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भारत से ईरान पहुंचा 10 मिलियन फारसी पांडुलिपियों का अनमोल खजाना, 700 साल पुराना इतिहास अब शोधकर्ताओं के लिए खुला

Iran Persian Manuscripts: ईरान और भारत की ऐतिहासिक पांडुलिपियां अब ISC में डिजिटल रूप में सुरक्षित. नूर माइक्रोफिल्म सेंटर ने 10 मिलियन दस्तावेज संग्रहित किए, जिनमें अद्वितीय ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जानकारी शामिल है. शोधकर्ता अब इन दस्तावेजों तक आसानी से पहुंच सकते हैं, जो ईरान की सांस्कृतिक धरोहर और इस्लामी दुनिया के अध्ययन को मजबूती देंगे.

Iran Persian Manuscripts: रविवार को ISC में एक खास उद्घाटन समारोह आयोजित किया गया, जिसमें ISC के प्रमुख मोहम्मद मेहदी अलावियनमेहर ने कहा कि ईरान और अन्य देशों से एकत्रित पांडुलिपियां ISC के डेटाबेस को मजबूत बनाने वाले बेहद अहम स्रोत हैं. उन्होंने बताया कि इन दस्तावेजों को डिजिटल और माइक्रोफिल्म दोनों रूपों में सुरक्षित किया गया है, ताकि शोधकर्ता आसानी से इन्हें देख और इस्तेमाल कर सकें.

Iran Persian Manuscripts in Hindi: ईरान और भारत के ऐतिहासिक रिश्ते

अलावियनमेहर ने ईरान और भारत के लंबे ऐतिहासिक संबंधों की भी चर्चा की. उन्होंने बताया कि पिछले 800 सालों में ईरानी भारत में शासन और सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल रहे. उस दौरान फारसी भाषा भारत में संदर्भ और वैज्ञानिक भाषा के रूप में इस्तेमाल होती थी. इस समय के कई मूल्यवान दस्तावेज सुरक्षित रह गए हैं, जो अब ISC में शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध होंगे.

नूर माइक्रोफिल्म सेंटर का योगदान

इन पांडुलिपियों को मेहदी खजाहपीरी, नूर इंटरनेशनल माइक्रोफिल्म सेंटर के संस्थापक ने संग्रहित किया था. अलावियनमेहर ने कहा कि इन दस्तावेजों का ISC में समेकन ईरान और इस्लामी दुनिया के शोधकर्ताओं के लिए बड़ा अवसर है. यह कदम ईरान की सांस्कृतिक पहचान को जीवित रखने और संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है.

दस्तावेजों की सुरक्षा और डिजिटलकरण

खजाहपीरी ने पांडुलिपियों की सुरक्षा की अहमियत पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि अगर हम आज इन दस्तावेजों की सुरक्षा नहीं करेंगे, तो आने वाली पीढ़ियां हमें इसके लिए दोष देंगी. उन्होंने बताया कि भारत के तेलंगाना में लाखों फारसी दस्तावेज 700 साल से कीड़ों और अन्य नुकसान से खतरे में थे. उन्होंने बताया कि अब 10 मिलियन से अधिक फारसी पांडुलिपियां भारत से संग्रहित और डिजिटल की जा चुकी हैं, जिनमें से 1 लाख दस्तावेज अब भौतिक रूप में मौजूद नहीं हैं. (Iran Persian Manuscripts 10 million Treasure From India Now Available For Researchers in Hindi)

चुनौतियां और कठिनाइयों का सामना

खजाहपीरी ने बताया कि कई बार दस्तावेजों तक पहुंचना आसान नहीं था. उदाहरण के तौर पर, एक मठ पुस्तकालय में 7,000 पांडुलिपियां पहले बंद थीं. लगातार प्रयास और धैर्य से उन्हें डिजिटल किया गया.  नूर माइक्रोफिल्म सेंटर की पांडुलिपि पुनर्स्थापना क्षमता विश्व में बेमिसाल है. उन्होंने यह भी बताया कि अस्तान कुद्स रजवी में 80,000 पांडुलिपियों को सफलतापूर्वक बहाल किया गया.

ISC और शोधकर्ताओं के लिए अवसर

खजाहपीरी ने कहा कि अब ये दस्तावेज ISC में समेकित किए जाएंगे और सभी शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध होंगे. इनमें कई अनोखे स्रोत हैं जो ऐतिहासिक जानकारी की कमी को पूरा कर सकते हैं. इनमें फारस की खाड़ी में ईरान के अधिकार, क़ाजार काल के व्यापार और राजनीतिक संबंध जैसी महत्वपूर्ण जानकारियां शामिल हैं. उन्होंने उम्मीद जताई कि ये पांडुलिपियां नई ऐतिहासिक शोध के लिए रास्ता खोलेंगी और ईरान को इस्लामी लिखित विरासत का केंद्र बनाएंगी.

ISC का इतिहास और उद्देश्य

ISC की स्थापना अक्टूबर 2008 में इस्लामी देशों की उच्च शिक्षा और शोध पर चौथे सम्मेलन में हुई थी. उसी वर्ष ईरान के विज्ञान, शोध और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ISC को स्वतंत्र शोध संस्थान के रूप में स्थापित किया. आज ISC पूरे इस्लामी देशों में काम करता है, जिसमें दक्षिण-पूर्व एशिया, अरब देश, गैर-अरब अफ्रीकी राज्य, मध्य एशिया और काकेशस, पश्चिम एशिया, यूरोप और दक्षिण अमेरिका शामिल हैं. ISC का मुख्य उद्देश्य इन देशों के वैज्ञानिक स्तर को ट्रैक करना, विश्वविद्यालयों और देशों को रैंक करना, विज्ञान और तकनीक रिपोर्ट तैयार करना और शोध कार्यों की क्षमता बढ़ाना है.

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Govind Jee
Govind Jee
गोविन्द जी ने पत्रकारिता की पढ़ाई माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल से की है. वे वर्तमान में प्रभात खबर में कंटेंट राइटर (डिजिटल) के पद पर कार्यरत हैं. वे पिछले आठ महीनों से इस संस्थान से जुड़े हुए हैं. गोविंद जी को साहित्य पढ़ने और लिखने में भी रुचि है.

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