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अराजकता की गिरफ्त में पाकिस्तान

शहबाज शरीफ सरकार हालात संभाल नहीं पा रही है. पीटीआइ पार्टी के नेताओं समेत सैकड़ों लोगों को हिरासत में लेने के बाद भी विरोध प्रदर्शन बढ़ते जा रहे हैं.

पाकिस्तान में इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के परिसर से पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद से मंगलवार से जो घटनाक्रम चल रहा है, उससे यह और स्पष्ट होता है कि उसकी स्थिति बहुत अधिक खराब है. यह सब उनका आंतरिक मसला है और इससे आखिरकार उन्हीं को निपटना है. कई महीने से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था वेंटिलेटर पर है और आम पाकिस्तानियों को भोजन और ईंधन जैसी बुनियादी जरूरतों को भी पूरा करने के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है.

इसके अलावा, वैश्विक दबाव के बावजूद आतंकवाद को संरक्षण देने की उसकी नीति में भी कोई सुधार नहीं हुआ है. अब यह भी कहा जा सकता है कि पाकिस्तान का राजनीतिक तंत्र चरमरा गया है. वहां बस नाम भर का ही लोकतंत्र है. जो भी नेता चुनकर आता है, यदि उसकी पीठ पर सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ का हाथ न हो, तो वह न कुछ कर पाता है और न ही पद पर बना रह सकता है. वहां अधिक समय तक फौज का ही शासन रहा है. ऐसा ही इमरान खान के साथ हुआ है.

इमरान खान भी सेना के आशीर्वाद से ही सत्ता में आये थे और जब सेना को लगा कि वे उसके इशारे पर नहीं चल रहे हैं, तो उसने राजनीतिक षड्यंत्र के जरिये उन्हें हटा दिया. प्रधानमंत्री के रूप में इमरान खान पूर्व सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा के फैसलों, आइएसआइ प्रमुख की नियुक्ति आदि मसलों पर सवाल उठाने लगे थे. बहरहाल, यह भी एक सच्चाई है कि इमरान खान एक लोकप्रिय नेता हैं.

उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ जैसे उग्र प्रदर्शन देशभर में हो रहे हैं, उनसे भी यह बात साबित होती है. वहां की न्यायपालिका भी स्वतंत्र नहीं रही है और अदालतें राजनीतिक दबाव में काम करती दिख रही हैं. जिस प्रकार से अदालत परिसर से उन्हें हिरासत में लिया गया है, उससे तो दुनिया को यही संकेत जाता है कि जब संस्थान ही सुरक्षित नहीं हैं, तो किसी व्यक्ति की सुरक्षा की क्या गारंटी हो सकती है. ऐसे में यही कहा जा सकता है कि पाकिस्तान की हालत हर तरह बिगड़ चुकी है और वह पूरी तरह से अराजकता की चपेट में है.

जहां तक आगे की स्थिति का सवाल है, तो मेरे ख्याल से इमरान खान की गिरफ्तारी का विरोध लगातार जारी रहेगा. समूचे पाकिस्तान में उनके समर्थक बड़ी संख्या में सड़क पर हैं और उग्र प्रदर्शन कर रहे हैं. बड़ी तादाद में सरकारी और सैनिक कार्यालयों और इमारतों पर हमला हुआ है. अब यह भी खबर आ रही है कि पुलिस घेरा तोड़कर इमरान खान की पार्टी- पाकिस्तान तहरीके-इंसाफ- के कार्यकर्ता राजधानी इस्लामाबाद में घुस गये हैं. कई जगहों पर सैनिक तैनात किये जा रहे हैं.

जिस प्रकार से सैनिक कार्यालयों, अधिकारियों के आवासों और संबंधित इमारतों को निशाना बनाया जा रहा है, उससे यह आशंका बढ़ जाती है कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पाकिस्तान सेना अधिक सक्रियता दिखाये. पंजाब और खैबर-पख्तूनख्वा में शासन की ओर से अनुरोध किया गया है कि सेना कमान संभाले. यह तो साफ दिख रहा है कि शहबाज शरीफ सरकार हालात संभाल नहीं पा रही है. पीटीआइ पार्टी के नेताओं समेत सैकड़ों लोगों को हिरासत में लेने के बाद भी विरोध प्रदर्शन बढ़ते जा रहे हैं.

सेना इसलिए भी सक्रियता दिखायेगी क्योंकि पद से हटाये जाने के बाद से ही इमरान खान सीधे सेना पर गंभीर आरोप लगाने लगे थे, जो पाकिस्तान की सबसे ताकतवर संस्था है. यह तो साफ ही है कि आने वाले दिनों में अस्थिरता और हिंसक घटनाओं में बढ़ोतरी होगी. इमरान खान पर कई आरोप हैं और यह सबको पता था कि किसी न किसी मामले में उन्हें गिरफ्तार किया ही जायेगा. लेकिन जिस ढंग से उन्हें हिरासत में लिया गया है, उससे उन्हें यह मौका मिल गया कि वे अपने समर्थकों को सड़क पर उतारें.

आगे जो कुछ भी स्थिति बनती है, वह इस बात पर निर्भर करेगी कि सेना का व्यवहार कैसा होता है. शरीफ परिवार और भुट्टो परिवार की मंशा इमरान खान को राजनीतिक रूप से समाप्त कर देने की है, लेकिन यह काम बेहद मुश्किल है. इस राजनीतिक और प्रशासनिक संकट का सबसे बड़ा असर पहले से ही तबाह अर्थव्यवस्था पर होगा. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, चीन आदि से कुछ मदद मिली है.

आगे ऐसी मदद की और जरूरत है. अगर पाकिस्तानी सेना यह फैसला लेती है कि राजनीतिक पार्टियां शासन चलाने की स्थिति में नहीं हैं, इसलिए उसे अपने हाथ में सत्ता लेनी चाहिए, तो उस स्थिति में पाकिस्तान पर आर्थिक प्रतिबंध भी लग सकते हैं. संक्षेप में कहें, तो आम पाकिस्तानी को किसी भी सूरत में राहत की कोई गुंजाइश फिलहाल नहीं दिखती.

इमरान खान के हटाये जाने के बाद से देश में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं. चुनाव को लेकर खींचतान हो रही है. न्यायपालिका की शक्ति को सीमित करने के लिए शरीफ सरकार कोशिश में लगी हुई है. इन सबका परिणाम यह है कि जनता और शासन के बीच अविश्वास बहुत बढ़ गया है. अगर आर्थिक स्थिति बिगड़ती गयी और अस्थिरता का वातावरण बना रहा, तो यह अविश्वास और बढ़ेगा.

जहां तक दूसरे देशों, खासकर अमेरिका, चीन और सऊदी अरब, की बात है, तो सभी चाहेंगे कि पाकिस्तान में स्थिरता आये. चूंकि चीन के बड़े आर्थिक हित पाकिस्तान से जुड़े हैं, तो वह किसी भी सरकार के साथ अच्छे संबंध बनाकर रखने की कोशिश करेगा. अमेरिकी शासन की ओर से जो बयान आये हैं, उनसे भी यही संकेत मिलता है कि अमेरिका स्थिति के जल्दी सामान्य होने की इच्छा रखता है. यह भी उल्लेखनीय है कि दूसरे देशों के लिए पाकिस्तान के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप कर पाना आसान नहीं है.

देश के अनेक हिस्सों में पाकिस्तान तालिबान जैसे गिरोह सक्रिय हैं. विभिन्न प्रांतों में स्थानीय समूह केंद्रीय सत्ता के विरोध में खड़े हैं. अब अराजकता चरम पर पहुंच गयी है. यह बार-बार हुआ है, जब पाकिस्तान ने आंतरिक अस्थिरता को नियंत्रित करने और लोगों का ध्यान भटकाने के लिए भारत को निशाने पर लिया है.

हालांकि आज पाकिस्तान की शक्ति ऐसी नहीं है कि वह सीधे भारत से झंझट मोल ले, लेकिन सीमा पर, नियंत्रण रेखा पर या कश्मीर में कोई शरारत न हो, इसके लिए हमें सचेत रहना होना. आज पाकिस्तान में जो कुछ हो रहा है, वह सब उसकी अपनी कारगुजारियों का नतीजा है. अब यह देखना है कि वह इस ताजा संकट से कैसे निकलता है.

(ये लेखक के निजी िवचार हैं.)

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