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CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग नोटिस को रद्द किये जाने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका कांग्रेस ने वापस ली

नयी दिल्ली : कांग्रेस के दो सांसदों ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को पद से हटाने के लिए महाभियोग चलाने का नोटिस अस्वीकार करने के राज्यसभा के सभापति के निर्णय के खिलाफ दायर याचिका आज सुप्रीम कोर्ट में वापस ले ली. इन सांसदों ने इतने संवेदनशील मामले की सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ […]

नयी दिल्ली : कांग्रेस के दो सांसदों ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को पद से हटाने के लिए महाभियोग चलाने का नोटिस अस्वीकार करने के राज्यसभा के सभापति के निर्णय के खिलाफ दायर याचिका आज सुप्रीम कोर्ट में वापस ले ली. इन सांसदों ने इतने संवेदनशील मामले की सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित करने पर सवाल भी उठाये. कांग्रेसी सांसद प्रताप सिंह बाजवा और अमी हर्षदराय याज्ञनिक की याचिका पर सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति ए के सिकरी की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित की गयी थी.

संविधान पीठ ने करीब 45 मिनट की सुनवाई के बाद याचिका को खारिज किया गया घोषित कर दिया क्योंकि इसे वापस ले लिया गया था. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे , न्यायमूर्ति एन वी रमण , न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल शामिल थे. याचिका दायर करने वाले कांग्रेस के सांसदों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इस मामले में सुनवाई के लिए संविधान पीठ के गठन पर आपत्ति की. वह जानना चाहते थे कि इस मामले को संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का आदेश किसने दिया. परंतु अटार्नी जनरल के . के . वेणुगोपाल ने कहा कि राज्यसभा सभापति को नोटिस देने वाले 50 सांसदों में से सिर्फ दो ने ही शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है.

वेणुगोपाल ने कहा कि हालांकि कांग्रेस के दो सांसदों ने यह याचिका दायर की है परंतु नोटिस देने वाले छह अन्य विपक्षी दलों ने शीर्ष अदालत में सभापति के फैसले को चुनौती नहीं दी है. अटार्नी जनरल ने कहा , ‘ यह अनुमान लगाया जाता है कि दूसरे अन्य दलों ने नोटिस अस्वीकार करने के सभापति एम वेंकैया नाएडू के फैसले को चुनौती देने के कांग्रेस के दृष्टिकोण का समर्थन नहीं किया है.’ उन्होंने यह भी दलील दी कि कांग्रेस के इन दो सांसदों को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के लिए शेष सांसदों ने अधिकृत नहीं किया है. इससे पहले , सिब्बल ने संविधान पीठ के गठन को लेकर अनेक सवाल उठाये.

इसमें यह सवाल भी शामिल था कि इस याचिका पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ के गठन का आदेश किसने दिया. उन्होंने कहा कि यह मामला एक प्रशासनिक आदेश के माध्यम से पांच सदस्यीय पीठ के समक्ष सूचीबद्ध हुआ है और प्रधान न्यायाधीश इस मामले में ऐसा आदेश नहीं दे सकते हैं. उन्होंने यह पीठ गठित करने संबंधी प्रशासनिक आदेश की प्रति भी मांगी और कहा कि वह इसे चुनौती देना चाहते हैं. संविधान पीठ ने कहा , ‘ यह बहुत ही विचित्र और अप्रत्याशित स्थिति है जिसमें प्रधान न्यायाधीश एक पक्षकार है और चार अन्य न्यायाधीशों की भी कुछ भूमिका हो सकती है. हमें इस बारे में कुछ नहीं पता है.’ पीठ ने बार- बार सिब्बल से जानना चाहा कि प्रधान न्यायाधीश द्वारा पांच न्यायाधीशों की पीठ गठित करने के प्रशासनिक आदेश की प्रति यदि इन दो सांसदों को दे भी दी जाये तो इससे क्या होगा. इस पर सिब्बल ने कहा कि इस आदेश की प्रति मिलने के बाद ही वह इसे चुनौती देने के बारे में कोई फैसला करेंगे.

हालांकि , पीठ ने सिब्बल की इस दलील को स्वीकार करने में कोई इच्छा नहीं दिखाई तो वरिष्ठ अधिवक्ता ने याचिका वापस ले ली. कांग्रेस के इन दो सांसदों ने सभापति के आदेश को चुनौती देते हुए कल सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष इसका उल्लेख किया था. इस पीठ ने शुरू में तो यह कहा कि इसका उल्लेख प्रधान न्यायाधीश के समक्ष ही किया जाये लेकिन बाद में उसने इसका उल्लेख मंगलवार को करने के लिए कहा.

पीठ ने कहा था कि कल इसे देखेंगे. परंतु कल देर शाम न्यायालय की मंगलवार की कार्यसूची में कांग्रेसी सांसदों की यह याचिका न्यायमूर्ति सिकरी की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध दिखायी गयी थी. राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को पद से हटाने के लिए कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के पचास से अधिक सदस्यों की नोटिस को 23 अप्रैल को अस्वीकार कर दिया था.

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