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ज्योतिषीय समाधान: ग्रहण योग क्या होता है ? जानें क्या कहते हैं सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी

सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी एक आधुनिक सन्यासी हैं, जो पाखंड के धुरविरोधी हैं और संपूर्ण विश्व में भारतीय आध्यात्म व दर्शन के तार्किक तथा वैज्ञानिक पक्ष को उजागर कर रहे हैं. सद्‌गुरुश्री के नाम से प्रख्यात कार्पोरेट सेक्टर से अध्यात्म में क़दम रखने वाले यह आध्यात्मिक गुरु नक्षत्रीय गणनाओं तथा गूढ़ विधाओं में पारंगत हैं […]

सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी एक आधुनिक सन्यासी हैं, जो पाखंड के धुरविरोधी हैं और संपूर्ण विश्व में भारतीय आध्यात्म व दर्शन के तार्किक तथा वैज्ञानिक पक्ष को उजागर कर रहे हैं. सद्‌गुरुश्री के नाम से प्रख्यात कार्पोरेट सेक्टर से अध्यात्म में क़दम रखने वाले यह आध्यात्मिक गुरु नक्षत्रीय गणनाओं तथा गूढ़ विधाओं में पारंगत हैं तथा मनुष्य के आध्यात्मिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक व्यवहार की गहरी पकड़ रखते हैं. आप भी इनसे अपनी समस्याओं को लेकर सवाल पूछ सकते हैं. इसके लिए आप इन समस्याओं के संबंध में लोगों के द्वारा किये गये सवाल के अंत में पता देख सकते हैं…

सवाल- क्या पेट की समस्या का कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध वास्तु से है ? मैं नए घर में उदर विकार से ग्रसित हूं.
-रघुराज उपाध्याय

जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि जी हां, पर की समस्या के सूत्र हमें वास्तुशास्त्र के पन्नों और उसके गलियारों से जुड़े मिलते हैं. वास्तु के नियमानुसार, यदि सोते समय हमारा सर उत्तर दिशा की तरफ़ हो, तो पाचन शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है. जिससे उदर विकार घेर लेता हैं और रफ़्ता रफ़्ता यह आपके पूरे शरीर को रुग्ण बना देता है. यदि शयन के समय सर पश्चिम दिशा में हो तो यह गैस और एसिडीटी की समस्या प्रदान करके आपकी देह को नाना प्रकार के दैहिक कष्टों की झड़ी लगा सकती है. अगर आग्नेय कोण यानी दक्षिण-पूर्व में जल मौजूद हो तो यह भी उदर विकार का कारक हो सकता है.

सवाल- ग्रहण योग क्या होता है. एक बड़े विद्वान के अनुसार इस योग ने सूर्य से अभीसप्त होकर मेरा जीवन ख़राब कर दिया है. इसका असर कब समाप्त होगा.
जन्म तिथि-29.08.1992, जन्म समय-13.33, जन्म स्थान- मधेपुरा
– उज्जवल पासवान

जवाब- सदगुरु श्री कहते हैं कि कुंडली में यदि षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में चंद्रमा के साथ राहु या केतु युति बना रहा हो तो यह योग ग्रहण योग कहलाता है. यह स्थिति चित्त को अस्थिर करके, व्यक्तित्व को नाटकीय बनाती है. इनका मन सदैव बेचैन रहता है. ये लोग अनावश्यक यत्र-तत्र भ्रमणशील होते है. बेसिर-पैर की बातें और अनावश्यक तर्क-वितर्क नहीं कुतर्क करते रहते हैं. इनमें एकाग्रता का अभाव होता है. जिससे शिक्षा पर बहुत नकारात्मक असर पड़ता है. इनका किसी एक कार्य में मन नहीं लगता. ये अपना करियर बार बार बदलते रहते हैं. इनके मस्तिष्क में अनावश्यक संदेह घर कर लेता है. अगर इनके साथ सूर्य भी बैठ जायें तब मानसिक विकार से कष्ट प्राप्ति का योग निर्मित होता है. क्रूर ग्रहों की दृष्टि पड़ने से मानसिक विक्षिप्तता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. रही बात आपके इससे ग्रसित होने की तो आपकी राशि सिंह और लग्न धनु है. सिंह राशि का चंद्रमा आपके नवम भाव में राहु नहीं वरन मित्र बृहस्पति और सूर्य के साथ आनन्द से बैठा हुआ है. राहु लग्न में और केतु सप्तम भाव में आसीन हैं। लिहाज़ा आपकी कुंडली में ग्रहण योग तो है ही नहीं। जब योग ही नहीं है तो उसके सूर्य से प्रभावित या ग्रसित होने का प्रश्न ही नहीं उठता.

सवाल- बहन जिससे विवाह करना चाहती है, मुझे लगता है कि वह दहेज की मांग सकता है और मेरे विचार से वो उसके लायक भी नहीं है. हमें क्या करना चाहिए? कृपया राह सुझायें.
बहन की जन्म तिथि-06.04.1980, जन्म समय-20.28, जन्म स्थान- ठाणे
-सावित्री शर्मा

जवाब-सदगुरुश्री कहते हैं कि आपकी बहन की राशि धनु और लग्न तुला है. उसके पति भाव का स्वामी मंगल लाभ भाव में विराज कर उत्तम योग निर्मित कर रहा है। षष्ठ भाव में लाभेश सूर्य और शुक्र अष्टम में अपने ही घर में आसन जमा कर उसके सुखद जीवन का सिर्फ़ संकेत ही नहीं दे रहा बल्कि तुरही बजा रहे हैं. भावी दांपत्य जीवन की पड़ताल के लिए वर वधु दोनों के जन्म विवरण की भी दरकार है. आपकी पसंद नापसंद और दहेज की आशंका व्यक्तिगत मनन और सामाजिक चिंता का सबब तो है, पर इसका उत्तर ज्योतिषिय परिधि के बाहर है। पर 39 वर्ष की कन्या के दाम्पत्य सुख के लिए ज्योतिषिय गणना, व्यक्तिगत, सामाजिक व पारिवारिक पृष्ठभूमि के साथ बढ़ती उम्र पर मनन भी आवश्यक है. इसका ध्यान ज़रूर रखें और इसे प्राथमिकता दें.

सवाल- नक्षत्र क्या और कितने होते हैं। ज्योतिष में श्रेष्ठ नक्षत्र कौन सा है.
-आशीष राय

जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि आकाश मण्डल में सितारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। प्रत्येक समूह में चार युग्म होते हैं जिन्हें नक्षत्र का एक एक चरण कहते हैं यानी चार समूहों का एक नक्षत्र होता है. इस प्रकार कुल 27 नक्षत्र होते हैं. हर नक्षत्र का गुण-धर्म भिन्न भिन्न है. किसी एक को उत्तम या श्रेष्ठ कहना मुश्किल है. क्योंकि श्रेष्ठ की परिभाषा सबके लिए पृथक है. पर शनि के नक्षत्र पुष्य को उत्तम नक्षत्र माना गया है. कार्तिक मास में पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र को अप्रतिम कहा गया है. रविवार और गुरुवार को पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र को प्राचीन ग्रंथों में बेहद शुभ बताया गया है. इसके अलावा अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, रेवती नक्षत्र भी उत्तम माने गये हैं.

सवाल- क्या पूजा-पाठ, साधना-उपासना या दान-पुण्य से कष्टों का निवारण हो सकता है? या ये सब बेकार की बातें हैं?
– निशा मुकेश

जवाब- सद्‌गुरुश्री कहते हैं कि आपके द्वारा उल्लेखित ये सारे माध्यम एक दूसरे से बिलकुल जुदा हैं. ध्यान और योग के माध्यम से स्वयं के अंदर प्रविष्ट होने की उस पद्धति का नाम उपासना है, जिसके माध्यम से आप अपना और अपनी आत्मा और स्वयं का वास्तविक बोध करके खुद को आंतरिक ऊर्जा और शक्ति प्रदान करने की दिशा में सक्रिय होते हैं. उपासना का अर्थ है स्वयं के साथ बैठना यानी ख़ुद को जानना. यह आध्यात्म का हिस्सा है। आप जिसे पूजा कह रही हैं, दरअसल वह प्राचीन कर्मकांड का एक हिस्सा मात्र हैं, जिसमें पुराने कर्मों पर तकनीकी रूप से नये सकारात्मक कर्मों की परत चढ़ाने का प्रयास किया जाता है. लेकिन कालांतर में कर्मों के उपपरिलेखन की इस पद्धति पर वक्त की धूल के साथ कई असत्य, अतार्किक, अवैज्ञानिक, अनावश्यक और व्यक्तिगत स्वार्थपरक कर्मों की तहें चढ़ गईं, जिससे इसकी गुणवत्ता और प्रामाणिकता में फर्क आ गया, और काफी हद तक वह भटक कर बेमानी हो गईं. लेकिन किसी विद्वान की सहायता से इसे आजमाने में कोई बुराई भी नहीं है. दान-पुण्य एक प्रकार का सकारात्मक कर्म है, जिससे किसी की सहायता ही होती है. और अपना हर कर्म लौट कर स्वयं पर ही आता है. सनद रहे, कि शुद्ध अंत:करण व स्वयं पर पूर्ण विश्वास से सही दिशा में अनवरत सटीक कर्म अवश्य ही आपकी आर्थिक स्थिति बदल सकता है. पर कष्टों के निवारण का असली मार्ग आपके कर्मों से होकर गुज़रता है और कर्म काया के साथ मन व वचन से भी होते हैं. लिहाज़ा सनद रहे कि सही दिशा में सतत सटीक कर्म के साथ मधुर वाणी और सकारात्मक सोच शनै: शनै: आपके समस्त कष्टों को आमूलचूल रूप से नष्ट करने की क्षमता रखते हैं.

(अगर आपके पास भी कोई ऐसी समस्या हो, जिसका आप तार्किक और वैज्ञानिक समाधान चाहते हों, तो कृपया प्रभात खबर के माध्यम से सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी से सवाल पूछ सकते हैं. इसके लिए आपको बस इतना ही करना है कि आप अपने सवाल उन्हें सीधे saddgurushri@gmail.com पर भेज सकते हैं. चुनिंदा प्रश्नों के उत्तर प्रकाशित किये जायेंगे. मेल में Subject में प्रभात ख़बर अवश्य लिखें.)

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