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बीसीसीआई की अगुआई के लिए सौरव गांगुली से बेहतर व्यक्ति नहीं हो सकता : विनोद राय

नयी दिल्ली : बीसीसीआई के 33 महीने के संचालन के दौरान भारतीय क्रिकेट का ‘अच्छा और बुरा’ दौर देखने वाले प्रशासकों की समिति (सीओए) के प्रमुख विनोद राय खुश है कि सौरव गांगुली के दर्जे का कोई व्यक्ति भारतीय क्रिकेट की बागडोर संभाल रहा है. बीसीसीआई से हटने के बाद पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक […]

नयी दिल्ली : बीसीसीआई के 33 महीने के संचालन के दौरान भारतीय क्रिकेट का ‘अच्छा और बुरा’ दौर देखने वाले प्रशासकों की समिति (सीओए) के प्रमुख विनोद राय खुश है कि सौरव गांगुली के दर्जे का कोई व्यक्ति भारतीय क्रिकेट की बागडोर संभाल रहा है.

बीसीसीआई से हटने के बाद पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) राय ने पीटीआई से कई मुद्दों पर बात की जिसमें विराट कोहली और रवि शास्त्री की जोड़ी को काम करने की पूरी आजादी देना, अनिल कुंबले का राष्ट्रीय कोच का पद छोड़ना, सीओए की साथी सदस्य डायना इडुल्जी से कई मुद्दों पर मतभेद, बीसीसीआई सीईओ राहुल जौहरी के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप और उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त लोढा समिति की सिफारिशों को लागू करने में सामने आई मुश्किलें शामिल हैं.

राय के विशेष साक्षात्कार के मुख्य अंश इस प्रकार हैं.

प्रश्न : सौरव गांगुली के बीसीसीआई अध्यक्ष बनने को आप किस तरह देखते हैं?

राय : मैं सौरव का बेहद सम्मान करता हूं… उसे बंगाल क्रिकेट संघ का प्रभावी तरीके से संचालन करते हुए देखकर और यह तथ्य से कि उसकी क्षमता और उपलब्धियों वाला क्रिकेटर बीसीसीआई का संचालन करेका, उसके प्रति मेरा सम्मान और बढ़ गया. मुझे नहीं लगता कि बीसीसीआई की बागडोर संभालने के लिए उससे बेहतर व्यक्ति हो सकता है.

प्रश्न : आप अपने 33 साल के कार्यकाल को कैसे देखते हो?

राय : यह काफी संतोषजनक अनुभव रहा क्योंकि अब चार पूर्व खिलाड़ी बड़े स्तर पर प्रशासन का हिस्सा हैं. सौरव बीसीसीआई अध्यक्ष हैं, बृजेश पटेल आईपीएल अध्यक्ष हैं, अंशमन गायकवाड़ और शांता रंगास्वामी शीर्ष परिषद में शामिल हैं. हम खिलाड़ी संघ बनाने में सफल रहे जिसे शुरुआत में स्वीकार नहीं किया जा रहा था. हमने महिला आईपीएल किया, हालांकि छोटे स्तर पर लेकिन मुकाबले शीर्ष स्तर के रहे. हम पूरी तरह से पारदर्शी रहे. सीओए की 100 से अधिक बैठकों (स्थिति रिपोर्ट) की जानकारी बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध है. लोढा समिति की सिफारिशों का जस का तस लागू किया गया.

प्रश्न : आपने स्वयं को ‘नाइटवाचमैन’ कहा था, लेकिन इस तरह के आरोप लगे कि सीओए अधिक समय तक रुके रहे. क्या गलत हुआ?

राय : मैं आपको बताऊंगा कि क्या गलत हुआ. (उच्चतम न्यायालय में) 92 अंतरिम याचकाएं दायर की गई. इसके बाद नया न्यायमित्र (पीएस नरसिम्हा) नियुक्त किया गया जिन्हें मध्यस्थता के लिए कहा गया और यह प्रक्रिया अगस्त 2019 में ही समाप्त हुई.

इन आरोपों के संदर्भ में कि हम प्रशासन में घुस गए, पर नौ अगस्त 2018 का उच्चतम न्यायालय का आदेश क्या था? यह कि हम सुधारवादी कदमों को लागू करेंगे और आम सभा के प्रभार संभालने तक बीसीसीआई के प्रशासन का संचालन करेंगे. लोगों ने आरोप लगा कि हम लंबे समय तक रहे लेकिन साथ ही असंतुष्ट लोग अदालत चले गए कि सीओए को चुनाव कराने का आदेश देने का अधिकार नहीं है.

प्रश्न : क्या अधिक मुश्किल था- कैग के रूप में राजनीतिक रसूख का सामना करना या सीओए के लिए काम करते हुए बीसीसीआई के ‘पुराने अधिकारियों’ से निपटना?

राय : यह (सीओए) बिलकुल भी चुनौतीपूर्ण नहीं था. मेरी उनसे (70 साल से अधिक के डिस्क्वालीफाई अधिकारियों से) कोई बात नहीं हुई. सिर्फ अदालत में पक्ष रखा गया. जहां तक आलोचना और मेरी छवि को नुकसान पहुंचाने का सवाल है तो मैं इन चीजों की परवाह नहीं करता. मेरा मानना है कि जो भी सुधारवादी कदमों का विरोध कर रहे है उसके निहित स्वार्थ हैं.

प्रश्न : अगर मैं आपको बाहरी व्यक्ति के रूप में देखने के लिए बोलूं तो क्या आपको लोढ़ा समिति की सिफारिशों के अनुसार हितों के टकराव से जुड़ा नियम कठोर नहीं लगता?

राय : अंतिम नतीजा, जिसमें शीर्ष अदालत का फैसला और हमारी सिफारिशें शामिल हैं, सबसे आदर्श स्थिति है. क्रिकेटरों का खेलने का दौर काफी काम होता है. उन्होंने खेल में अनुभव हासिल किया है कमेंटेटर, मेंटर या आईपीएल टीमों के कोचों के रूप में उनेक प्रवेश पर रोक क्यों लगे.

प्रश्न : इस तरह की धारणा है कि आपने विराट कोहली और रवि शास्त्री को पूरी आजादी दी. इस पर आपका रुख क्या है?

राय : इस बारे (इन आरोपों पर) में काफी कुछ कहा जा सकता है. अगर मुख्य कोच और कप्तान को पूरी आजादी दी जाती है, क्रिकेट मामलों में, तो इसमें क्या गलत है? मैं बिलकुल स्पष्ट कर दिया था कि हम चयन प्रक्रिया और क्रिकेट मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे.

प्रश्न : लेकिन क्या सीओए अनिल कुंबले प्रकरण से सीओए बेहतर तरीके से नहीं निपट सकते थे?

राय : नहीं, लेकिन मैं इस मुद्दे पर टिप्पणी नहीं करना चाहता. मैं कोच और क्रिकेटर दोनों के रूप में अनिल कुंबले का बेहद सम्मान करता हूं और इस बारे में बात नहीं करना चाहता.

प्रश्न : बीसीसीआई सीईओ राहुल जोहरी के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों में बड़े पैमाने पर माना गया कि जांच की प्रक्रिया सही नहीं थी. क्या आप इस मुद्दे पर प्रकाश डालेंगे?

राय : मैं संतुष्ट हूं कि उन्हें (जोहरी को) प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के तहत स्वीकृति मिली और साथ ही स्वतंत्र जांच की स्वीकृति दी गई. पहली शिकायतकर्ता गायब हो गई और हमें पता भी नहीं था कि क्या हुआ. जांच समिति ने दो और शिकायतकर्ताओं को अपना पक्ष रखने की स्वीकृति दी. इतना ही नहीं दो पदाधिकारियों ने भी गवाही दी. बिहार के एक बिलकुल ही स्वतंत्र व्यक्ति (आदित्य वर्मा) वकील के साथ आए और उन्हें गवाही देने की स्वीकृति दी गई. इन सभी को सुनने के बाद, सभी तीन स्वतंत्र सदस्य निष्कर्ष पर पहुंचे कि जोहरी के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप साबित नहीं किए जा सके, तीनों ने यह बात कही.

प्रश्न : लेकिन वीना गौड़ा (जांच समिति की सदस्य) की सीईओ के लिए लैंगिक संवेदनशीलता सत्र की सिफारिश करने पर आपका क्या नजरिया है?

उत्तर : वीना गौड़ा ने ब्रिटेन की एक घटना के आधार पर कहा कि इतने बड़े संगठन का सीईओ होने के कारण उन्हें लैंगिक संवेदनशीलता के सत्र से गुजरना चाहिए. ऐसी स्थिति में सजा कैसे दी जा सकती है. इस तरह के आरोप थे कि जांच 15 दिन में पूरी हो गई लेकिन यह गलत है. मैंने राहुल को 47 दिन तक छुट्टी पर भेजा.

प्रश्न : सीओए की साथी सदस्य डाइना इडुल्जी के साथ आपके मतभेद जगजाहिर हैं. वहां क्या गलत हुआ?

राय : हमारे बीच दो बड़े मुद्दों पर असहमति थी- जोहरी का यौन उत्पीड़न मामला और महिला राष्ट्रीय टीम के मुख्य कोच का मुद्दा तथा साथ ही मिताली राज और रमेश पोवार के मतभेद. मेरा मानना है कि पेशेवर असहमति हमेशा हो सकती है और अपना नजरिया होने में कुछ गलत नहीं है. मैं उनके नजरिये का सम्मान करता हूं. मैं 23 की शाम को सभी चीजों से नाता तोड़ लूंगा. यह मेरा सिद्धांत है कि मैं जब भी जाता हूं तो किसी फालतू चीज को अपने साथ नहीं ले जाता.

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