Jitiya Vrat Locket 2025: सनातन धर्म की गूढ़ परंपराओं में से एक है जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जितिया या जिउतिया व्रत के नाम से जाना जाता है. यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. वर्ष 2025 में यह पावन व्रत 14 सितंबर को मनाया जाएगा.उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में यह व्रत विशेष रूप से माताओं द्वारा अपनी संतान की दीर्घायु, सुख और समृद्धि के लिए किया जाता है. व्रत केवल उपवास या पूजा तक सीमित नहीं होता, बल्कि इससे जुड़ी होती हैं कुछ बेहद भावनात्मक और संस्कारिक परंपराएं, जैसे – लाल और पीले रंग के धागे में पिरोया गया जिउतिया लॉकेट.
माताएं जिउतिया लॉकेट क्यों पहनती हैं?
व्रत रखने वाली महिलाएं लाल और पीले रंग का पवित्र धागा पहनती हैं, जिसमें सोने या चांदी के लॉकेट या गांठें बांधी जाती हैं.
- इन लॉकेटों की संख्या संतान की संख्या के अनुसार होती है, और एक अतिरिक्त लॉकेट या गांठ शुभता के लिए जोड़ी जाती है.
- यह धागा और लॉकेट केवल आभूषण नहीं, बल्कि मां की ममता, आस्था और संकल्प का प्रतीक होता है.
- ऐसा माना जाता है कि बिना इस धागे और लॉकेट के जितिया व्रत अधूरा माना जाता है.
जिउतिया लॉकेट कैसा होता है?
- जिउतिया लॉकेट पर प्राचीन धार्मिक पात्र ‘जीमूतवाहन’ की आकृति उकेरी जाती है.
- इसे लाल या पीले धागे में पिरोया जाता है और गले में धारण किया जाता है.
- मान्यता है कि इसे पहनने से संतान को लंबी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्ध जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
- हर साल जितिया व्रत के समय सोने और चांदी के इन लॉकेटों की दुकानों में भारी मांग देखी जाती है.
जितिया धागा पहनने की परंपरा
- जिन माताओं की संतान दो या तीन होती है, वे सभी लॉकेट एक ही धागे में पिरोती हैं, अलग-अलग नहीं.
- पूजा सम्पन्न होने के बाद, यह धागा सबसे पहले बच्चों को पहनाया जाता है, फिर माताएं स्वयं इसे पहनती हैं.
- यह परंपरा मां और बच्चे के बीच आध्यात्मिक संबंध को और भी गहरा करती है.
जितिया धागे की पूजा विधि
- व्रत के दिन, जिउतिया लॉकेट को सबसे पहले चीलो माता (या चील पक्षी की प्रतीक देवी) को अर्पित किया जाता है.
- इसके अगले दिन, यह पवित्र धागा संतान को पहनाया जाता है, और फिर मां स्वयं उसे धारण करती है.
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