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चौधरी चरण सिंह की प्रासंगिकता

।। डॉ विजय कुमार।। (कंसल्टेंट, समाज विज्ञान संकाय, इग्नू) पिछले साल उत्तर प्रदेश में छोटे-बड़े सौ से अधिक दंगे हुए. सबसे बड़ा दंगा मुजफ्फरनगर में हुआ. इन दंगों के समय चौधरी चरण सिंह के तथाकथित ‘राजनीतिक पुत्र’ मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी की सरकार थी. ये वही चरण सिंह थे, जिनके 1967 में प्रथम […]

।। डॉ विजय कुमार।।

(कंसल्टेंट, समाज विज्ञान संकाय, इग्नू)

पिछले साल उत्तर प्रदेश में छोटे-बड़े सौ से अधिक दंगे हुए. सबसे बड़ा दंगा मुजफ्फरनगर में हुआ. इन दंगों के समय चौधरी चरण सिंह के तथाकथित ‘राजनीतिक पुत्र’ मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी की सरकार थी. ये वही चरण सिंह थे, जिनके 1967 में प्रथम गैरकांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री बनने के समय ही मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात में दंगे भड़के, किंतु चरण सिंह की कर्मठता, धर्मनिरपेक्षता व राजनीतिक कार्यकुशलता में आवाम की इतनी आस्था थी, कि पूरे उत्तर प्रदेश में कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं घटी.

आज जिस प्रकार पूंजीवादी विकास के मॉडल की जीत हुई है, ऐसे वक्त में चरण सिंह को याद करना स्वाभाविक है. स्वतंत्रता सेनानी, पिछड़ों-किसानों के मसीहा चरण सिंह का जन्म वर्तमान हापुड़ जिले के नूरपुर गांव में किसान चौधरी मीर सिंह के यहां 23 दिसंबर, 1902 को हुआ था. 1929 में वे कांग्रेस के सदस्य बने और 1930 में नमक-कानून के विरोध में गांधी के दांडी मार्च से प्रेरित होकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. 1967 में कांग्रेस की किसान-विरोधी सरकार से तंग आकर उन्होंने राजनारायण और राम मनोहर लोहिया के समर्थन से मुख्यमंत्री के रूप में पहली गैरकांग्रेस सरकार बनायी. बाद में भारतीय क्रांति दल नाम से अपनी पार्टी भी बनायी. 1971 से 1987 के दौरान वे भारत सरकार में गृह मंत्री, उप प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और 28 जुलाई, 1979 में देश के पांचवे प्रधानमंत्री बने. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस को मिली भारी जीत ने उन्हें अंदर से अशांत कर दिया और 29 मई, 1987 को वे स्वर्ग सिधार गये.

एक छोटे किसान परिवार में पले-बढ़े होने के कारण चरण सिंह ने पिछड़ों व मजदूर-किसानों की दयनीय स्थिति को करीब से देखा था. इसलिए उन्होंने इसी वर्ग के हितों की लड़ाई लड़ी. चरण सिंह सर्वप्रथम 1937 में मेरठ जिले में छपरौली विधानसभा क्षेत्र से चुने गये. उन्होंने आम जनता से संबंधित अनेक सार्थक प्रश्न उठाये. 1937 से 1967 तक के उत्तर प्रदेश के अपने राजनीतिक कार्यकाल में उन्होंने ऐसे अनेक कार्य किये, जिनसे किसानों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा. 1939 में किसानों को लगान एवं बेदखली से बचाने के लिए भूमि उपयोग बिल का मसौदा तैयार किया. 1939 में ही उन्होंने मंडी समिति एक्ट तैयार किया, जिसे अनेक राज्यों के साथ 1940 में पंजाब में भी लागू किया गया. गांव निवासियों के कष्टों से वे इतने द्रवित थे कि 23 अप्रैल, 1939 को उन्होंने यूपी विधानसभा में सरकारी पदों में 50 प्रतिशत पद ग्रामीणों एवं खेतिहर मजदूरों के लिए आरक्षित रखने का प्रस्ताव रखा. उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि जमींदारी उन्मूलन विधेयक लाना थी. इसका खूब विरोध हुआ, पर यह 1952 में पास हो गया और किसानों एवं पिछड़ों को जमींदारों के शोषण से मुक्ति मिली. भूमि सुधार एवं उत्पादन वृद्धि के उद्देश्य से प्रदेश के कृषि एवं राजस्व मंत्री के रूप में उन्होंने 1953 में चकबंदी कानून और 1954 में भूमि संरक्षण कानून बनाया.

चरण सिंह ने आजाद भारत की कृषि, अर्थव्यवस्था एवं राजनीति को काफी प्रभावित किया. उन्होंने ग्रामीण भारत का पक्ष लेते हुए नेहरू की भारी उद्योग और शहर केंद्रित विकास नीतियों की आलोचना की और कृषि एवं लघु उद्योग आधारित वैकल्पिक विकास मॉडल पेश किया. उन्होंने 1959 में नेहरू द्वारा प्रस्तुत ‘सहकारी खेती’ के प्रस्ताव की कड़ी आलोचना की और कहा कि यह परंपरागत कृषि व्यवस्था को ‘विशाल कृषि फैक्ट्रियों’ में तब्दील कर देगा. आधुनिकीकरण के नाम पर नये शहर बनाने के उद्देश्य के तहत सरकार द्वारा गांव के गरीब-किसानों की जमीन को कौड़ियों के भाव में उद्योगपतियों को दिये जाने का भी उन्होंने विरोध किया. भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में किसानों की अनुमति लेने, जमीन खरीद में पूंजीपतियों एवं किसानों के मध्य सीधे मोल-भाव होने, छोटे किसानों व खेतिहर ग्रामीणों का उपयुक्त पुनर्वास संबंधी नीतियों को स्पष्ट करने और उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने पर विशेष बल दिया. उनके देहांत के वर्षो बाद 2009 में भारत सरकार पुराने भूमि अधिग्रण कानून में संशोधन के लिए बाध्य हुई.

चरण सिंह कुशल, लोकप्रिय व दूरदर्शी नेता थे. उन्होंने भ्रष्टाचार को कभी सहन नहीं किया एवं राजनीतिक शुचिता के लिए संघर्ष करते रहे. गरीबों, पिछड़ों, किसानों को हक दिलाने के लिए उन्होंने जीवनर्पयत संघर्ष किया. वे अपने पीछे एक मजबूत राजनीतिक व वैचारिक विरासत छोड़ गये, जिसके आधार पर बाद में मुलायम सिंह यादव, वीपी सिंह और उनके पुत्र अजित सिंह ने अपनी राजनीतिक इमारत खड़ी तो की, पर उनके सिद्धांतों को सच्चाई से आगे नहीं बढ़ा पाये. उनके राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचारों को जीवंत रखते हुए गरीबों, किसानों, पिछड़ों के हित में संघर्षरत रहना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

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