Rule 267 Rajya Sabha : संसद के शीतकालीन सत्र का पांचवां दिन भी हंगामे की भेंट चढ़ गया. राज्यसभा को स्थगित करने से पहले सभापति जगदीप धनखड़ ने अपनी पीड़ा व्यक्त की और कहा कि हंगामा करके हम बहुत ही खराब मिसाल पेश कर रहे हैं. उन्होंने सदन को बताया कि शुक्रवार को उनके पास अडाणी समूह के भ्रष्टाचार के खिलाफ और अन्य मुद्दों पर चर्चा के लिए नियम 267 के तहत 17 नोटिस आए थे. उन्होंने कहा कि नियम 267 के तहत नोटिस देकर सांसद इसे सदन को बाधित करने का हथियार बना रहे हैं, जो कहीं से भी उचित नहीं है.
सभापति के इतना कहते ही सदन में हंगामा शुरू हो गया. धनखड़ ने कहा कि यह समय की बर्बादी है. प्रश्नकाल और समय की हानि से जनता को नुकसान होता है. अपनी इन्हीं हरकतों से हम हंसी का पात्र बनते जा रहे हैं. सभापति के इतना कहने पर भी जब सदन में विपक्षी दलों का हंगामा जारी रहा, तो उन्होंने सदन को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया.
25 नवंबर से शुरू हुआ है संसद का शीतकालीन सत्र
संसद का शीतकालीन सत्र 25 नवंबर से शुरू हुआ है, लेकिन शुक्रवार यानी संसद सत्र के शुरू होने के पांचवें दिन भी सदन की कार्यवाही नहीं चल पाई. विपक्षी दल अदाणी समूह के भ्रष्टाचार, संभल हिंसा और मणिपुर हिंसा सहित कई अन्य मसलों पर नियम 267 के तहत चर्चा की मांग कर रहे थे. सभापति जगदीप धनखड़ का कहना था कि ये सभी मुद्दे सदन में कई बार उठ चुके हैं और नियम 267 के तहत इनपर चर्चा कराने की जरूत नही हैं, बस इसी बात पर विपक्ष का हंगामा आज सत्र के पांचवें दिन भी जारी रहा.
क्या है नियम 267 जिसपर मचा है बवाल?
राज्यसभा की नियमावली में नियम 267 का बहुत महत्व है. इस नियम के तहत चर्चा कराए जाने पर सदन के तमाम अन्य कामकाज को रोक दिया जाता है. इस नियम के तहत किसी मसले पर चर्चा तभी होती है, जब वह विषय बहुत महत्वपूर्ण और गंभीर हो. नियम 267 दरअसल सभापति को यह अधिकार देता है कि वह सदन के तमाम कार्यों को निलंबित कर दें और इस नियम के तहत चर्चा कराएं. इस नियम के तहत चर्चा कराने के लिए कोई भी सांसद नोटिस दे सकता है, लेकिन इस नियम के तहत किसी मसले पर चर्चा होगी या नहीं, यह पूरी तरह से सभापति के स्वविवेक पर निर्भर है.
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सभापति ने क्यों कहा हम गलत मिसाल पेश कर रहे हैं?
राज्यसभा के सभापति ने विपक्ष के हंगामे पर कहा कि नियम 267 के तहत चर्चा के आए किसी भी नोटिस को वे स्वीकार नहीं करते हैं. उन्होंने कहा कि इस नियम को हथियार बनाकर हम सदन का समय बर्बाद कर रहे हैं और गलत मिसाल पेश कर रहे हैं. उनके यह कहने का आशय यह था कि सदन के पास कई जनहित के कार्य हैं, जिनपर चर्चा होनी चाहिए. ताकि आम आदमी का कामकाज बाधित ना हो. सदन को चलाने में प्रति मिनट 2.5 लाख रुपये का खर्च आता है. ऐसे में अगर सदन का समय हंगामे की भेंट चढ़े, तो जनता के बीच गलत संदेश जाएगा, जो किसी भी तरह सही नहीं है.
सदन को चलाने में क्यों होता है इतना खर्च
संसद आमतौर पर साल में तीन बार बैठती है, जिसमें संसद का बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र शामिल होता है. कोई सत्र कितने दिन का होगा, इसे लेकर कोई निर्धारित नियम नहीं है. लेकिन जब सत्र चलता है तो उस दौरान सदन रोज बैठती है. संसद के संचालन में काफी खर्च आता है और औसतन सदन के संचालन में प्रति मिनट 2.5 लाख रुपए का खर्च आता है. सदन अमूमन छह घंटे चलती है और एक दिन सदन नहीं चलने पर करोड़ों रुपए का नुकसान होता है. एक घंटे में ही 1.5 करोड़ रुपए का नुकसान हो जाता है. यह खर्च वेतन, भत्ते और सुरक्षा इंतजामों पर होता है. पहली लोकसभा प्रतिवर्ष 135 दिन बैठी थी जो 17वीं में महज 55 दिन हो गई.
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