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स्वास्थ्य सेवा में तकनीक
हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को सुगम, सस्ता और सक्षम बनाना एक बड़ी चुनौती है. इस चुनौती से निबटने में बुनियादी सुविधाओं को बेहतर करने तथा चिकित्सकों समेत स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या बढ़ाने के साथ तकनीक की तेज बढ़त का इस्तेमाल भी किया जाना चाहिए. एक हालिया सर्वेक्षण से यह संतोषजनक जानकारी सामने आयी […]
हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को सुगम, सस्ता और सक्षम बनाना एक बड़ी चुनौती है. इस चुनौती से निबटने में बुनियादी सुविधाओं को बेहतर करने तथा चिकित्सकों समेत स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या बढ़ाने के साथ तकनीक की तेज बढ़त का इस्तेमाल भी किया जाना चाहिए.
एक हालिया सर्वेक्षण से यह संतोषजनक जानकारी सामने आयी है कि डॉक्टरों और मरीजों द्वारा बीमारी व इलाज के बारे में जानकारियों को साझा करने में डिजिटल तकनीक का योगदान बढ़ रहा है. यह स्वाभाविक ही है, क्योंकि हमारे जीवन में सूचना तकनीक बहुत अहम होती जा रही है. कंप्यूटर, स्मार्टफोन और विभिन्न गजट धड़ल्ले से रोजमर्रा की चीज बनते जा रहे हैं.
इस सिलसिले को आगे बढ़ाने में इंटरनेट की गति में सुधार और देशभर में नेटवर्क के विस्तार से बहुत मदद मिली है, लेकिन इस डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को वित्तीय लेन-देन, समाचार, जानकारी और मनोरंजन तक सीमित करना उसकी असीम संभावनाओं को कमतर करना होगा.
स्वास्थ्य तकनीक के क्षेत्र में अग्रणी कंपनी रॉयल फिलिप्स ने भारत समेत 15 देशों के बारे में भविष्य का स्वास्थ्य सूचकांक जारी किया है. इसके अनुसार, हमारे देश के करीब 80 फीसदी मेडिकल पेशेवरों ने मरीजों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड को डिजिटल फॉर्मेट में रखना शुरू कर दिया है और वे बीमारियों के बारे में सलाह के लिए इन रिकॉर्ड को अन्य चिकित्सकों के साथ साझा भी करते हैं.
इससे न सिर्फ उपचार की गुणवत्ता बढ़ जाती है, बल्कि डॉक्टरों की समझ भी बेहतर होती है. हमारे देश में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है. डिजिटल जानकारी के आदान-प्रदान से कुछ हद तक इस कमी की भरपाई की जा सकती है. इस अध्ययन की एक खास बात यह भी है कि 67% भारतीयों को किसी मेडिकल एप के जरिये डॉक्टर से परामर्श लेने में कोई परेशानी या झिझक नहीं है.
हालांकि एक संबंधित तथ्य यह भी है कि 49% लोगों को मोबाइल एप के माध्यम से डॉक्टरी सलाह लेने के बारे में जानकारी नहीं है. इस पहलू पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि स्मार्टफोन तो देहात और दूर-दराज तक पहुंचते जा रहे हैं. यदि लोगों को जागरूक किया जाए, तो ऐसे क्षेत्रों में बुनियादी जानकारी और सलाह पहुंचाना आसान हो जायेगा. इस संबंध में पंचायतें और ग्रामीण विकास से जुड़े महकमे भी सहयोगी हो सकते हैं.
इस संदर्भ में यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि मूलभूत संसाधनों और सुविधाओं को मुहैया कराने तथा बीमा व कल्याण योजनाओं को लागू करने में समय लगता है, लेकिन इस बीच यदि सूचना क्रांति के इस उत्कृष्ट आयाम को अपनाया जाए, तो बीमारी पर काबू पाना और इलाज का खर्च बचाना संभव हो सकता है.
यह भी सच है कि गरीबी और अशिक्षा के कारण आबादी का बड़ा हिस्सा कंप्यूटर या स्मार्टफोन का इस्तेमाल नहीं कर सकता है. इंटरनेट की औसत उपलब्धता को लेकर भी यही परेशानी है. इस डिजिटल विषमता को रेखांकित करते हुए सरकारी विभाग और स्वयंसेवी संगठन सामूहिक तौर पर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की पहल कर सकते हैं.
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