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जहर बेचना बंद हो
बच्चों के लिए जरूरी चीजें बनानेवाली मशहूर बहुराष्ट्रीय कंपनी के एक उत्पाद में एस्बेस्टस की मात्रा होने की रिपोर्ट दुनियाभर में चर्चा का विषय बनी हुई है. उक्त कंपनी के अंदरूनी दस्तावेजों की जांच के आधार पर रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस बात की जानकारी कंपनी के शीर्ष अधिकारियों को कई दशकों […]
बच्चों के लिए जरूरी चीजें बनानेवाली मशहूर बहुराष्ट्रीय कंपनी के एक उत्पाद में एस्बेस्टस की मात्रा होने की रिपोर्ट दुनियाभर में चर्चा का विषय बनी हुई है.
उक्त कंपनी के अंदरूनी दस्तावेजों की जांच के आधार पर रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस बात की जानकारी कंपनी के शीर्ष अधिकारियों को कई दशकों से थी. एस्बेस्टस से कैंसर जैसा भयानक रोग हो सकता है. चूंकि इस कंपनी के उत्पाद भारत में भी बहुत इस्तेमाल होते हैं, इसलिए यह एक चिंताजनक मसला है.
लेकिन अगर हम इस प्रकरण के साथ बच्चों से संबंधित विभिन्न उत्पादों में मिलावट या उनमें जहरीले रासायनिक तत्व होने के अन्य मामलों को देखें, तो एक भयावह तस्वीर उभरती है. बीते सप्ताह स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से संसद को जानकारी दी गयी थी कि पोलियो की रोकथाम के लिए शिशुओं को दी जानेवाली दवाओं के दो नमूनों में मिलावट और विषाणु पाये गये हैं.
पिछले साल भारत समेत 26 देशों में बने खिलौनों की अंतरराष्ट्रीय जांच में खतरनाक रासायनिक तत्व होने के प्रमाण मिले थे. ये तत्व बच्चों में हार्मोन और प्रजनन तंत्र को खराब करने के साथ उनकी याददाश्त और सीखने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकते हैं. कुछ खिलौनों में तो इन जानलेवा रसायनों की मौजूदगी का स्तर खतरनाक कचरे के लिए निर्धारित मात्रा से भी अधिक है.
दूध और दूध से बनी चीजों में मिलावट के बारे में अनेक रिपोर्ट हैं. यह भी जगजाहिर है कि बाजार में नकली दवाओं की भरमार है. मिलावट, रसायन और नकली चीजों का सबसे ज्यादा शिकार बच्चे ही होते हैं. इन बातों के साथ कुछ अन्य तथ्यों का संज्ञान भी लिया जाना चाहिए. हमारे देश में सिर्फ दो फीसदी नवजात शिशुओं की जैविक संरचना की जांच होती है, जबकि चीन में यह आंकड़ा 90 फीसदी है.
‘न्यूबोर्न स्क्रीनिंग’ नामक इस जांच से जीन के स्तर पर विरासत में मिली कमियों का पता चलता है और इसके आधार पर उनका तुरंत उपचार होने की सहूलियत होती है. समूचा देश हवा और पानी के प्रदूषण एवं संक्रमण से त्रस्त है. इन समस्याओं का खामियाजा भी बच्चों को ही ज्यादा भुगतना पड़ता है. डायरिया आज भी पांच साल से कम आयु के बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण है.
इस साल नवंबर में प्रकाशित वैश्विक पोषण रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 4.6 करोड़ बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. यह संख्या दुनिया के कुपोषित बच्चों का एक-तिहाई है. भारत में शिशुओं और बच्चों की मृत्यु दर आज भी बहुत ज्यादा है. स्वास्थ्य केंद्रों की बदहाली और निर्धनता के कारण सही उपचार मिलना बड़ी आबादी के लिए दूर की कौड़ी है.
इन हालात में यदि मिलावटी और नकली साबुन, पाउडर, दुग्ध उत्पाद एवं दवाई का कारोबार चलता रहा, तो देश का भविष्य बीमार और बेहाल ही होगा. आज के बच्चे ही कल की श्रमशक्ति हैं तथा उन्हें ही देश के विकास को नेतृत्व देना है. उनकी बेहतरी के लिए सरकार और समाज को आज तत्पर होना होगा.
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