Bihar Flood: नील तिलापिया और अफ्रीकी कैटफिश जैसी बाहरी नस्ल की मछलियां गंगा की देसी मछलियों को तेजी से खा रही हैं. ये मछलियां पिछले साल बाढ़ के दौरान गंगा में पहुंची थीं और तब भी इन्होंने कई देसी प्रजातियों को नुकसान पहुंचाया था. इससे पहले कॉमन कॉर्प मछली ने भी गंगा किनारे मिलने वाली कई देशी मछलियों को खत्म कर दिया था. यही वजह है कि इस साल फिर बाढ़ आने पर मत्स्य विभाग और मछुआरे दोनों चिंता में है.
भागलपुर से साहिबगंज तक पहुंच सकती है…
मत्स्य विभाग के अधिकारियों का मानना है कि बाढ़ के कारण विदेशी मछलियां गंगा में पहुंच गई हैं और अब भागलपुर से साहिबगंज तक आसानी से फैल सकती हैं. उनका कहना है कि इन मछलियों की मौजूदगी से गंगा की देसी मछलियां बड़ी मुश्किल में हैं और उनका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है.
मछलियों के लिए नुकसानदायक है बाढ़
इसके साथ ही, बाढ़ से पानी में प्रदूषण बढ़ता है और नदी का रास्ता भी बदल जाता है, जो देसी मछलियों के लिए नुकसानदायक साबित होता है. इसी दौरान मछलियां जैसे नील तिलापिया, अफ्रीकी कैटफिश और कॉमन कॉर्प गंगा में आसानी से घुस जाती हैं. ये न सिर्फ देसी मछलियों का खाना छीन लेती हैं बल्कि उनके रहने की जगह को भी प्रभावित करती हैं.
घट रही मछलियों की संख्या
विदेशी मछलियां जैसे अफ्रीकी कैटफिश और कॉमन कॉर्प बहुत तेजी से बढ़ती हैं. ये गंगा की देसी मछलियों से खाना, ऑक्सीजन और रहने की जगह छीन लेती हैं. साथ ही, ये देसी मछलियों और उनके अंडों को खा जाती हैं, जिससे उनका प्रजनन चक्र बिगड़ जाता है और संख्या घटने लगती है. बाढ़ के साथ आई ये विदेशी मछलियां देसी मछलियों को खत्म करने के साथ उनके प्राकृतिक घर को भी नष्ट कर रही हैं.
प्रदूषण और बदलती जलवायु से बढ़ा खतरा
अधिकारियों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और नदियों के रास्ते में बदलाव भी विदेशी मछलियों के आने की बड़ी वजह हैं. बाढ़ का पानी अपने साथ कचरा और गंदगी लाता है, जो गंगा की मछलियों और अन्य जलीय जीवों के लिए हानिकारक होता है.
(जयश्री आनंद की रिपोर्ट)

