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Friday, March 29, 2024

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अमेरिका में कोरोना के बढ़ते मामले

राष्ट्रपति बाइडेन कोशिश कर रहे हैं कि अधिकांश आबादी को टीके लग जाएं, लेकिन अ्रब भी सिर्फ 49% लोगों ने ही वैक्सीन की दोनों खुराकें ली हैं.

अमेरिका में एक बार फिर कोरोना वायरस को लेकर चिंता का माहौल है. तीन हफ्ते पहले जहां देश में लगातार टीके लेने वालों की संख्या बढ़ रही थी और सरकार ने संस्थानों को खोलने के आदेश दे दिये थे. पूरे देश में माहौल बेहतर हो रहा था, अब उसके बिल्कुल उलट लोग एक बार फिर चिंतित हैं. कारण है कि अमेरिका के कुछ राज्यों में फिर से कोरोना मरीजों की संख्या में तेजी आयी है. ये राज्य हैं- लुइसियाना, टेक्सास, फ्लोरिडा और मिशूरी, जहां वायरस के डेल्टा वैरिएंट के कारण लोग बीमार हो रहे हैं.

इन राज्यों में रिपब्लिकन का वर्चस्व है, जिस कारण लोग टीका लेने में आना-कानी कर रहे हैं. उन राज्यों में जहां टीकाकरण तेजी से हुआ है, वहां संक्रमण के मामले बिल्कुल कम हैं. इतना ही नहीं कोरोना संक्रमण के नये मामलों में जिन लोगों को अस्पतालों में भर्ती होना पड़ा है, उनमें से 97 प्रतिशत लोगों ने टीके की एक भी खुराक नहीं ली है.

जाहिर है कि टीके के कारण कोरोना नियंत्रण में आ रहा है या कहें कि टीके की एक खुराक से भी कोरोना से लड़ने की क्षमता बेहतर हो रही है. अमेरिका में इस समय तीन टीके दिये जा रहे हैं. फाइजर, मॉडर्ना की दो खुराकें और जॉनसन एंड जॉनसन की एक खुराक बिना किसी कीमत के दी जा रही है. राष्ट्रपति बाइडेन लगातार कोशिश कर रहे हैं कि देश की अधिकांश आबादी को टीके लग जाएं, लेकिन अब भी सिर्फ 49 प्रतिशत लोगों ने ही वैक्सीन की दोनों खुराकें ली हैं. पैंसठ साल से अधिक उम्र के लोगों में 85 प्रतिशत ने दोनों खुराकें ली हैं.

न्यूयार्क टाइम्स अखबार के आंकड़ों के अनुसार पिछले एक महीने में कोरोना पीड़ितों की संख्या में चार गुना की तेजी आयी है और अगर लोगों ने टीके नहीं लिये, तो संक्रमण में तेजी आयेगी और हालात फिर से खराब हो सकते हैं. पूरे देश में इस समय हर दिन करीब 80 हजार नये मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें से 40 हजार मरीजों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ रहा है. लुइसियाना राज्य में हालात बहुत खराब हैं, जहां जुलाई महीने की शुरुआत में हर दिन चार सौ मामले सामने आ रहे थे, अब हर दिन का आंकड़ा 2400 को पार कर चुका है.

कोरोना संक्रमण में तेजी आने के पीछे अनेक कारण हैं. पहला कारण तो यही है कि रिपब्लिकन लोगों में टीके को लेकर शंका है. इस शंका को समझने के लिए थोड़ा पीछे चलना होगा और अमेरिकी इतिहास को परखना होगा. यह कहना इस पूरे मसले का सरलीकरण होगा कि रिपब्लिकन लोग टीके नहीं ले रहे हैं. हालांकि, रिपब्लिकन पार्टी का रवैया इस समस्या को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार जरूर है.

पिछले दिनों रिपब्लिकन पार्टी के कई सांसदों ने कैपिटल हिल में बिना मास्क पहने प्रदर्शन किया था. अब सोचा जा सकता है कि इस तरह के प्रदर्शन का आम लोगों पर या रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों पर क्या असर पड़ा होगा. यहां गांव-गांव में रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों को यह बताने वाला कोई नहीं है कि जो सांसद बिना मास्क के संसद में घूमना चाहते हैं उनमें से संभवत: अधिकतर ने टीका ले रखा है.

ऐतिहासिक रूप से यह बड़ा तथ्य है कि अमेरिकी लोग अपनी सरकारों पर हमेशा से शक करते हैं और इसकी जड़ें अमेरिका की आजादी की लड़ाई में छुपी हुई हैं. इतिहास में रुचि रखने वाले जानते हैं कि अमेरिका में आनेवाले लोग मूल रूप से यूरोपीय थे और यहां उनका शासन तंत्र तो था, मगर वे कर इंग्लैंड की रानी को ही देते थे. विद्रोह इसी के खिलाफ हुआ यानी कि गोरे लोगों ने गोरे लोगों के खिलाफ विद्रोह किया था.

अमेरिकी गोरों ने ब्रितानी गोरों के खिलाफ जो विद्रोह किया, असल में वह सरकारी नीतियों के खिलाफ विद्रोह था. इसके बाद गुलामी की प्रथा को खत्म करने को लेकर हुआ विद्रोह भी एक तरह से सरकारी नीति के खिलाफ ही विद्रोह था, जिसने पूरे देश को लगभग चार साल तक गृह युद्ध की आग में झोंके रखा. कहने का मतलब ये है कि अमेरिका की बहुसंख्यक आबादी सरकार को आम लोगों के जीवन में हस्तक्षेप करने वाले के रूप में देखती है और सरकार के हर फैसले को शक की निगाह से देखती है.

शायद यह भी एक कारण है कि यहां शिक्षा से लेकर जीवन के हर पहलू को प्राइवेट हाथों में सौंपे जाने को लेकर लोगों में एक तरह की सहमति है.

लोगों का मानना है कि साम्यवादी व्यवस्था वाली सरकार लोगों के जीवन में दखल देती है और इसलिए वे एक पूंजीवादी सरकारी व्यवस्था में भी सरकार को शक की निगाह से देखते हैं. ये भी ध्यान रखना चाहिए कि यूरोप से इतर अमेरिका में सरकार को वेलफेयर स्टेट की तरह नहीं देखा जाता है बल्कि सरकार को निगरानी करने वाले की तरह लिया जाता है, जो लोगों के जीवन में कम-से-कम हस्तक्षेप करे. यही कारण है कि राज्यों के पास कई अधिकार होते हैं और वे राज्य की प्रगति के लिए केंद्र सरकार के नियमों का इंतजार नहीं करते हैं.

फिलहाल, लोगों के इस रवैये का असर टीकाकरण पर पड़ रहा है. कोरोना के दौरान भी सारी बहस इस पर ही हुई थी कि राज्य सरकारें इससे निपटने में सक्षम नहीं रही हैं, क्योंकि केंद्र की भूमिका उनको मदद करने की ही होती है. फिलहाल अमेरिकी लोगों का यही रवैया रहा तो पूरा देश एक बार फिर कोरोना की विभीषिका से दो-चार हो सकता है.

अमेरिका में टीकाकरण की रफ्तार में तेजी आ रही है. कुछ हफ्तों से यह गति ढीली थी.अमेरिका के रोग नियंत्रक केंद्र के मुताबिक बीते शनिवार को 8.16 लाख से अधिक खुराक दी गयी. यह लगातार पांचवां दिन था, जब सात लाख से अधिक टीके लगाये गये. अभी तक देशभर में 34.64 करोड़ से अधिक टीके लगाये जा चुके हैं. आंकड़ों की मानें, तो 16.84 करोड़ लोगों का टीकाकरण पूरा हो चुका है यानी उन्हें दोनों खुराक मिल चुकी है. यह संख्या कुल अमेरिकी आबादी का 49.6 प्रतिशत है.

अमेरिका में 12 साल से अधिक आयु के लोग टीके लगाने के लिए योग्य हैं. इनमें से 58 प्रतिशत से अधिक लोगों को दोनों खुराक लग चुकी है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हाल में संक्रमण बढ़ने से उन लोगों की सोच भी बदल रही है, जो टीका लगाने से अब तक हिचक रहे हैं. यदि ऐसा होता है, तो महामारी की रोकथाम में बड़ी मदद मिल सकती है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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