नैसर्गिक सौंदर्य, हरी-भरी पहाड़ियों और उनमें बसने वाले दुर्लभ जानवरों के लिए मशहूर कश्मीर के जंगल बुरी तरह सुलग रहे हैं. पिछले वर्ष यहां 1,024 जंगल में आग की घटनाओं में कोई 3,551 हेक्टेयर जंगल खाक हुए थे. इस वर्ष अकेले फरवरी-मार्च में 91 जगह जंगल सुलगे, अप्रैल के दस दिनों में दक्षिण कश्मीर में त्राल, पिनहलीता, डाचीनपुरा, खुबारीपुरा सहित 20 जगहों पर कई किलोमीटर जंगल सूने हो गये. बिहार के वाल्मीकि संरक्षित वन में तो गर्मी आते ही कई जगह आग लग गयी. बिहार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2024-25 बताती है कि इस जंगल में एक वर्ष में 283 से 771 वनाग्नि की घटनाएं हो गयी हैं. घने जंगलों के लिए मशहूर बस्तर में तो चित्रकोट के आसपास बार-बार जंगल सुलग रहे हैं. बीते एक वर्ष में यहां 512 स्थानों पर आग लगी जिसमें 25 हेक्टेयर से अधिक जंगल जल गये. राजस्थान के माउंट आबू के भील बस्ती के पास के जंगल गत 20 दिनों में तीन बार सुलगे. उधर रणथंभौर और राजसमंद के जंगल भी धधक रहे हैं.
जलवायु परिवर्तन के कारण धरती की कम होती नमी और गर्मी के बढ़ते दिनों की संख्या के चलते जंगलों की आग केवल वन के लिए ही नहीं, कार्बन उत्सर्जन बढ़ने से समूची पृथ्वी के लिए हानिकारक है. भारत में वनों की आग एक गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक संकट बन चुकी है. उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र और हिमाचल जैसे राज्यों में हर वर्ष हजारों हेक्टेयर जंगल आग की भेंट चढ़ जाते हैं. यह न केवल जैव विविधता को खतरे में डालता है, बल्कि स्थानीय जनसंख्या, वनों पर निर्भर समुदायों और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर भी असर डालता है. जलवायु परिवर्तन भारत में जंगलों में आग लगने की समस्या को और भी जटिल बना रहा है. मानसून की अनियमितता और कम वर्षा के कारण कई वन क्षेत्र सूखे का सामना कर रहे हैं. शुष्क वनस्पति आग के लिए ईंधन का काम करती है. जलवायु परिवर्तन के कारण हीटवेव और सूखे जैसी चरम मौसम की घटनाएं अधिक बार और अधिक तीव्र हो रही हैं, जिससे जंगलों में आग लगने का खतरा बढ़ रहा है. हाल ही में देश में कई जगह आंधी के साथ बिजली गिरी, इससे भी जंगलों में आग की संभावना बढ़ी. कुछ जगह पेड़ों पर बिजली गिरने से आग लगी और तेज हवा ने उसे विस्तार दे दिया.
वन और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा हाल ही में संसद में पेश रिपोर्ट के अनुसार, देश के दस प्रतिशत वनक्षेत्र को आग लगने वाले अति संवेदनशील क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, जंगल में आग लगने की घटनाओं का आकलन नवंबर से जून महीने तक किया जाता है. इस दौरान नवंबर 2022 से जून 2023 के बीच देश में जंगल में आग लगने की कुल 2.12 लाख घटनाएं रिपोर्ट हुई थीं, जबकि नवंबर 2023 से जून 2024 के बीच यह संख्या 2.03 लाख रिपोर्ट हुई थी. हालांकि मध्य भारत के अधिकांश जंगलों में आग के पारंपरिक कारण मानवीय लापरवाही रही है. पर कश्मीर और हिमालय की गोद में बसे राज्यों जैसे उत्तराखंड, या उत्तर-पूर्वी राज्यों में जंगल सुलगने का सबसे बड़ा कारण लंबे समय तक मौसम का सूखा रहना और कम बर्फबारी है. इससे हवा और भूमि में नमी कम हो गयी. अधिकांश मामलों में वनाग्नि की शुरुआत छोटी झाड़ियों से होती है. परिवेश में नमी कम होने से पत्ते भी सूख जाते हैं. यही हाल झाड़ियों की डालियों का है. ऐसे में हवा चलने पर यदि इनमें आपसी रगड़ होती है, तो चिंगारी पैदा हो जाती है और यहीं से जंगल में आग शुरू हो जाती है. जंगलों में लगी आगों का जैव विविधता, पारिस्थितिक स्थिरता, अर्थव्यवस्था और स्थानीय आजीविका पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है. सुलगते जंगल आसपास की बस्ती के रहवासियों के लिए बड़ा संकट होते हैं. जंगल की आग से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और ब्लैक कार्बन सहित कई ग्रीनहाउस गैसें और एरोसोल निकलते हैं, जो हवा की गुणवत्ता को कम करते हैं. सबसे बड़ा संकट तो जंगल में बिल या खोह बनाकर रहने वाले सरीसर्प जैसे जानवरों के लिए होता है, वे ज्यादा दूर भाग नहीं पाते.
वैसे तो भारत सरकार ने जंगल की आग के प्रभावों को कम करने के लिए कई पहलें की हैं. वर्ष 2018 में, उसने वन अग्नि पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीएफएफ) लागू की, जिसका उद्देश्य जंगलों के बाहरी इलाकों में रहने वाले समुदायों को सशक्त बनाना है. परंतु जमीनी स्तर पर अभी यह सब कुछ कागजों और औपचारिकताओं से आगे बढ़ नहीं पाया है. जंगलों में आग लगने की घटनाओं को कम करने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए प्रभावी कदम उठाना आवश्यक हो गया है. स्थानीय समुदायों और आम जनता को जंगलों में आग लगने के कारणों और प्रभावों के बारे में जागरूक करना तथा आग से बचाव के उपायों के बारे में शिक्षित करना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है. यह जंगल महकमे की भी जिम्मेदारी है कि वह वनों की नियमित निगरानी और आग लगने के जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान कर समय पर सूखी पत्तियों और अन्य ज्वलनशील पदार्थों को हटाए. आग लगने पर तुरंत कार्रवाई करने के लिए एक मजबूत और सुसज्जित प्रतिक्रिया प्रणाली जरूरी है. यह भी जरूरी है कि वनों में आग लगाने वालों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई हो. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)