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अक्षय को मिला बेस्‍ट एक्‍टर का नेशनल अवार्ड, ”रुस्‍तम” को दिल के करीब मानते हैं ”खिलाड़ी” कुमार

बॉलीवुड के ‘खिलाड़ी’ अक्षय कुमार को फिल्‍म ‘रुस्‍तम’ के लिए सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता का राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार मिला है. कंटेंट और कमर्शियल फिल्मों के बीच बखूबी संतुलन बना रहे अक्षय कुमार इस फिल्म को अपने दिल के बेहद करीब मानते हैं. अक्षय राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार मिलने पर बेहद खुश हैं उन्‍होंने सोशल मीडिया पर अपनी खुशी जाहिर की […]

बॉलीवुड के ‘खिलाड़ी’ अक्षय कुमार को फिल्‍म ‘रुस्‍तम’ के लिए सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता का राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार मिला है. कंटेंट और कमर्शियल फिल्मों के बीच बखूबी संतुलन बना रहे अक्षय कुमार इस फिल्म को अपने दिल के बेहद करीब मानते हैं. अक्षय राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार मिलने पर बेहद खुश हैं उन्‍होंने सोशल मीडिया पर अपनी खुशी जाहिर की है. ‘रुस्‍तम’ की रिलीज से पहले हमारी संवाददाता उर्मिला कोरी ने अक्षय कुमार से विशेष बातचीत की थी. पेश है बातचीत के कुछ अंश…

‘रुस्तम’ को हाँ कहने की क्या वजह थी ?

– मुझे इस फिल्म की स्क्रीनप्ले, स्क्रिप्ट और रियल लाइफ से जुड़ा होना पसंद आया. मुझे जहाँ तक लगता है ऐसी स्क्रिप्ट नहीं लिखी गयी है. अक्सर हमारी फिल्मों में दिखाया गया है कि आदमी जब रिश्ते में फिसल जाता है किसी दूसरी औरत के चक्कर में चला जाता है उसकी पत्नी फिर उसको संभालती है लेकिन इस फिल्म में एक पति वह जिम्मेदारी निभा रहा है. पति को ही क्यों हमेशा दूसरा मौका मिले पत्नियों को भी मिलना चाहिए यह फिल्म इसी बात को दर्शाती है इसलिए मैंने इस फिल्म को हाँ कहा. लेड़ीज इस फिल्म को बहुत पसंद करती है. यह फिल्म देश में तलाक लेने वाले पति पत्नी को ज़रूर सोचने पर मजबूर करेगी.

इस फिल्म में आप पारसी के किरदार में हैं. आमतौर पर बॉलीवुड में पारसी के किरदार को एक सीमित तरीके से ही सामने लाया गया है.

– मेरी इस फिल्म को आपको अलग अंदाज में पारसी नजर आएंगे. मेरे कई दोस्त पारसी है. मेरी मैनेजर भी पारसी है. पारसी कम्युनिटी के बारे में जितना कहे कम है. कमाल की कम्युनिटी है. हमारे देश को बहुत कुछ इस कम्युनिटी ने दिया है. टाटा, माणिक शाह, गोदरेज, भाभा एटोमिक सेंटर है. ऐसे कई नाम है. इनके धर्म की बात करूं तो वह भी बहुत कमाल का है. यह ऐसा पहला धर्म होगा जो कहता हैं कि आप पैसों के पीछे भागो लेकिन जब पैसे आए तो लोगों की मदद करो. मुझे बहुत अच्छा लगा इनकी यह सोच. जमकर मेहनत करो. खूब पैसे कमाओं लेकिन उस पैसे का इस्तेमाल लोगों के भले के लिए करो.

नानावती केस पर आधारित फिल्मों में विनोद खन्ना और सुनील दत्त भी नज़र आ चुके हैं ऐसे में आप तुलना के लिए कितने तैयार हैं.

– कंपेयर तो आप ही करते हैं. मैं तो नहीं कर सकता हूं. इन लोगों ने अलग अंदाज में किया था. मैंने अलग किया है. उनकी फिल्में तो सफल रही थी. मेरा 12 तारीख को सक्सेस आएगा. मैं इम्तिहान की घड़ी पर खड़ा हूं. वैसे नानावती केस पर यह फिल्म नहीं बनायी गयी है. इस फिल्म की कहानी चार अलग अलग केस पर है. अलग अलग जगहों की है. अलग अलग इंसानों की कहानी है. हां सच घटनाओं से प्रेरित है. बहुत रिसर्च टीम ने किया है.

इस फिल्म में आप अपने देश को प्यार करते हैं लेकिन आप देश के कानून के गुनाहगार भी हैं. ऐसे में किरदार को परदे पर निभाना कितना मुश्किल था.

– टफ मेरे लिए नहीं होता है. ये स्क्रीनप्ले लिखते हैं. जो देशभक्त दिखाते हैं और गुनहगार भी उनके लिए परेशानी होती है. मुझे तो बस करना था.

इस फिल्म में एक बार फिर नए निर्देशक टीनू विक्रम के साथ हैं.

– टीनू विक्रम मेरे लिए नया नहीं है. वह अब्बास मस्तान के अस्सिटेंट हुआ करते थे. स्पेशल छब्बीस में भी वह नीरज पांडे के असिस्टेंट थे. वह बहुत मेहनती इंसान है. मैंने फिल्म देखी है. मुझे वह पसंद आयी है.

आप दो तरह की फिल्में करते हैं कंटेंट और कमर्शियल. इस संतुलन को कितना ज़रूरी मानते हैं.

– संतुलन ज़रूरी है. इसी संतुलन ने पिछले पांच सालों में मेरे कैरियर ग्राफ को खास बनाया है. दर्शक दोनों ही फिल्मों के हैं. रुस्तम के दर्शक अलग हैं लेकिन हाउसफुल के दर्शक भी आएंगे तो खुशी होगी. इस तरह की फिल्मों का बाजार पहले नहीं था लेकिन बदलते वक्त के साथ इनका मार्केट न सिर्फ बना है बल्कि बढ़ता जा रहा है. स्पेशल छब्बीस 85, हे बेबी 92, एयरलिफ्ट 127 की कमाई थी. किनको पता था कि कुवैत में क्या हुआ था लेकिन उस फिल्म ने बताया. लोग शिक्षित हो रहे हैं वो भी कमर्शियल और मनोरंजक फिल्म से. इससे अच्छा क्या हो सकता है.

आपको आज के जमाने का मनोज कुमार कहा जाता है.

– मैं उनके साथ कंपेयर नहीं होना चाहता हूं. उन्होंने देशभक्ति की भावना वाली कई महान और अमर फिल्मे की है. मैंने अब तक ऐसा कुछ भी नहीं किया है. इसके अलावा मुझो नहीं लगता कि मनोज कुमार ने कभी ढिशूम जैसे कोई फिल्म की है या हाउसफुल की तरह. मैं हर तरह की फिल्में करना पसंद करता है. मैं एक जॉनर में नहीं घूमता हूं. मैं बदलता रहता हूं. मेरी इमेज एक्शन हीरो की रही है लेकिन ‘ढिशूम’ में मैंने गे का किरदार निभाया है.मैं खुद को एक इमेज में नहीं बाँध सकता हूँ.

आप अपनी जर्नी को किस तरह से देखते हैं. एक एक्टर के तौर पर आपकी क्या खामियां और खासियत है.

– किसी चीज का मलाल नहीं है. इत्तेफाक की बात है इंडस्ट्री में आ गया और अच्छा किया. बिना किसी रिग्रेट के देखता हूं. मेरे जूते कोई भी पहनना चाहेगा. मैं हल्का सा भी मलाल रखूंगा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा कि जो मिला है. वह बहुत है. बहुत काम करना है. कभी कभी सोचता हूं कि मुङो अपनी आवाज पर और काम करना है. अपनी एक्टिंग एबि लिटी पर करना है.

सफलता को किस तरह से लेते हैं

– सफलता को मैं ज्यादा सीरियसली नहीं लेता है. सफलता आज हैं कल नहीं है. मैंने असफलता का लंबा दौर देखा है. लगातार 13 से 14फिल्में फ्लॉप हुई थी. दो दो साल तक मैंने एक सफल फिल्म का इंतजार किया है. लाइफ में अपस एंड डाउन होता रहता है.

जैसा कि आपने खुद कहा कि आप मीनिंगफुल और कमर्शिय़ल दोनों में बैलेंस बनाकर चल रहे हैं तो कोई ऐसा जॉनर बचा है जिसको करने की ख्वाहिश है.

– मैं हॉरर कामेडी करना चाहता हूं. जैसे मैंने भूल-भलैया की थी. फिर वैसी मिली नहीं है. दो अलग अलग इमोशन जुड़े होते है. डर है और दूसरी तरफ कॉमेडी. ये दो इमोशन एक साथ आते नहीं है.यही बात इस जॉनर को खास बना जाती है. भुल भुलैया में मोंजोलिका के किरदार से डर लगता है लेकिन अगले ही पल हंसी भी आती थी कि अब क्या होगा. महमूद साहब को इसमे महारत हासिल थी. उन्होंने अपने कैरियर में इस जॉनर को परिभाषित करती हुई दो तीन फिल्में ऐसी की थी.

एक किरदार से दूसरे किरदार में फिट होना कितना सहज आपके लिए होता है.

– मेरे लिए बहुत आसान रहता है क्योंकि मैं नहीं समझता हूं कि 15 मिनट से ज्यादा मूड़ को बदलने में समय लगता है. हम एक्टर हैं. इतना समय नहीं लगना चाहिए जनाब. झूठ है जो कहता है कि एक महीना मुझे लगता है.

आप इंडस्ट्री के उन चुनिंदा कलाकारों में से हैं जो लोगों की बहुत मदद भी करते हैं लेकिन आपका यह पक्ष आप जगजाहिर नहीं करते हैं. इसकी पीछे कुछ खास वजह है क्या.

– मैंने इसके बारे में सोचा नहीं है लेकिन हां मुझे जो करना है वो करना है. मैं पब्लिसिटी के लिए नहीं करता हूं. अच्छाई की पब्लिसिटी कर उसको अपना प्लस प्वाइंट नहीं बनाना चाहता हूं. किसी को सौ रूपये दूं तो बोलूं तू बाहर जा कर इंटरव्यू दे. मेरी तारीफ कर. किसी को पैसे देकर बात करना गलत है. वूमन सेल्फ डिफेंस चलाता हूं उसके लिए बात करता हूं. उसके बारे में आप जितना बात करोगे. मैं करूंगा. आज के दौर में लड़कियां देर रात काम कर घर जाती हैं. उन्हे पता होना चाहिए कि गलत वक्त आ जाए तो क्या करना है उस वक्त है. वैसे इंडस्ट्री में कई ऐसे एक्टर हैं. जो लोगों की बहुत परवाह करते हैं. उनकी मदद करते हैं. मैं सलमान पर गर्व करता हूं. वह इतना लोगों के बारे में सोचते हैं.

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