब्रह्म जी […]

* प्राचीनता के लिए प्रसिद्ध है बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ का मंदिर

ब्रह्मपुर : जिले के ब्रह्मपुर स्थित बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ का मंदिर अपनी भव्यता व प्राचीनता के लिए जिला ही नहीं, बल्कि राज्य एवं देश में भी प्रसिद्ध है. मंदिर के पुजारी रमेश पांडेय बताते हैं कि यहां शंभू शिवलिंग की स्थापना स्वयं ब्रह्म जी ने की थी. पुरातत्व विशेषज्ञ फ्रांसीसी बुचानन ने शाहाबाद प्रक्षेत्र की सर्वेक्षण सन 1812-13 में करने आये थे, तो उस दौरान ब्रह्मपुर का भी दौरा किया था और अपनी पुस्तक में यहां के प्रचारित किवंदतियों की वर्णन किया है.

पुराणों में ब्रह्मपुर 12 पुष्करणियों (तालाब) का होना बताया गया है. आज भी उन 12 तालाबों में से कुछ का अवशेष बचा है, तो कुछ का निशान मिट गया है और कुछ का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है. इन 12 तालाबों का 12 एवं अलग-अलग गुण विद्यमान थे. अब भी उनकी महत्ता को जानने वाले लोग उस तालाब के जल का स्पर्श अवश्य करते हैं.

पुजारी धर्मेंद्र पांडेय कहते हैं कि वाणासुर द्वारा निर्मित तालाब जो वर्तमान तालाब के पूरब में स्थित है. उस तालाब को वांडा के नाम से जाना जाता है. आसपास उत्खनन में जले हुए जौ, चावल, लकड़ी का प्राप्त होना सिद्ध करता है कि उस काल में बाहुबली वाणासुर भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ कर अपने नाम से तालाब निर्माण कराया हो. शिव मंदिर के पश्चिम में जैसा कि पुराणों में वर्णित है, भवाजी जी का मंदिर था. वह मंदिर आज भी स्थित है.

शिव मंदिर के पीछे व पूरब दिशा में एक बहुत बड़ा तालाब है, जो शिव सागर के नाम से जाना जाता है, जिसका वर्णन स्कंद पुराणों से तो मिलता ही है, शिव महात्मय प्रकरण में इस तालाब का स्पष्ट उल्लेख है. यही नहीं ब्रह्म जी द्वारा प्रति स्थापित शिवलिंग की भी चर्चा यहां की गयी है.

कहा जाता है कि इस शिव सागर तालाब के किनारे रात्रि विश्रम करने, रहने व शिवलिंग पर जल चढ़ाने और तालाब के जल का दरश-परस करने से कुष्ठ रोग सहित अन्य चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है. इस मंदिर को देखने से ऐसा लगता है कि इस मंदिर का निर्माण मध्य युग में हुआ है. मुगल स्थापत्य शैली में निर्मित मंदिर का भीतरी फैलाव अन्य मंदिरों से अधिक है.

यही कारण है कि शिव रात्रि के अवसर पर लाखों की भीड़ होने के बावजूद दर्शनार्थियों को बहुत अधिक असुविधा नहीं होती और मंदिर के भीतर कभी घुटन का अनुभव नहीं होता है. ऐसे तो यहां प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि को शिवरात्रि को हजारों की संख्या में यहां शिव भक्त आते हैं, लेकिन फाल्गुन में पालतू पशुओं का बहुत बड़ा मेला लगता है. इस पशु मेला का एशिया में दूसरा स्थान प्राप्त था.

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