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शारदीय नवरात्र आठवां दिन : ऐसे करें महागौरी दुर्गा की पूजा….होंगी प्रसन्‍न

‘जो श्वेत वृषभ पर आरूढ होती हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, सदा पवित्र रहती हैं तथा महादेवजी को आनंद प्रदान करती हैं, वे महागौरी दुर्गा मंगल प्रदान करें.’ दस महाविद्याओं की महिमा-8 दस महाविद्याओं में पीताम्बरा विद्या के नाम से विख्यात बगलामुखी की पूजा-उपासना प्रायः शत्रुभय से मुक्त होने और वाक्-सिद्धि के लिए की […]

‘जो श्वेत वृषभ पर आरूढ होती हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, सदा पवित्र रहती हैं तथा महादेवजी को आनंद प्रदान करती हैं, वे महागौरी दुर्गा मंगल प्रदान करें.’
दस महाविद्याओं की महिमा-8
दस महाविद्याओं में पीताम्बरा विद्या के नाम से विख्यात बगलामुखी की पूजा-उपासना प्रायः शत्रुभय से मुक्त होने और वाक्-सिद्धि के लिए की जाती है.
भगवती बगलामुखी की उत्पत्ति के विषय में कथा आती है कि सत्ययुग में संपूर्ण जगत को नष्ट करनेवाला तूफान आया. प्राणियों के जीवन पर संकट आया देखकर महाविष्णु चिंतित हो गये और वे सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर भगवती को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगे.
श्रीविद्या ने उस सरोवर से निकलकर पीताम्बरा के रूप में उन्हें दर्शन दिया और बढ़ते हुए जल-वेग तथा विध्वंसकारी उत्पात का स्तंभन किया. वास्तव में दुष्ट वही है, जो जगत के या धर्म के छंद का अतिक्रमण करता है.
बगला उसका स्तंभन किंवा नियंत्रण करनेवाली महाशक्ति हैं. वे परमेश्वर की सहायिका हैं और वाणी, विद्या तथा गति को अनुशासित करती हैं. ब्रह्मास्त्र होने का यही रहस्य है. ‘ब्रह्मद्विषे शरवे हन्त वा उ’ आदि वाक्यों में बगला-शक्ति ही पर्याय रूप में संकेतित हैं. वे सर्वसिद्धि देने में समर्थ और उपासकों की वांछाकल्पतरू हैं.
पुत्र-लाभ, धन-रक्षा और शत्रु-विजय के लिए भगवती धूमावती की साधना-उपासना का विधान है. इनके ध्यान में बताया गया है कि ये भगवती विवर्णा, चंचला, दुष्टा एवं दीर्घ तथा गलित अंबर धारण करनेवाली, खुले केशोंवाली विरल दंतवाली, विधवारूप में रहनेवाली, काक-ध्वजवाले रथ पर आरूढ़, लंबे-लंबे पयोधरोंवाली, हाथ में सूप लिये हुए, अत्यंत रूक्ष नेत्रोंवाली, विरूपा और भयानक आकृतिवाली होती हुई भी धूमावती शक्ति अपने भक्तों के कल्याण के लिए सदा तत्पर रहती हैं.
मातंगी, मतंग मुनि की कन्या कही गयी है. वस्तुतः वाणी-विलास की सिद्धि प्रदान करने में इनका कोई विकल्प नहीं. चाण्डालरूप को प्राप्त शिव की प्रिया होने के कारण इन्हें चाण्डाली या उच्छिष्ट चाण्डाली भी कहा गया है. गृहस्थ-जीवन को सुखी बनाने, पुरूषार्थ-सिद्धि और वाग्विलास में पारंगत होने के लिए भगवती मांतगी की साधना श्रेयस्कर है.
(क्रमशः)
प्रस्तुति : डॉ एन के बेरा

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