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शेखपुरा की रबीना के लिए डॉ ऋषभ बने मददगार

शेखपुरा जिले के भानपुर गांव निवासी 15 वर्षीय रबीना अब दोनों पैरों से पहले की तरह चल सकेंगी.

बरबीघा. शेखपुरा जिले के भानपुर गांव निवासी 15 वर्षीय रबीना अब दोनों पैरों से पहले की तरह चल सकेंगी. मो इक़बाल हक़ की बिटिया रबीना खातून को आईजीआईएमएस में चार महीने तक कॉर्टिकोटॉमी ट्रीटमेंट दिया गया. बच्ची को पिछले पांच वर्षों से पैर की हड्डी में लगातार एक खास प्रकार का संक्रमण (क्रोनिक ऑस्टियोमायलाइटिस) की समस्या थी. बच्ची का कई जगह इलाज कराने के बावजूद स्थिति बिगड़ती चली गई और डॉक्टरों ने अंततः पैर काटने (अम्प्यूटेशन) की सलाह दे दी थी. इसी दौरान बच्ची के माता-पिता को किसी ने एक बार शेखपुरा जिले में समाज सेवा के लिए चर्चित डॉक्टर ऋषभ कुमार से दिखाने की सलाह दी. डॉ ऋषभ आईजीआईएमएस पटना के इमरजेंसी और ट्रॉमा सेंटर में हड्डी एवं नस रोग विशेषज्ञ है. बच्ची के माता-पिता तुरंत उसे लेकर आइजीआइएमएस पटना पहुंच गए. जहां डॉ ऋषभ कुमार ने बच्ची के पैर की गहन जांच की. एक्स-रे में पाया गया कि पैर में पस से भरा घाव भी है. इन्फेक्सन के बीच पैर में 7 सेमी पैर की हड्डी थी गायब मजदूर की लाडली का पांच साल पहले एक हादसे में पैर टूट गया था. आर्थिक तंगी के कारण समुचित इलाज के आभाव यह गम्भीर स्थिति बन गयी. रबीना का जब ट्रीटमेंट शुरू हुआ तब लगभग 7 सेंटीमीटर हड्डी गायब पाया गया. और टूटी हुई हड्डी आपस में जुड़ी हुई भी नहीं थी ऐसी स्थिति में आमतौर पर पैर काटना ही अंतिम विकल्प माना जाता है, लेकिन डॉ. ऋषभ कुमार ने चुनौती स्वीकार की और इलाज की नई राह चुनी. पैर में इलिजारोव फ्रेम नामक विशेष उपकरण लगे सबसे पहले संक्रमित हिस्से की सर्जिकल सफाई (डिब्राइडमेंट) की गयी और पैर में इलिज़ारोव फ्रेम नामक विशेष उपकरण लगाया गया.इसके बाद हड्डी की कॉर्टिकोटॉमी (यानी एक विशेष प्रकार का ट्रीटमेंट कर)धीरे-धीरे हड्डी को बढ़ाया गया. यह प्रक्रिया करीब चार महीने तक चली.आठ महीने बाद जब नई हड्डी बन गई तो फ्रेम हटा दिया गया. उस समय जोड़ पतला था, इसलिए बच्ची को पी.टी.बी. कास्ट पहनाकर चलने की अनुमति दी गई. तीन महीने में हड्डी पूरी तरह जुड़ गई और बच्ची अपने पैरों पर सामान्य रूप से चलने लगी. 15 साल की उम्र में एक पैर गंवाने का था खौफ जिस बच्ची को कभी पैर कटवाने की सलाह दी गयी थी, आज वह अपने पैरों पर चल रही है और जीवन के हर काम कर पा रही है.हमारी यह मेहनत उस बच्चे के लिए आशा की किरण बनी है. बरबीघा से इस बच्चे के लिए जो प्रयास हुआ, वह स्वस्थ और बढ़ते बरबीघा की दिशा में एक कदम है.डॉ. ऋषभ कुमार की इस सफलता की चारों ओर सराहना हो रही है.

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