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आत्महत्याएं रोकी जायें

पिछले साल 1.64 लाख से अधिक लोगों ने खुदकुशी की थी, जिनमें से लगभग 1.05 लाख लोगों की सालाना आमदनी एक लाख रुपये से कम थी.

वर्ष 2021 में आत्महत्या करने वालों में सबसे अधिक संख्या दिहाड़ी कामगारों, स्वरोजगार से जुड़े लोगों, बेरोजगारों और खेती-किसानी से जुड़े लोगों की रही. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल 1.64 लाख से अधिक लोगों ने खुदकुशी की थी, जिनमें से लगभग 1.05 लाख लोगों की सालाना आमदनी एक लाख रुपये से कम तथा 51.8 हजार लोगों की यह आय एक से पांच लाख रुपये के बीच थी.

खुदकुशी करने वालों में 45 हजार से अधिक महिलाएं थीं. ये आंकड़े इंगित करते हैं कि महानगरों से लेकर गांव-कस्बे तक गरीबी और लाचारी का भयानक साया पसरा है. इनसे यह भी पता चलता है कि महामारी ने अर्थव्यवस्था पर ग्रहण लगा दिया है, जिससे उबरने में समय लगेगा. आकलनों की मानें, तो 2021 में 15 से 20 करोड़ अतिरिक्त लोग गरीबी की जद में आये थे. आम तौर पर माना जाता रहा है कि बड़े शहरों में गुजारा करने के लिए कुछ न कुछ काम मिल ही जाता है.

लेकिन 2021 में बेरोजगारी के कारण हुई 40 फीसदी से ज्यादा आत्महत्याएं अकेले दिल्ली और मुंबई में दर्ज की गयी हैं. इसके बाद अन्य महानगरों का स्थान है. देश के 53 बड़े शहरों में 2018 से 2021 के बीच आत्महत्या की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं. भारत उन कुछ देशों की श्रेणी में है, जहां सबसे अधिक खुदकुशी होती है, जिसके अनेक कारण हो सकते हैं.

लेकिन ताजा सूचनाएं यह बताती हैं कि हमें अधिक से अधिक रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे. आर्थिक तंगी अवसाद और आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण है. यह अपराध बढ़ने का भी सबसे बड़ी वजह है. यह संयोग नहीं है कि शहरों में आपराधिक घटनाओं में भी बढ़ोतरी हो रही है. विभिन्न नीतिगत पहलों और कल्याणकारी कार्यक्रमों के माध्यम से सरकार महामारी से उत्पन्न संकट से नागरिकों, विशेष रूप से वंचित वर्ग, को राहत व मदद मुहैया करा रही है.

इसके सकारात्मक प्रभाव भी देखे जा सकते हैं. लेकिन केवल इन कोशिशों से पूरा समाधान नहीं हो सकता है. निश्चित रूप से हमें अर्थव्यवस्था को बढ़ाना होगा और यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह वृद्धि रोजगारपरक हो. महंगाई पर लगाम लगाने के ठोस उपायों की दरकार है ताकि गरीबों की बुनियादी जरूरतें पूरी हो सकें.

मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार कर तमाम परेशानियों से लाचार अवसादग्रस्त व्यक्ति को भी अपनी जान देने से रोका जा सकता है. पिछले कुछ समय से मानसिक स्वास्थ्य को अहमियत मिल रही है, लेकिन संसाधनों और सुविधाओं का बड़ा अभाव है. कामकाज की जगहों पर जागरूकता तथा संवेदनशीलता के लिए समुचित उपाय होने चाहिए.

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