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स्मृतिशेष : नाम के अनुरूप ही प्रेम से भरे थे प्रेम सागर

Prem Sagar : सागर आर्ट्स के टेलीविजन यूनिट की शुरुआत भी प्रेम सागर के निर्माण व निर्देशन में बने सीरियल ‘विक्रम और बेताल’ से हुई थी. इसी के बाद ‘रामायण’ बनी. प्रेम सागर ‘रामायण’ के सिनेमैटोग्राफर तो रहे ही, ‘रामायण’ को पूरी दुनिया में पहुंचाने के लिए शानदार मार्केटिंग भी की. बाद में 'श्रीकृष्ण', 'साईबाबा', 'चंद्रगुप्त मौर्य', 'जय मां दुर्गा', 'महिमा शनिदेव की', 'जय बजरंगबली' और 'बसेरा' जैसे सीरियल के निर्माण में भी उनकी बड़ी भूमिका रही.

Prem Sagar : बरसों से प्रेम सागर की एक बड़ी पहचान यह रही कि वह दिग्गज फिल्मकार और कालजयी धारावाहिक ‘रामायण’ के निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर के पुत्र हैं. पर रामानंद सागर के योग्य पुत्र होने के अतिरिक्त उनका अपना एक अलग अस्तित्व भी था. फिल्म और टीवी जगत में उनका योगदान अविस्मरणीय रहा है. रामानंद सागर से तो मेरे बरसों करीबी संबंध रहे. परंतु प्रेम सागर से बातचीत का सही सिलसिला 2005 में रामानंद सागर के निधन के बाद ही शुरू हुआ. प्रेम सागर अपने नाम के अनुरूप ही इतनी प्रेम से बातें किया करते थे कि उनमें मुझे रामानंद जी की झलक दिखाई देती थी. रामानंद सागर के निधन के बाद प्रेम सागर से पहली मुलाकात 2006 में दिल्ली के ओबेरॉय होटल में तब हुई, जब सागर आर्ट्स के सीरियल ‘पृथ्वीराज चौहान’ के शुरू होने पर (स्टार प्लस पर) एक समारोह आयोजित किया गया था. उसके बाद उनसे मुंबई में मुलाकात हुई, फिर तो उनके साथ संबंध घनिष्ठ होते चले गये. फोन पर उनसे बातचीत का सिलसिला तो हाल तक जारी रहा.


बीते कई वर्षों से वह टीवी और ओटीटी के लिए बहुत से नये-नये प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे. पहले वह पिता और अपने भाइयों के साथ मिलकर ‘सागर आर्ट्स’ के बैनर तले फिल्म और सीरियल निर्माण में जुटे थे. लेकिन पिता के बाद जब भाइयों में काम का बंटवारा हुआ, तो प्रेम सागर ने अपने पुत्र शिव सागर के साथ मिलकर ‘सागर वर्ल्ड मल्टीमीडिया’ बनायी और उसके बैनर तले धारावाहिक आदि का निर्माण शुरू कर दिया. इन दिनों उनके धारावाहिक ‘काकभुशुंडी रामायण’ का प्रसारण जहां दूरदर्शन पर हो रहा है, वहीं ‘कामधेनु गोमाता’ का प्रसारण 11 अगस्त से स्टार भारत पर शुरू हुआ है. प्रेम सागर से व्हाट्सएप पर धारावाहिकों को लेकर बातचीत होती रहती थी, परंतु बीते कुछ दिनों से वह कोई जवाब नहीं दे रहे थे. असल में, जुलाई में पता चला कि उन्हें पेट का कैंसर है. इसके बाद उन्हें ब्रीच कैंडी अस्पताल में दाखिल कराया गया. जहां वह लगभग एक महीने तक भर्ती रहे. अपनी असफल सर्जरी के बाद 30 अगस्त को वह घर वापस आ गये थे. घर आने के एक दिन बाद ही, यानी 31 अगस्त की सुबह उनका निधन हो गया.
प्रेम सागर का जन्म 29 मार्च, 1944 को लाहौर में हुआ था. पिता रामानंद और मां लीलावती के पांच पुत्रों- सुभाष, शांति, आनंद, प्रेम, मोती और एक पुत्री सरिता में वह चौथे नंबर पर थे. इस वर्ष 29 मार्च को जब प्रेम सागर ने अपना 81वां जन्मदिन मनाया, तो उनके परिवार और स्टाफ ने अनेक वीडियो संदेश में अपने प्रेम सर की लंबी उम्र की कामना की थी.

प्रेम सागर के परिवार में उनकी पत्नी नीलम और उनकी तीन संतान शबनम, शिव और गंगा हैं. प्रेम सागर के बड़े भाई सुभाष सागर का निधन 2007 में ही हो गया था. फिल्मों में अपना करियर बनाने के उद्देश्य से प्रेम ने पुणे के फिल्म संस्थान से सिनेमैटोग्राफी में (1966 से 1968 तक) प्रशिक्षण लिया था. उस दौरान जया भादुड़ी, शबाना आजमी, डैनी और शत्रुघ्न सिन्हा भी संस्थान के छात्र थे. प्रेम सागर के शब्दों में- ‘मैं संस्थान का अकेला ऐसा छात्र रहा जिसे रजत और स्वर्ण- दोनों पदक मिले.’ अपनी पढ़ाई के अंतिम वर्ष में प्रेम सागर ने पुणे फिल्म संस्थान के ही छात्र नवीन निश्चल और रेहाना सुल्तान को लेकर एक फिल्म भी बनायी थी- ‘वन प्लस वन.’ इस फिल्म को देखकर ही मोहन सहगल ने निश्चल को फिल्मों में लिया था. जबकि पिता रामानंद सागर ने अपने पुत्र प्रेम का काम देख ‘ललकार’ फिल्म में उन्हें सिनेमैटोग्राफर की जिम्मेदारी सौंपी थी. उसके बाद प्रेम ने ‘चरस’, ‘बगावत’, ‘हमराही’, ‘प्यारा दुश्मन’, ‘अरमान’, ‘जलते बदन’, ‘सलमा’ और ‘प्रेम बंधन’ जैसी फिल्मों को रुपहले पर्दे पर उतारा. उन्होंने 1979 में जीतेंद्र और हेमा मालिनी को लेकर फिल्म ‘हम तेरे आशिक हैं’ का निर्देशन भी किया था.


सागर आर्ट्स के टेलीविजन यूनिट की शुरुआत भी प्रेम सागर के निर्माण व निर्देशन में बने सीरियल ‘विक्रम और बेताल’ से हुई थी. इसी के बाद ‘रामायण’ बनी. प्रेम सागर ‘रामायण’ के सिनेमैटोग्राफर तो रहे ही, ‘रामायण’ को पूरी दुनिया में पहुंचाने के लिए शानदार मार्केटिंग भी की. बाद में ‘श्रीकृष्ण’, ‘साईबाबा’, ‘चंद्रगुप्त मौर्य’, ‘जय मां दुर्गा’, ‘महिमा शनिदेव की’, ‘जय बजरंगबली’ और ‘बसेरा’ जैसे सीरियल के निर्माण में भी उनकी बड़ी भूमिका रही. धारावाहिक निर्माण के साथ ही प्रेम सागर बीते कई वर्षों से अपने पिता की स्मृतियों को संजोने और उनकी विरासत को संरक्षित करने में भी लगे हुए थे. उन्होंने अपने पिता को लेकर एक पुस्तक- ‘रामानंद सागर के जीवन की अकथ कथा’- भी लिखी. पिता के प्रति उनकी भक्ति और सेवा देखते ही बनती थी. प्रेम कहते थे- ‘सभी बच्चों में, मैं पापा जी के बेहद करीब था.’ जब तक रामानंद सागर रहे, प्रेम सागर रात को उनके पांव दबाये बिना नहीं सोते थे. अब वही प्रेम स्वयं चिर निद्रा में सो गये.

प्रदीप सरदाना
प्रदीप सरदाना
वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

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