भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रलय की ओर से जारी आंकड़े झारखंड को निराश करनेवाले हैं. प्रति व्यक्ति आय के मामले में बीते 10 सालों में राज्य और नीचे खिसक गया है. 2004-05 में झारखंड ओड़िशा से ऊपर था, पर अब तसवीर उलट गयी है. वित्तीय वर्ष 2013-14 में झारखंड में प्रति व्यक्ति आय 50,125 रुपये आंकी गयी, जबकि पड़ोसी राज्य ओड़िशा में प्रति व्यक्ति आय 54,241 रुपये दर्ज की गयी.
यानी 4116 रुपये का अंतर है. यह स्थिति तब है जब हमारे पास खनिज का भंडार है और भारी मात्र में यहां से खनिज बाहर भी भेजे जाते हैं. एक तरह से कहें तो अमीर राज्य की गरीब जनता. किसी राज्य के लोगों की आर्थिक स्थिति बयान करने का एक अहम सूचकांक है प्रति व्यक्ति आय. आज के भौतिकवादी युग में लोगों की माली हालत का सीधा रिश्ता उनके सुखी और खुशहाल होने से है. ऐसे में झारखंड के सामने यह बड़ा सवाल है कि राज्य के लोगों की आय में वृद्धि के लिए क्या उपाय किये जायें. ये उपाय जल्द ही निकालने होंगे.
नहीं तो स्थिति और भी खराब हो सकती है. यह जान कर आश्यर्च होगा कि साथ गठित हुए अन्य राज्यों में स्थिति बेहतर है. 2004-05 के मुकाबले नवगठित राज्य उत्तराखंड के प्रति व्यक्ति आय में चार गुना से अधिक की वृद्धि हुई है. वर्ष 2004-05 में उत्तराखंड में प्रति व्यक्ति आय 24,726 रुपये थी, जो बढ़ कर 1,12,428 रुपये हो गयी है. छत्तीसगढ़ भी 56, 990 रुपये के साथ झारखंड से आगे है.
पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल भी हमसे बेहतर स्थिति में है. वहां प्रति व्यक्ति आय 70, 615 रुपये है यानी झारखंड से 20 हजार 490 रुपये ज्यादा. इन सबके बावजूद झारखंड के पास खुश होने का एक कारण है और वह कारण पड़ोसी राज्य बिहार से ज्यादा प्रति व्यक्ति आय का होना है. बिहार की प्रति व्यक्ति आय सिर्फ 33,459 रुपये आंकी गयी है. अब आपको तय करना है कि आप मुकाबला हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों से करना चाहते हैं या बिहार से? प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के लिए समग्र और समेकित प्रयास जरूरी है. हर किसी को अपनी भूमिका निभानी होगी. शासन-प्रशासन को सक्षम बनना होगा, कृषि की तसवीर बदलनी होगी. और, सबसे जरूरी है राज्य में उद्यमिता को बढ़ावा देना.