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सच्चे अर्थों में लोकनायक थे जेपी
कृष्ण प्रताप सिंह वरिष्ठ पत्रकार kp_faizabad@yahoo.com ग्यारह अक्तूबर, 1902 को उत्तर प्रदेश व बिहार की सीमा पर स्थित, बलिया व सारण जिलों के बीच बंटे और अनूठी भौगोलिक स्थिति के स्वामी सिताबदियारा गांव में जन्म लेकर 1979 में 8 अक्तूबर को पटना में अपने 77वंे जन्मदिन से तीन रात पहले मधुमेह व हृदयरोग से हारकर […]
कृष्ण प्रताप सिंह
वरिष्ठ पत्रकार
kp_faizabad@yahoo.com
ग्यारह अक्तूबर, 1902 को उत्तर प्रदेश व बिहार की सीमा पर स्थित, बलिया व सारण जिलों के बीच बंटे और अनूठी भौगोलिक स्थिति के स्वामी सिताबदियारा गांव में जन्म लेकर 1979 में 8 अक्तूबर को पटना में अपने 77वंे जन्मदिन से तीन रात पहले मधुमेह व हृदयरोग से हारकर अंतिम सांस लेनेवाले लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) के लंबे सार्वजनिक जीवन के इतने आयाम हैं कि उनमें से किसी एक को छूने चलिये, तो दूसरे के छूट जाने का अंदेशा सताने लगता है.
वे अपने विद्यार्थीकाल से ही अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ सक्रिय रहे, स्वतंत्रता के बाद राजनीति को लोकनीति में बदलने के प्रयत्नों में भी कुछ उठा नहीं रखा. आचार्य विनोबा भावे के सर्वोदय व भूदान आंदोलनों से आकर्षित होकर उनकी तरफ गये और चंबल के डकैतों के आत्मसमर्पण व पुनर्वास में भी अप्रतिम योगदान दिया.
देश की सबसे बड़ी सेवा उन्होंने 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मनमानियों के खिलाफ छात्र असंतोष के रास्ते शुरू हुए व्यापक आंदोलन का नेतृत्व करके की. इसी दौरान पांच जून, 1975 को पटना के गांधी मैदान में एक बड़ी रैली में उन्होंने ‘संपूर्ण क्रांति’ का ऐतिहासिक आह्वान किया.
आंदोलन चल ही रहा था कि इलाहाबाद हाइकोर्ट ने रायबरेली लोकसभा सीट से प्रतिद्वंद्वी रहे राजनारायण की याचिका पर फैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी का निर्वाचन रद्द कर दिया.
इसके मद्देनजर 25 जून, 1975 को जेपी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में नागरिकों और सरकारी अमलों/बलों से उनके असंवैधानिक आदेशों की अवज्ञा की अपील कर दी, तो सहम से भरी श्रीमती गांधी ने देश पर इमरजेंसी थोप दी, और जेपी समेत लगभग सारे विपक्षी नेताओं को जेल में ठूसकर नागरिकों के संविधानप्रदत्त मौलिक अधिकार छीन लिये. गैरकांग्रेसवाद का सिद्धांत भले ही डाॅ लोहिया ने दिया था, उसकी बिना पर कांग्रेस की केंद्र की सत्ता से पहली बेदखली 1977 में जेपी के जरिये ही संभव हुई, जब मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी.
जेपी के शुरुआती जीवन पर जायें, तो स्वदेश में आरंभिक शिक्षा के बाद 1922 से 1929 तक उन्होंने अमेरिका में रहकर समाज-शास्त्र में एमए किया और कैलिफोर्निया व विस्कांसिन विश्वविद्यालयों की महंगी पढ़ाई का नाकाबिल-ए-बर्दाश्त खर्च जुटाने के लिए खेतों, कंपनियों व रेस्टोरेंटों आदि में छोटे-मोटे काम किये.
इस तरह कार्ल मार्क्स के समाजवाद से खासे प्रभावित हुए, जिसने उनकी आगे की वैचारिक दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, हालांकि उनके समाजवादी मानस के निर्माण का बड़ा श्रेय बिहार विद्यापीठ को दिया जाता है.
मां की बीमारी के चलते पीएचडी करने का अपना इरादा अधूरा छोड़ जेपी अमेरिका से लौटे, तो स्वतंत्रता संग्राम को जैसे उनका ही इंतजार था. साल 1932 में इस संग्राम के महात्मा गांधी और नेहरू समेत ज्यादातर नेताओं को जेल में डाल दिया गया, तो जेपी ने उसके नेतृत्व का जिम्मा संभाला.
लेकिन सितंबर, 1932 में मद्रास में उन्हें भी गिरफ्तार कर नासिक जेल में डाल दिया गया. इस जेल में ही उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के गठन की भूमिका तैयार की, जिसने 1934 के चुनावों में भाग लेने के कांग्रेस के फैसले का कड़ा विरोध किया.
साल 1939 में उन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध में जीत के अंग्रेजों के प्रयत्नों में बाधा डालने के लिए सरकार को किराया व राजस्व का भुगतान रोकने का अभियान चलाया और टाटा स्टील कंपनी में हड़ताल करा डाली. इस पर उन्हें नौ महीने की कैद की सजा सुनायी गयी.
साल 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में उन्हें मुंबई की ऑर्थर रोड जेल में निरुद्ध किया गया, तो एक योजना के तहत वहां से फरार होकर ‘आजाद दस्तों’ के गठन व प्रशिक्षण के लिए वे नेपाल चले गये. सितंबर 1943 में पंजाब में एक रेल यात्रा के दौरान पुलिस ने उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया और अप्रैल, 1946 में तब छोड़ा, जब गांधी जी ने साफ कह दिया कि उनकी रिहाई के बिना अंग्रेजों से कोई समझौता नामुमकिन है.
बिहार के गया में 19 अप्रैल, 1954 को उन्होंने अपना जीवन सर्वोदय व भूदान आंदोलनों के लिए समर्पित कर दिया और 1957 से ‘राजनीति’ के बजाय ‘लोकनीति’ करने लगे.
इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रीकाल तक वे इस नतीजे पर पहुंच चुके थे कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी व अशिक्षा आदि की समस्याएं इस व्यवस्था की ही उपज हैं और तभी दूर हो सकती हैं, जब संपूर्ण व्यवस्था बदल दी जाये और, संपूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रांति, ‘संपूर्ण क्रांति’ आवश्यक है. उनकी संपूर्ण क्रांति में सात क्रांतियां शामिल थीं- राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति.
जेपी दुनिया के इकलौते नेता होंगे, जिसे उसके देश की संसद ने जीते जी श्रद्धांजलि दे डाली हो! जब 23 मार्च, 1979 को जेपी जसलोक अस्पताल में थे, तो आकाशवाणी ने दोपहर 1:10 बजे खबर दी कि उनका निधन हो गया है.
लोग अपने प्रिय नेता के अंतिम दर्शन के लिए अस्पताल पहुंचने लगे, तब जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर अस्पताल में ही थे. उन्होंने लोगों से क्षमायाचना की और बताया कि जेपी अभी हमारे बीच हैं. उस ‘श्रद्धांजलि’ के दो सौ दिनों बाद 8 अक्तूबर, 1979 को जेपी सचमुच हमारे बीच नहीं रहे. साल 1998 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया गया.
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