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खेलों की नर्सरी वाले शहर में स्टेडियम नदारद

यह वही शहर है, जिसने महिला फुटबॉल के क्षेत्र में देश–विदेश में अपनी पहचान बनाई, लेकिन विडंबना यह है कि यहां की प्रतिभाओं को आज तक एक समुचित स्टेडियम नसीब नहीं हो सका.

नरकटियागंज. देश के प्रधानमंत्री जब अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर “खेलते रहिए, खिलते रहिए और खिलखिलाते रहिए”का संदेश देकर देशभर के खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ा रहे थे, उसी वक्त बिहार के नरकटियागंज में सैकड़ों खिलाड़ी तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अपनी विवशता बयां कर रहे थे. लेकिन इस विवशता पर न तो विधायक जी की नजर पड़ी और न ही मंत्री जी की. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर यह दृश्य हाई स्कूल के जर्जर खेल मैदान का था, जहां उबड़-खाबड़ जमीन पर अभ्यास करने को मजबूर खिलाड़ी आज भी एक अदद स्टेडियम का इंतजार कर रहे हैं. यह वही शहर है, जिसने महिला फुटबॉल के क्षेत्र में देश–विदेश में अपनी पहचान बनाई, लेकिन विडंबना यह है कि यहां की प्रतिभाओं को आज तक एक समुचित स्टेडियम नसीब नहीं हो सका.शहर में भूमि की कमी नहीं है, प्रतिभाओं की भी नहीं, कमी है तो सिर्फ इच्छाशक्ति की. नरकटियागंज की बेटियां बिना संसाधनों के भी देश का नाम रोशन कर रही हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या उन्हें कभी वह स्टेडियम मिलेगा, जिसकी वे दशकों से हकदार हैं?खेलों की असीम संभावनाओं वाला यह शहर आज भी एक अदद स्टेडियम के इंतजार में है. खेल प्रेमी कहते हैं कास अन्य जगहों की तरह हमारे भी जन प्रतिनिधि होते तो कम से कम स्टेडियम के लिए नही तरसना पड़ता.

उबड़-खाबड़ मैदान, चोटिल खिलाड़ी, फिर भी अडिग हौसले

हाई स्कूल का खेल मैदान शहर के सैकड़ों खिलाड़ियों का एकमात्र सहारा है. असमतल मैदान में अभ्यास के दौरान खिलाड़ी अक्सर चोटिल हो जाते हैं, खून बहता है, लेकिन हौसला नहीं टूटता. यहीं मैदान उन बेटियों की कर्मभूमि है, जिन्होंने अपने दम पर नरकटियागंज का नाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया. टाउन क्लब के सचिव सह टी.पी. वर्मा कॉलेज के खेल निदेशक सुनील वर्मा कहते हैं, “स्टेडियम निर्माण को लेकर विधायक, सांसद से लेकर मंत्री तक गुहार लगाई, लेकिन आज तक ठोस पहल नहीं हो सकी जिस मैदान में हम अभ्यास कराते हैं, वह नाकाफी है, मगर शहर में दूसरा विकल्प भी नहीं है. फुटबॉलर लक्की कुमारी कहती हैं,अगर हमें स्टेडियम और बड़ा मैदान मिले, तो हम और बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैंवहीं निशा कुमारी का कहना है,सरकार को हम खिलाड़ियों के लिए स्टेडियम जरूर बनवाना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी को परेशानी न हो.

1995 में जगी थी उम्मीद, फिर अधर में लटक गया सपना

नरकटियागंज में स्टेडियम निर्माण की पहल वर्ष 1995 में तत्कालीन दिवंगत पशुपालन मंत्री भोला राम तूफानी ने की थी. महिला खिलाड़ियों की प्रतिभा को देखते हुए नरकटियागंज कृषि फार्म क्षेत्र में भूमि की तलाश भी की गई. लेकिन उनके निधन के बाद यह सपना फाइलों में ही सिमट कर रह गया.

खेल निदेशक सुनील वर्मा बताते हैं कि भोला राम तूफानी के पहल के बाद इस दिशा में ठोस पहल नहीं की गयी.

बदलाव की पहली चिंगारी : वाजदा तबस्सुम

नरकटियागंज के खेल इतिहास में वाजदा तबस्सुम वह नाम हैं, जिन्होंने बदलाव की चिंगारी जलाई . वर्ष 1992 में पहली बार मैदान में उतरने वाली वाजदा ने छह वर्षों के कठिन संघर्ष के बाद 1999 में पश्चिम चंपारण की पहली महिला फुटबॉलर के रूप में बांग्लादेश में आयोजित अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया.उनकी सफलता ने समाज की सोच बदली और दर्जनों लड़कियों को फुटबॉल की ओर प्रेरित किया.

नरकटियागंज की बेटियां, जिन्होंने देश का परचम लहराया

वाजदा के बाद इस शहर से फुटबॉल की एक पूरी पीढ़ी तैयार हुई.अंशा और सोनी ने चीन और श्रीलंका में भारत का प्रतिनिधित्व किया. इसके बाद दिव्या, ज्योति, रजनी, शशि, लवली, पिंकी, आशु, पल्लवी, ममता, नीतू, संगीता और वर्तमान में लक्की व आशु सहित कई बेटियां राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रही हैं .आज भी बड़ी संख्या में लड़कियां फुटबॉल का प्रशिक्षण ले रही हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है.

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