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Textile Waste Recycling: दुनिया का 8.5 फीसदी टेक्सटाइल वेस्ट भारत में निकलता है. इसमें से लगभग 10 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा पुराना या बेकार कपड़ा कचरे में फेंक दिया जाता है. ये पुराना कपड़ा 200 साल में भी खत्म नहीं होता. जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है. ऐसे में पुराने कपड़े को रीसाइकिल या अप साइकिल करके लाखों-करोड़ों रुपये कमाए जा सकते हैं. साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाने से बचाया जा सकता है.
क्यों जरूरी है रीसाइक्लिंग
कपड़ा उत्पादन में बहुत अधिक रसायन, पानी, ऊर्जा और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की ज़रूरत होती है. वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार एक सूती शर्ट बनाने में 2,700 लीटर पानी लगता है. उपभोक्ता इस शर्ट को उपयोग करने के बाद पुरानी होने पर कचरे में फेंक देते हैं, तो इससे धन और संसाधन दोनों बरबाद होता है. पुराने कपड़े अधिकतर लैंडफिल में दबा दिए जाते हैं, जहां इसे सड़ने में 200 से अधिक साल लगते हैं. सड़ने की प्रक्रिया के दौरान ये कपड़े ग्रीनहाउस मीथेन गैस पैदा करते हैं. भूजल व मिट्टी में ज़हरीले रसायन, रंग छोड़ते हैं. इसीलिए अब टेक्सटाइल वेस्ट की रीसाइक्लिंग और अपसाइक्लिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है.
क्या है टेक्सटाइल अपसाइक्लिंग
कपड़े की ‘रीसाइक्लिंग’ के साथ ही एक नया कॉन्सेप्ट ‘अपसाइक्लिंग’ भी आया है. इसमें बेकार कपड़ों से नए उत्पाद बनाकर बाजार में उतारे जा रहे हैं. चेन्नई की दो संस्थाएं बेकार कपड़ों को अपसाइकिल करने का काम करती हैं. इनका नाम है ओह स्क्रैप और अपसाइक्ली. दोनों ही संस्थाएं महिलाएं चलाती हैं. पुरानी कतरनों और कपड़ों से ये बैग और पिट्ठू बैग बनाती हैं. इसके लिए महिलाओं को जोड़ा गया है. इससे उन्हें रोजगार के अवसर भी मिल रहे हैं. अपसाइक्ली की संस्थापक नम्रता रंगनाथन बेकार कपड़ा और कतरनें दर्जियों से लेती हैं. आमतौर पर दर्जी इसका कोई इस्तेमाल नहीं करते हैं और कचरे में फेंक देते हैं. लेकिन नम्रता दर्जियों से इस कपड़े को लेकर नए उत्पाद बना रही हैं.
रीसाइक्लिंग के मैदान में स्टार्टअप्स
पुराने कपड़ों की रीसाइक्लिंग में युवा भी उतर आए हैं. उन्होंने नए स्टार्टअप्स शुरू किए हैं. ये स्टार्टअप्स टेक्सटाइल रिकवरी फैसेलिटी पर काम कर रहे हैं. पुराने कपड़ों और जूते-चप्पल को रीसाइकिल करके जरूरतमंदों को पहुंचाया जा रहा है. सजावट के सामान जैसे हैंडबैग, स्टेशनरी, खिलौने बनाए जा रहे हैं. हरियाणा का पानीपत शहर टेक्सटाइल रीसाइकिल के ग्लोबल हब के रूप में उभर रहा है. बंगलुरु और तमिलनाडु भी टेक्सटाइल वेस्ट मैनेजमेंट पर कार्य कर रहा है.
रीसाइकिल से कैसे कमा सकते हैं करोड़ों
टेक्सटाइल रीसाइक्लिंग में पुराने कपड़ों को नए उत्पादों में बदला जा सकता है. इसमें पुराने कपड़ों को मशीनों से अलग-अलग रेशों में तोड़ा जाता है. इसके बाद कपड़ों को रासायनिक प्रक्रियाओं से गुजारा जाता है. फिर इन रेशों का उपयोग नए वस्त्रों या अन्य उत्पादों को बनाने के लिए किया जाता है. उदाहरण के लिए पुराने कपड़ों से नए कपड़े, कंबल या तकिया के कवर बनाए जा सकते हैं. टेक्सटाइल-टू-टेक्सटाइट प्रक्रिया में पुराने कपड़ों को नए कपड़ों में बदला जाता है. टेक्सटाइल-टू-अन्य प्रक्रिया में पुराने कपड़ों को अन्य उत्पादों जैसे इंसुलेशन या ऑटोमोबाइल पार्ट्स में बदलने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
रीसाइक्लिंग की लागत
कपड़े की रीसाइक्लिंग में 35 से 65 रुपये प्रति किलोग्राम का खर्च आता है. जबकि मार्जिन 30 से 70 प्रतिशत का दावा किया जाता है. रीसाइक्लिंग में पुराने कपड़े को इकठ्ठा करना, उसकी कटिंग-स्रेडिंग का खर्च 3 से 7 रुपये प्रति किलोग्राम, फाइबर प्रॉसेसिंग में 10 से 15 रुपये प्रति किलोग्राम, लेबर 6 से 10 रुपये प्रति किलोग्राम, पैकिंग व ट्रांसपोर्ट में 5 से 10 रुपये प्रति किलोग्राम का खर्च और अन्य खर्च में 5 से 10 रुपये होता है. रीसाइक्लिंग के बाद बाजार में रीसाइकिल फाइबर 60 से 100 रुपये प्रति किलोग्राम का रेट मिलता है. यदि इसे रोल करके बेचा जाए तो 150 से 300 रुपये प्रति किलोग्राम का रेट मिलता है.
क्या मशीनें चाहिए?
- कटिंग एंड स्रेडिंग मशीन-इससे कपड़ों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है.
- फाइबर ओपनर मशीन-टुकड़ों से धागे निकालने के लिए इस मशीन की जरूरत पड़ती है.
- फाइबर क्लीनिंग मशीन-धागों की सफाई इस मशीन से की जाती है.
- बैलिंग मशीन-धागों का बंडल बनाने के काम आती है.
कितनी जगह चाहिए?
कपड़ों की रीसाइकिल का काम शुरू करने के लिए 3 से 4 हजार स्क्वायरफिट जगह की जरूरत पड़ती है. इसके लिए चार मशीनों की जरूरत पड़ती है. सभी मशीनें 8 से 9 लाख रुपये में मिल जाएंगी. इसके अलावा कम से कम दो लाख रुपये वर्किंग कैपिटल चाहिए. जिससे कच्चा माल लेकर काम शुरू किया जा सके. जब ये टेक्सटाइल वेस्ट से धागे बन जाते हैं तो इसे सीधे टेक्सटाइल मिल या फाइबर डीलर को भी बेचा जा सकता है. इस बाजार को समझने के लिए अलग-अलग शहरों में होने वाले टेक्सटाइल इवेंट में जरूर जाना चाहिए. इससे मार्केट को समझने और उत्पाद को खपाने का रास्ता मिल जाता है. इसके अलावा प्रोडक्ट को बेचने के लिए कई ऑनलाइन प्लेटफार्म भी हैं, उनमें भी पंजीकरण जरूर करना चाहिए.
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