मजदूरों के आत्मसम्मान का दिवस ‘मई दिवस’ अब उत्साह, जोश और जुनून से भरपूर नहीं रह गया है. बढ़ती महंगाई और पारिवारिक जिम्मेदारियों ने भी मजदूरों को उत्साह से दूर कर दिया है.
बड़े-बड़े कारखानों और ठेकेदारों के पास काम कर रहे मजदूरों को पहले इस दिन पुरस्कारों से नवाजा जाता था, लेकिन न तो अब ऐसे आयोजन हो रहे हैं और न ही उन्हें उपहारों से सम्मानित किया जा रहा है. मजदूर भी समाज का एक वर्ग है, उसे भी शिक्षक दिवस, अभियंता दिवस, डॉक्टर्स डे की तरह सम्मान पाने का हक है. अब ऐसे कार्यक्र म कुछ बड़े कारखानों तक सिमट गये हैं.
आज मजदूर वर्ग गंभीर संकट काल से गुजर रहा है. आर्थिक मंदी में पूंजीपतियों को संकट से उबारने के पैकेज दिये जाते रहे हैं, लेकिन उन पैकेजों में मजदूरों का हक कहीं नहीं दिखता. देश में बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का हनन अपराधी गिरोहों, सांप्रदायिक और पृथकतावादी संगठनो द्वारा हो रहा है. निजी संस्थाओं द्वारा मजदूरों के हकों का खुला उल्लंघन कर रहा है.
इन सारी विसंगतियों के बीच मजदूरों का उत्साह कहीं खो गया है. मई दिवस हर देश में मनाया जाता है. इस दिन मजदूरों को काम पर नहीं बुलाया जाता है और उनके प्रति प्रेम का प्रदर्शन किया जाता है. अब बदली परिस्थितियों में कहीं भी मजदूर प्रेम नहीं दिखता. लेकिन इसके लिए मजदूरों की अपनी नैतिकता भी जिम्मेदार है. पहले जहां मजदूर काम को पूजा और मालिकों को भगवान मानते थे, वहीं अब वे साल भर छोटी-छोटी बातों पर लाल झंडा उठाये खड़े रहते हैं. इस प्रकार का मजदूर-स्वभाव उत्पादन को प्रभावित करते हुए मालिकों को नुकसान पहुंचा रहा है. यही कारण है कि मजदूर व मालिक के संबंध बिगड़ रहे हैं और मई दिवस की सार्थकता भी समाप्त हो रही है.
अनिल सक्सेना, जमशेदपुर