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‘शब्द हिंसा’ लोकतंत्र के लिए घातक

।। तरुण विजय।। (राज्यसभा सांसद, भाजपा) चुनाव परिणाम की तारीख 16 मई से निकटता का हर दिन और हर पल एक नये खतरे और एक नये प्रहार को भी पैदा कर रहा है. सत्ता पक्ष लोकतंत्र के तरीके से पराजय का जनादेश किसी भी दृष्टि से स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. वह तनाव […]

।। तरुण विजय।।

(राज्यसभा सांसद, भाजपा)

चुनाव परिणाम की तारीख 16 मई से निकटता का हर दिन और हर पल एक नये खतरे और एक नये प्रहार को भी पैदा कर रहा है. सत्ता पक्ष लोकतंत्र के तरीके से पराजय का जनादेश किसी भी दृष्टि से स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. वह तनाव भरे बयानों और ‘शब्द हिंसा’ द्वारा अपनी कुंठा और किसी भी शक्ल में जीत का कोई दामन थामने के लिए बेताबी व्यक्त कर रहा है. सवा अरब की जनसंख्या वाले महान देश के सामने बड़ा अजीब विकल्प है, या तो पारिवारिक सामंतशाही का विद्रुप ‘बलिदानी दावा’ स्वीकार करें अथवा उस लोकतांत्रिक गठबंधन को चुनें, जिसकी विचारधारा अब एक नयी राजनीतिक परिभाषा और व्यवस्था को गढ़ रही है.

नरेंद्र मोदी को वाराणसी में अपने ही चुनाव क्षेत्र में जनसभा की इजाजत न देना चुनावी राजनीति का एक आश्चर्य है. आखिरी दौर में इस प्रकार का अजीब फैसला चुनाव करानेवाली व्यवस्था में ही शक पैदा करता है. अमेठी में भी आखिरी दौर में तीखे कठोर शब्दों का चलन अंतत: जाति और राजनीति के नीचेपन को उजागर कर गया. प्रियंका गांधी के लिए उनका परिवार यानी पूज्य पिताजी, माताजी, भाई साहब और पतिदेव ही उनका विश्व हैं. सारे चुनाव प्रचार में केवल यही तीन बातें होती रहीं कि मेरे पिता का अपमान किया गया, मेरी माताजी और पतिदेव पर प्रहार किये गये और बेहद गुस्सेवाली, कठोर एवं खराब भाषा का इस्तेमाल किया गया.

वे एक भी प्रश्न का उत्तर नहीं दे पायी, कि आखिर क्यों उन्हें केवल अपने भाई की सहायता के लिए उतरना पड़ा और क्या कांग्रेस का कोई दूसरा उम्मीदवार उनकी सहायता का हकदार नहीं है? क्यों राहुल हल्के पड़ गये और प्रियंका ने राहुल तथा कांग्रेस के ही तत्कालीन मुख्यमंत्री टी अंजैया का तथा बाद में तत्कालीन विदेश सचिव एपी वेंकटेश्वरन का भरी पत्रकार वार्ता में अपमान किया था? क्यों कांग्रेस के गैर-पारिवारिक और पूरे पांच साल सरकार चलानेवाले पीवी नरसिम्हाराव की पार्थिव देह तक कांग्रेस कार्यालय में नहीं लाने दी गयी और आंध प्रदेश कांग्रेस कमेटी की मांग के बावजूद आंध्र निवासी पीवी नरसिम्हाराव के नाम पर हैदराबाद हवाई अड्डे का नाम नहीं रखा? इतना ही नहीं, इस डर से कि कभी कोई बाद में उस हवाई अड्डे का नाम नरसिम्हाराव न रख दे, कांग्रेस ने आनन-फानन में हैदराबाद हवाई अड्डे का नाम राजीव गांधी के नाम पर रख दिया. क्या इनके परिवार के अलावा देश में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हुआ, जिसके नाम पर बड़े संस्थानों और भवनों के नाम रखे जायें?

नरेंद्र मोदी के विरुद्ध व्यक्तिगत आक्रमणों की सबसे पहली झड़ी कांग्रेस ने ही शुरू की थी. उनकी प-ी, फिर ‘स्नूपगेट’, फिर उनके लिए ‘नपुंसक’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल और गालियों की एक लंबी कतार कांग्रेस ने ही बनायी. चुनाव खत्म होते-होते तक जब सरकार जा ही रही थी, तो भी नफरत में डूबे कांग्रेसी नेताओं ने मोदी के विरुद्ध जासूसी कांड के जांच आयोग के अध्यक्ष का चयन करने की कोशिश की और स्वाभाविक रूप से मुंह की खायी. न केवल उन्हें इस व्यक्तिगत गंदगी फैलाने के लिए कोई जज नहीं मिला, बल्कि कांग्रेस के भीतर से कमलनाथ और उनके घटक एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल जैसे नेताओं ने भी सार्वजनिक तौर पर ऐसे कदम का विरोध किया.

एक वेबसाइट ने कांग्रेस द्वारा नरेंद्र मोदी के विरुद्ध दी गयी गालियों की एक सूची बनायी है, जो इस प्रकार है-

1. सोनिया गांधी द्वारा 2007 में मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहा गया.

2. कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने मार्च, 2013 में मोदी को ‘सांप’, ‘बिच्छू’ और ‘गंदा आदमी’ कहा.

3. अय्यर ने फिर मोदी को ‘लहू पुरुष’, ‘पानी पुरुष’, ‘असत्य पुरुष’ कहा, तो दिग्विजय सिंह ने मोदी को ‘रावण’ कहा.

4. गुजरात से कांग्रेस सांसद सोमा पटेल ने मोदी की छोटी जाति पर चोट करते हुए नवंबर, 2012 में उनको ‘घांची’ कहा.

5. गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष अजरुन मोडवाडिया ने अक्तूबर, 2012 में मोदी को ‘बंदर’ और ‘रेबीज का शिकार’ कहा.

6. उसी समय कांग्रेस सांसद हुसैन दलवई ने मोदी को ‘चूहा’ कहा.

7. मार्च, 2012 में कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने मोदी को ‘दाऊद इब्राहिम’ जैसा कहा.

8. कांग्रेस सांसद शांताराम नायक ने 7 जून, 2013 को मोदी की तुलना ‘हिटलर’ और ‘पोल पोट’ से की.

9. कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी ने मोदी को ‘न्यूमोनिया’ जैसी बीमारी का वायरस कहा.

10. जयराम रमेश ने 13 जून, 2013 को मोदी को ‘भस्मासुर’ कहा.

11. केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने 14 जुलाई, 2013 को मोदी को ‘पागल कुत्ता’ कहा.

12. सलमान खुर्शीद ने मोदी के लिए ‘मेंढक’ और फिर ‘नपुंसक’ कहा.

13. केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद ने 17 अगस्त, 2013 को मोदी को ‘गंगू तेली’ कह कर उनकी जाति का मजाक उड़ाया.

14. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने 29 मार्च, 2014 को मोदी को ‘तानाशाह’ कहा और फिर बाद में यह भी बयान दिया कि मोदी को वोट देनेवालों को समुद्र में फेंक देना चाहिए.

15. शशि थरूर ने मोदी को ‘खून चूसनेवाला’ (ब्लीडर) कहा.

ममता बनर्जी ने तो कहा कि मोदी को बांध कर जेल में ठूंस देना चाहिए. सहारनपुर से कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद का यूट्यूब पर बयान आया कि वे मोदी की बोटी-बोटी काट डालेंगे. इतना सब कहने के बाद भी ये राजनेता शालीनता, भद्रता की दुहाई देते हैं और कहते हैं कि उनके खिलाफ खराब शब्द इस्तेमाल किये जा रहे हैं.

लोकतंत्र में अब हार को स्वीकार करने की भद्रता नहीं, बल्कि जीतनेवाले को चकनाचूर करने की मानसिकता हावी होती जा रही है. कोई तो इस बात का जवाब दे कि आखिरकार भ्रष्टाचार, महंगाई, मुद्रास्फीति और नेताओं तथा अफसरों की गुंडागर्दी के खिलाफ गुस्से में आयी जनता आखिर कौन सा विकल्प चुने? यह भी याद रखना चाहिए कि आघातों के इस समर में जो जीत रहे हैं, उन्हें विनम्र और अधिक शालीन होना होगा. शब्द हिंसा का उत्तर वैसी ही आक्रामक भाषा में देने से विजयी पक्ष का पुण्य और आभा कम हो जाती है. जीतनेवाले को किसका डर है? गलत भाषा तो हार के भय से बोली जाती है. विजय के विश्वास में केवल भव्यता का प्रभुत्व होता है.

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