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Textile Waste: पुराने कपड़े ठिकाने लगाना बना चुनौती

Textile Waste: एक सूती शर्ट बनाने में 2,700 लीटर पानी लगता है. जब कपड़ों को कचरे में फेंक दिया जाता है तो ये और अधिक नुकसान पहुंचाते हैं. लैंडफिल में इन कपड़ों को सड़ने में 200 से अधिक साल लग सकते हैं. सड़ने की प्रक्रिया के दौरान कपड़े ग्रीनहाउस मीथेन गैस उत्पन्न करते हैं.

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Textile Waste: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार मन की बात में टेक्सटाइल रीसाइकिलिंग पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि पुराने कपड़े या टेक्सटाइल वेस्ट दुनिया के लिए चिंता की वजह बन गया है. पुराने कपड़ों को जल्द से जल्द हटाकर नए कपड़े लेने का चलन बढ़ गया है. इससे पुराने कपड़ों की संख्या बढ़ती जा रही है. यही पुराने कपड़े टेक्सटाइल वेस्ट बन जाते हैं. भारत दुनिया का तीसरा देश है जहां सबसे ज्यादा टेक्सटाइल वेस्ट निकलता है. यहां एक प्रतिशत से भी कम टेक्सटाइल वेस्ट को नए कपड़ों में रीसाइकिल किया जाता है. इसलिए हमारे सामने भी बड़ी चुनौती है. पीएम मोदी ने इस नए मुद्दे को उठाकर साामन्य लोगों को इस चुनौती के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है. हम भी समझते हैं कि टेक्सटाइल वेस्ट क्या है और उसकी चुनौतियां क्या हैं?

क्यों जरूरी है टेक्सटाइल रीसाइकिलिंग

आइए नजर डालते हैं कि टेक्सटाइल रिसाइकिलिंग क्यों जरूरी है? रोडरनर वेबसाइट के अनुसार कपड़ों का पर्यावरण भी प्रभाव पड़ता है. कपड़ा उद्योग में कपड़ा उत्पादन में बहुत ज़्यादा मात्रा में रसायन, पानी, ऊर्जा और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की ज़रूरत होती है. वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट कहती है कि एक सूती शर्ट बनाने में 2,700 लीटर पानी लगता है. जब उपभोक्ता कपड़ों को कचरे में फेंक देते हैं, तो इससे न केवल धन और संसाधन बरबाद होता है. बल्कि लैंडफिल में इन सामग्रियों को सड़ने में 200 से अधिक साल लग सकते हैं. सड़ने की प्रक्रिया के दौरान कपड़े ग्रीनहाउस मीथेन गैस उत्पन्न करते हैं. भूजल और हमारी मिट्टी में ज़हरीले रसायन और रंग छोड़ते हैं. इसीलिए टेक्सटाइल वेस्ट और उसके रीसाइकिलिंग को लेकर चिंता होने लगी है. इसी से बचाव के लिए टेक्सटाइल वेस्ट की रीसाइकिलिंग करने की प्रक्रिया पर काम शुरू किया. सामान्य भाषा में ये वस्त्र उद्योग से निकलने वाले कचरे को नए उत्पादों या सामग्रियों में बदलने की प्रक्रिया है. ये पर्यावरण और समाज के लिए भी फायदेमंद है.

क्या होता है नुकसान

कपड़ा उद्योग से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है. इस दौरान अधिकतर टेक्सटाइल वेस्ट को जला दिया जाता है या जमीन में गड्ढा खोदकर (लैंडफिल) दबा दिया जाता है.में डाल दिया जाता है. पुराने कपड़ों की रीसाइकिलिंग से पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचता है. वहीं रीसाइकिलिंग प्रोजेक्ट से रोजगार के अवसर भी पैदा होते हैं. जिसका सीधा फायदा समाज को होता है. कपड़ा रीसाइकिलिंग के लिए कई तरीके हैं. जैसे फाइबर-टू-फाइबर रीसाइकिलिंग. इसमें पुराने कपड़ों को नए कपड़ों में बदलने के लिए उपयोग किया जाता है. इसके अलावा पुराने कपड़ों को अन्य उत्पादों में बदलने, कुर्सियों और कार की सीटों के लिए गद्दी, सफाई के कपड़े और औद्योगिक कंबल बनाए जाते हैं.

हम क्या कर सकते हैं

  • पुराने कपड़ों को रीसाइकिलिंग सेंटरों पर ले जाएं.
  • कम कपड़े खरीदें और अपने कपड़ों को लंबे समय तक इस्तेमाल करें.
  • कपड़े दान करें.
  • अपने पुराने कपड़ों को दान करें, ताकि वे फिर से इस्तेमाल किए जा सकें.
  • कपड़ा रीसाइकिलिंग के बारे में जागरूकता फैलाएं.

वर्तमान में देश में क्या हो रहा है?

पीएम नरेंद्र मोदी ने मन की बात में टेक्सटाइल रिसाइकिलिंग की चुनौती पर बात के साथ ही इससे निपटने के प्रयास के बारे में भी जानकारी दी है. कई भारतीय स्टार्टअप टेक्सटाइल रिकवरी फैसेलिटी पर कम कर रहे हैं. कई युवा पुराने कपड़ों और जूते-चप्पल को रीसाइकिल करके जरूरतमंदों तक पहुंचा रहे हैं. टेक्सटाइल वेस्ट से सजावट के सामान जैसे हैंडबैग, स्टेशनरी, खिलौने बनाए जा रहे हैं. हरियाणा का पानीपत शहर टेक्सटाइल रीसाइकिल ग्लोबल हब के रूप में उभर रहा है. इसी तरह बंगलुरु और तमिलनाडु भी टेक्सटाइल वेस्ट मैनेजमेंट में जुटा हुआ है. लेकिन अब जरूरत इसे बड़े स्तर पर करने की है.

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