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लड़ाई से ऊर्जा संकट की आहट

बेहतर होगा कि पूरी दुनिया ऊर्जा संसाधनों का उपयोग मानवीय जीवन की बेहतरी के लिए करे, न कि प्रकृति के इन अनमोल संसाधनों को युद्ध का जरिया बनाया जाये.

रूस-यूक्रेन युद्ध से मानवीय विभीषिका की तस्वीरें हर किसी को व्यथित कर रही हैं. युद्ध जान-माल, आजीविका और खाद्य सुरक्षा को लंबे समय तक बाधित करते हैं. यह युद्ध हथियारों से लड़ा जा रहा है, जिसके केंद्र में ऊर्जा संसाधन व परियोजनाएं हैं. अमेरिका के बाद रूस विश्व का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है. रूस और सऊदी अरब दोनों 12-12 प्रतिशत कच्चे तेल का उत्पादन करते हैं.

अमेरिका दुनिया में सर्वाधिक 16 प्रतिशत कच्चा तेल उत्पादित करता है. रूस की आमदनी का 43 प्रतिशत हिस्सा ऊर्जा संसाधनों के निर्यात से आता है. वैश्विक तेल आपूर्ति में रूस की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत है. यूरोप की एक तिहाई और एशियाई देशों की प्राकृतिक गैस और कच्चे तेल की बड़ी जरूरत रूस से ही पूरी होती है. यूरोप में तो रूस ने गैस पाइपलाइन बिछाई है. ये बेलारूस, पोलैंड, जर्मनी समेत अनेक देशों से गुजरती है.

विश्व इतिहास में पहली बार किसी युद्ध में ऊर्जा कूटनीति चरम पर है. ईंधन की कीमतें युद्ध के विस्तार के साथ आसमान छू रही हैं. कच्चे तेल की दरें 2014 के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर हैं. रूस पर लगे बैंकिंग प्रतिबंधों का सीधा असर तेल टैंकरों व जहाज को मिलने वाली क्रेडिट गारंटी पर पड़ रहा है. गैस और तेल की आधे से अधिक की जरूरत के लिए रूस पर निर्भर जर्मनी ने नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन का संचालन रोक दिया है.

रूस के सेंट्रल बैंक पर प्रतिबंध से रूसी अर्थव्यवस्था को झटके लगने लगे हैं. रूसी मुद्रा रूबल रिकॉर्ड निचले स्तर पर है. प्रमुख पेट्रोलियम कंपनी शेल ने रूस के स्वामित्व वाली गैस कंपनी गैजप्रोम के साथ सभी साझा उपक्रम बंद कर दिया है. ब्रिटिश पेट्रोलियम (बीपी) ने युद्ध के बीच ही रूस की सरकारी तेल कंपनी रोसनेफ्ट में अपनी हिस्सेदारी बेचने का ऐलान कर चौंकाया है.

ब्रिटिश पेट्रोलियम की रोसनेफ्ट में 19.75 प्रतिशत की हिस्सेदारी रही है. रूस के पहले एलएनजी संयंत्र सखालिन-2 में शेल की 27.5 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जो देश के कुल एलएनजी निर्यात का एक तिहाई है. अमेरिकी ऊर्जा फर्म एक्सॉन रूस की सखालिन-1 तेल और गैस परियोजना के माध्यम से संचालित होती है. इसमें ओएनजीसी की भी हिस्सेदारी है.

स्पष्ट है कि इस नुकसान की भरपाई के लिए संबंधित देश और उनकी कंपनियां तेल व गैस की कीमतों को नया उछाल देंगे. रूस प्रायोजित तेल जहाजों पर प्रतिबंध लगाये जा रहे हैं. रूस के तेल व गैस जहाजों को पश्चिम की कंपनियां बीमा सुरक्षा प्रदान करेंगी, इसकी उम्मीद न के बराबर है.

विकसित देश भले ही मौजूदा हालात को झेल लें, लेकिन विकासशील व छोटे देशों के लिए यह बड़ी चुनौती है. भारत की बात करें, तो रक्षा से लेकर ऊर्जा परियोजनाओं पर रूस के साथ हमारे बड़े द्विपक्षीय करार हैं. भारत 85 प्रतिशत तेल और 65 प्रतिशत प्राकृतिक गैस आयात करता है. वहीं यूरेनियम और बिजली संयंत्र स्थापना से जुड़े आवश्यक उपकरण भी हम रूस से आयात करते हैं.

कच्चे तेल की कीमत से हमारे यहां पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की कीमतें निर्धारित होती हैं. यानी वैश्विक बाधा का सीधा असर महंगाई पर पड़ेगा. हालांकि, कच्चे तेल व प्राकृतिक गैस का बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व, अफ्रीका और उत्तरी अमेरिका से भी आयात होता है.

हमें कच्चे तेल का रणनीतिक भंडार बढ़ाना होगा. आरक्षित तेल भंडार भूमिगत टैंकों, पाइपलाइन और जलपोतों में संग्रहित किया जाता है. कोरोना संकट में भारत ने इस क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किया है. अमेरिका और मध्य पूर्व तथा अफ्रीकी देशों से तेल कैसे अधिक लाया जाये, इसके रास्ते निकालने होंगे. भारत और रूस ने एक-दूसरे के यहां जो निवेश किये हैं, उन्हें सुरक्षित करने के लिए द्विपक्षीय करार नये सिरे से परिभाषित हों.

संयुक्त राष्ट्र संघ जब तक रूस पर प्रतिबंध नहीं लगाता है, तब तक भारत उन प्रतिबंधों को मानने के लिए बाध्य नहीं है. भारत अन्य देशों को साथ लेकर ऊर्जा सुरक्षा के लिए मध्यस्थता की नीति अपना सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक साख इसमें मददगार होगी. रूस और यूक्रेन के बीच शांति बहाली से पश्चिम और यूरोप हिंद महासागर में चीन की आक्रामकता पर नजर रख सकेंगे.

चीन इस मामले में रूस का साथ किस तरह दे रहा है यह बात छिपी नहीं है. रूस पर लग रहे प्रतिबंधों के बाद अब यह संघर्ष जितने दिन और खिंचेगा, पुतिन की आंतरिक चुनौतियां बढ़ेंगी. चीन और रूस मौजूदा गठबंधन के पीछे भी ऊर्जा अहम किरदार है. रूस के कुल तेल निर्यात में चीन 15.4 प्रतिशत हिस्सा रखता है. सिर्फ सऊदी अरब ही चीन को इस अनुपात से अधिक तेल बेचता है. चीन की प्राकृतिक गैस की कुल मांग को पूरा करनेवाला रूस तीसरा बड़ा देश है.

रूस के कुल प्राकृतिक गैस निर्यात में पिछले साल चीन ने 6.7 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखी. पहले से महंगाई से जूझ रहे अमेरिका को भी महंगे ईंधन की चोट से परेशानी होगी. इस साल अमेरिकी सीनेट का चुनाव प्रस्तावित है. साल 2021 में अमेरिका ने रूस से अपनी जरूरत का तीन प्रतिशत कच्चा तेल आयात किया.

अमेरिका रूस से आयातित भारी कच्चे तेल को गैसोलीन, डीजल और विमान ईंधन में बदलता है. जाहिर है, अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ऐसे निर्णायक समय में महंगे ईंधन की तपिश नहीं झेलना चाहेंगे. बेहतर होगा कि पूरी दुनिया ऊर्जा संसाधनों का उपयोग मानवीय जीवन की बेहतरी के लिए करे, न कि प्रकृति के इन अनमोल संसाधनों को युद्ध का जरिया बनाया जाये.

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