Earthquake: आंकड़ों के अनुसार जापान में हर साल 1500 से 2000 छोटे बड़े भूकंप आते हैं. दुनिया भर में 6 या उससे अधिक तीव्रता वाले जितने भी भूकंप आते हैं, उनमें से 20 फीसदी भूंकप जापान में आते हैं. इसका कारण है जापान की भौगोलिक स्थिति. पृथ्वी पर 16 टेक्टोनिक प्लेट होती हैं. जो देश इन टेक्टोनिक प्लेट की सीमा पर होते हैं, वहां भूकंप सबसे ज्यादा आते हैं. क्योंकि ये प्लेट धीरे-धीरे खिसकती रहती हैं. जब ये प्लेट एक दूसरे टकराती हैं या फिर एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे घुसती है तो उससे पैदा होने वाली ऊर्जा की तरंगे भूकंप के रूप में पृथ्वी की सतह पर पहुंचती हैं. चूंकि, जापान ऐसी जगह स्थित है जहां चार टेक्टोनिक प्लेट एक दूसरे से मिलती हैं. ये प्लेट हैं पैसिफिक प्लेट (इसे पैसिफिक रिंग ऑफ फायर भी कहते हैं.), नॉर्थ अमेरिकन प्लेट, यूरेशियन प्लेट, फिलीपीन प्लेट. इन प्लेटों का मूवमेंट जापान में भूकंप आने का सबसे बड़ा कारण है.
जापान में सबसे ज्यादा भूकंप क्यों?
धरती तीन परतों क्रस्ट, मेंटल, कोर से मिलकर बनी है. क्रस्ट धरती की सबसे बहारी परत है. जो ठोस चट्टान की तरह है. क्रस्ट और अपर पार्ट ऑफ मेंटल से बनी संरचना को टेक्टोनिक प्लेट कहते हैं. धरती के कोर में मौजूद गर्मी से कन्वेक्शन करंट निकलते हैं. जिसकी वजह से टेक्टोनिक प्लेट्स धीरे-धीरे चलती रहती हैं. इन चार टेक्टोनिक प्लेटों में से पैसिफिक प्लेट में सबसे ज्यादा मूवमेंट दिखता है. इसीलिए पैसिफिक प्लेट की सीमा को पैसिफिक रिंग ऑफ फॉयर कहते हैं. क्योंकि सबसे ज्यादा टेक्टोनिक एक्टिविटी के कारण दुनिया में यहां सबसे ज्यादा भूकंप आते हैं. साथ ही यहां ज्वालामुखी (वैल्कोनो) भी सबसे ज्यादा हैं. चार-चार टेक्टोनिक प्लेटों की सीमा पर स्थित होने के कारण ही जापान में सबसे अधिक भूकंप और सुनामी आती हैं. इसीलिए जापान के लोगों इन भयंकर आपदाओं के साथ जीना सीख लिया है.
जापान के सबसे विनाशकारी भूकंप
- 11 मार्च 2011 को जापान के इतिहास का सबसे विनाशकारी भूकंप आया था. जिसे सुनामी भी कहा जाता है. ये भूकंप और सुनामी 9 तीव्रता का था. जिससे समुद्र में 40 मीटर से अधिक ऊंची लहरें पैदा की. इससे जापान का तोहोकू शहर बुरी तरह से बर्बाद हो गया था. इस सुनामी के कारण 15500 से अधिक लोग मारे गए थे. 4.50 लाख से अधिक लोग बेघर हो गए थे. यही नहीं फुकुशिमा दाइची परमाणु ऊर्जा संयंत्र के तीन परमाणु रिएक्टर भी ध्वस्त हो गए थे. जिससे आसपास के कई किलोमीटर के हिस्से में रेडियोएक्टिव प्रदूषण फैल गया था. जिससे उबरने में जापान को काफी समय लगा था.
- इसी तरह 1 जनवरी 2024 को जापान में 7.6 तीव्रता का भूकंप आया था. इसे नोटो पेनिन्सुला भूकंप (Noto Peninsula Earthquake) नाम दिया गया था. इस एक दिन में एक नहीं 155 से अधिक छोटे बड़े भूकंप आए थे. जो कि जापान की राजधानी टोक्यो से 500 किलोमीटर दूर है लेकिन इसके झटके वहां तक महसूस किए गए थे.
जापान ने बचाव के लिए क्या किया?
अब आते हैं असली मुद्दे पर. जापान विश्व में सबसे खतरनाक भौगोलिक स्थिति में बसा है और उस पर हर समय भूकंप व सुनामी का खतरा मंडराता रहता है. ऐसे में जापान इन संभावित खतरों से निपटने के लिए उपाय भी करता है. जिससे जनहानि के साथ-साथ अन्य नुकसान से बचा जा सके. एक के बाद एक खतरनाक भूकंप और सुनामी के अनुभव से बचाव के लिए जापान ने कई लेयर के सुरक्षात्मक प्रबंध किए हैं. इसमें ताइशीन स्टैंडर्ड, शाईशीन स्टैंडर्ड और मेनशीन स्टैंडर्ड. जापान में भूकंप से बचने के लिए भवन निर्माण के ये तीन मानक तय किए गए हैं. इन मानकों को जापान पूरी कड़ाई से पालन कराता है. इसी करण 2011 के बाद 2024 में जब 7.6 तीव्रता का भूकंप आया तो, जनहानि का स्तर बहुत कम था. 2011 की सुनामी के बाद जापान ने बचाव के कड़े नियम बनाए. जिससे नुकसान को कम से कम किया जा सके.
जापान की भूकंप से निपटने की तैयारियां
- भूकंप व सुनामी का अर्ली वार्निंग सिस्टम
- भूकंप के झटकों को सहने वाली इमारतों का निर्माण
- भूकंप और सुनामी के खतरों को कम करने वाले बचाव प्रक्रिया का प्रशिक्षण
- खतरों कम करने वाले प्रशिक्षण का अभ्यास
- भूकंप और सुनामी से प्रभावितों के लिए बचाव केंद्र
- भूकंप से बचाव के सर्वाइवल किट, जिसमें टॉर्च, फर्स्ट एड किट, राशन, पानी, मास्क, ग्लब्स आदि होता है
सुनामी से बचाव की व्यवस्था
- समु्द्र तट पर पेड़ लगाकर सुनामी कंट्रोल फॉरेस्ट बनाए गए
- समुद्र तट पर छोटे-छोटे बांध (Coastal Dikes) बनाए गए, जिससे सुनामी के असर को कम किया जा सके
- जापान की 22 हजार मील लंबे समुद्री किनारों में से 40 फीसदी पर दीवार बनाई गई, जिससे समुद्री लहरों से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके
- इवैक्युएशन टॉवर बनाए गए,जिससे लोग इन टॉवर के हाई प्वाइंट पर पहुंचकर सुरक्षित रहें.
ऐसे बनती हैं मल्टी स्टोरी बिल्डिंग
जापान ने उच्च तीव्रता वाले भूकंपों के कारण सामान्य भवन से लेकर मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनाने के लिए कड़े मानक तय किए हैं. इन मानकों के अनुसार ही वहां मकान बनाए जाते हैं. समय-समय पर इन मानकों को विश्लेषण भी जापान के इंजीनियर करते हैं.
- ताइशीन स्टैंडर्ड (Taishin Standard)
ताइशिन स्टैंडर्ड भूकंप रोधी मकान बनाने का प्राथमिक मानक है. इसमें मकान के बीम, खंभे और दीवारें न्यूनतम मोटाई के साथ बनाने के निर्देश हैं. जो भूकंप के तीव्र ज़मीनी झटकों को अवशोषित कर सकें. इस मॉडल में बार-बार झटकों या तेज़ झटकों से मकान को नुकसान पहुंच सकता है. - साइशीन स्टैंडर्ड (Seishin Standard)
जापान में भूकंपरोधी भवन निर्माण साइशीन स्टैंडर्ड ऊंची मल्टीस्टोरी इमारतों के लिए बनाया गया है. इसमें ऐसे भूकंप के झटकों को अवशोषित करने के लिए डैम्पर्स (रबर मैट्स) का इस्तेमाल किया जाता है. से मैट्स निश्चित मानक के अनुसार बिल्डिंग की नींव में लगाई जाती हैं. जिससे भूकंप के झटकों और तरंगों को रबर की मैट अपने अंदर अवशोषित कर ले. इससे बिल्डिंग में कम से कम कंपन होता है. - मेनशीन स्टैंडर्ड (Menshin Standard)
जापानी भूकंपरोधी भवन डिजाइन में मेनशीन स्टैंडर्ड सबसे एडवांस तकनीक है. इसमें बिल्डिंग की नींव में ऐसी व्यवस्था की जाती है कि उस पर भूकंप का न्यूनतम असर होता है. इस तकनी में बिल्डिंग के स्ट्रक्चर को जमीन से अलग रखा जाता है. जिससे ये भूकंप का प्रतिरोध करने की जगह उसके साथ मूव करे. मेनशीन स्टैंडर्ड में सीसा, स्टील और रबर की अलग-अलग परतों का इस्तेमाल किया जाता है. जिससे भूकंप के झटकें इन अलग-अलग परतों में ही अवशोषित हो जाए. जापान की राजधानी टोक्यो में बना स्काई ट्री टॉवर इसी मानकों पर बना है. ये दुबई के बुर्ज खलीफा के बाद दूसरी सबसे बड़ा टॉवर है. इस टॉवर पर 9.0 तीव्रता में भी खंरोच तक नहीं आई थी.
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