अभी लोकसभा चुनाव के नतीजे भी नहीं आये और कांग्रेस ने झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. कांग्रेस राज्य की सभी 81 सीटों पर चुनाव लड़ने के मूड में है. हालांकि, अभी से यह कहना किसी के लिए संभव नहीं है कि वह चुनाव में तालमेल करेगी या अकेले लड़ेगी. यह उस समय के हालात पर निर्भर करेगा. कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनाव आसान नहीं होगा. झारखंड-बिहार में उसकी अगुवाई में 1990 से सरकार नहीं बनी है.
इस बीच झारखंड में कांग्रेस को झामुमो के साथ सत्ता में रहने का मौका मिला है. सच यह है कि कांग्रेस ने 24 सालों से इस क्षेत्र में अपनी हैसियत पिछलग्गू पार्टी की बना ली है. इससे उबरने के लिए कांग्रेस बेचैन है. लेकिन, उसके लिए मुसीबत है आपसी कलह, कमजोर संगठन. कभी कांग्रेस इस क्षेत्र में सबसे ताकतवर पार्टी हुआ करती थी. हर गांव में उसके कार्यकर्ता अब भी मिल जायेंगे. लेकिन नयी पीढ़ी को जोड़ने में कांग्रेस पीछे रह गयी है. मठाधीशों का संगठन पर कब्जा हो गया है. युवा कार्यकर्ताओं को उभरने नहीं दिया जा रहा. उनमें उत्साह का अभाव है.
पार्टी की बैठकों में मारपीट होती है, गोलीबारी होती है, लेकिन किसी पर कार्रवाई नहीं होती. झारखंड में जब तक कांग्रेस अनुशासित नहीं होगी, सत्ता में आना असंभव दिखता है. राज्य में वह अकेले चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं कर पाती. कोई भी चुनाव हो, उसे सहारे की जरूरत पड़ती है. कांग्रेसी जानते हैं कि इस लोकसभा चुनाव में झामुमो से अधिक सीट लेने में भले सफल हो गये हों, विधानसभा चुनाव में यह संभव नहीं होगा. झामुमो विधानसभा चुनाव में झुकनेवाला नहीं है. इसलिए कांग्रेस दोनों स्थितियों के लिए तैयारी कर रही है.
कांग्रेस को अगर विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना है, तो संगठन मजबूत करना होगा. साथ ही सरकार में रहते हुए जनता को यह संदेश देना होगा कि उसने कुछ काम किया है. उसके पास कुछ मुद्दे होने चाहिए जिनके बल पर वह चुनाव में उतरे. यह आसान नहीं है. चुनाव में बहुत वक्त बचा नहीं है. इस सरकार में जो गड़बड़ियां हो रही हैं, उनके आरोप से कांग्रेस बच नहीं सकती. संगठन को मजबूत कर, मंत्रियों से काम करवा कर और साफ-सुथरा प्रत्याशी देकर ही वह आगे बढ़ सकती है.