कहलगांव : अगस्त 2009 में पांच करोड़ की राशि से डेढ़ एकड़ जमीन में अस्पताल के लिए तिनमंजिले भवन का निर्माण कराया गया था. उम्मीद थी कि अनुमंडल अंतर्गत कहलगांव, पीरपैंती, सन्हौला के अलावा सीमावर्ती झारखंड के लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.
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अनुमंडल अस्पताल : 10 वर्षों में भी नहीं सुधरी सेहत
कहलगांव : अगस्त 2009 में पांच करोड़ की राशि से डेढ़ एकड़ जमीन में अस्पताल के लिए तिनमंजिले भवन का निर्माण कराया गया था. उम्मीद थी कि अनुमंडल अंतर्गत कहलगांव, पीरपैंती, सन्हौला के अलावा सीमावर्ती झारखंड के लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. डॉक्टरों की घोर कमी : वर्तमान […]
डॉक्टरों की घोर कमी : वर्तमान में इस अस्पताल में डाॅ पीसी सिन्हा, डाॅ राजेंद्र प्रसाद और डाॅ लखन मुर्मू, डाॅ विवेकानंद दास, एकमात्र महिला चिकित्सक डाॅ पूनम मिश्रा कार्यरत हैं. इनमें से कुछ निजी कारणों से अस्पताल में ज्यादा समय नहीं दे पा रहे हैं. संविदा पर तैनात हड्डी व नस रोग विशेषज्ञ डाॅ संजय कुमार सिंह व डाॅ पुष्प सुधा (गाइनो) की पिछले सात जुलाई को संविदा समाप्त हो चुकी है. डाॅ अजय कुमार सिंह (संविदा) 30 जून को रिटायर कर चुके हैं. डाॅ एनके सिंह(संविदा) शहर से बाहर निजी अस्पताल में सेवा दे रहे हैं. अस्पताल में पहले से ही डाॅक्टरों की घोर कमी है. ऐसे में यहां डाॅ विवेकानंद दास का तबादला सन्हौला पीएचसी कर दिया गया, जिससे परेशानी और बढ़ गयी है.
अस्पताल की सुरक्षा भगवान भरोसे : करीब एक साल से अस्पताल में सुरक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे ही है. अभी यहां एक भी सुरक्षा प्रहरी नहीं है. जबकि, सिविल सर्जन डाॅ विजय कुमार ने पूर्व में कहा था कि शीघ्र ही निजी एजेंसी के सुरक्षा प्रहरी की तैनाती होगी. रात में ड्यूटी करने वाली महिला चिकित्सक व नर्स डरी-सहमी रहती हैं. पूर्व में अस्पताल में कई बार मारपीट व छेड़खानी जैसी घटनाएं हो चुकी हैं. कुछ जगहों पर घटिया दर्जे के सीसीटीवी कैमरे जरूर लगे हैं.
विशेषज्ञ चिकित्सकों का अभाव, प्राथमिक उपचार भर के लिए रह गया है अस्पताल
कहलगांव अनुमंडल अस्पताल की स्थापना के एक दशक हो गये, लेकिन अभी तक इसकी खुद की सेहत डांवांडोल ही है. कहने को तो यह अनुमंडलीय अस्पताल है, लेकिन पीएचसी जैसी भी सुविधाएं मरीजों को नहीं मिलती हैं. हालात यह है कि 29 डाॅक्टरों के स्वीकृत पद के विरुद्ध यहां सिर्फ पांच डॉक्टर और 50 पारा मेडिकल स्टाफ की जगह 19 ही कार्यरत हैं. 100 बेड की जगह सिर्फ 30 बेड ही उपलब्ध हैं, जबकि हर रोज यहां तकरीबन 350 मरीज ओपीडी में पहुंचते हैं.
वर्ष 2013 से डोयन व एक्सरे बंद
पिछले पांच साल से डोयन व एक्सरे की सुविधाएं यहां बंद हैं. इसके लिए गरीब मरीजों को अस्पताल से बाहर जाकर जेब ढीली करनी पड़ती है. विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी के कारण यहां इलाज का दायरा केवल प्राथमिक उपचार तक ही रह गया है. दुर्घटना के मामले में भागलपुर रेफर कर दिया जाता है.
ब्लड स्टोरेज सेंटर बंद
पिछले साल फरवरी में जोर -शोर से ओपीडी कैंपस में ही ब्लड स्टोरेज सेंटर चालू किया गया था, ताकि अस्पताल मे भर्ती होने वाली प्रसूता व गंभीर रूप से घायल मरीजों को खून की जरूरत होने पर उनकी जान बचायी जा सके. छह-सात माह तक काम करने के बाद यह सेंटर बंद हो गया.
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