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राधा कुमार लेखिका एवं विश्लेषक कश्मीर के पिछले पंद्रह-बीस सालों के इतिहास पर नजर डालें, तो छिटपुट आतंकी हमले होते रहे थे. लेकिन, धीरे-धीरे ऐसे हमले घटते गये थे. बड़े हमले भी हुए, लेकिन कुछ वर्षों का अंतराल बना रहा. साल 2007-08 के बाद सेना पर बड़े हमले कम होते गये, खासकर साल 2009 से […]

राधा कुमार
लेखिका एवं विश्लेषक
कश्मीर के पिछले पंद्रह-बीस सालों के इतिहास पर नजर डालें, तो छिटपुट आतंकी हमले होते रहे थे. लेकिन, धीरे-धीरे ऐसे हमले घटते गये थे. बड़े हमले भी हुए, लेकिन कुछ वर्षों का अंतराल बना रहा. साल 2007-08 के बाद सेना पर बड़े हमले कम होते गये, खासकर साल 2009 से लेकर 2013 तक कैजुअल्टीज कम हुईं. साल 2014 के बाद से एक बार फिर से ये आंकड़े बढ़ना शुरू हुए. सेना पर छोटे हमले बढ़े, आम नागरिकों की मौतें ज्यादा होने लगीं. इन बातों को ध्यान से देखने की जरूरत है.
पुलवामा में जो हुआ है, वह भयानक है. इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक सामग्री गाड़ी के साथ काफिले के बीच में पहुंच गयी और किसी को भनक नहीं लगी. खबर है कि इसे स्थानीय स्तर पर बनाया गया था. पुलवामा के इलाके फौज और पुलिस की बहुत सारी टुकड़ियां हमेशा रहती हैं और सक्रिय रहती हैं. फिर क्यों नहीं इसका पता चल सका पहले, यह सवाल है.
राज्यपाल ने खुद स्वीकार किया है कि हमसे गलती हुई है. पुलिस ने एक हफ्ते पहले ही आतंकी हमले की चेतावनी दी थी. इस चेतावनी को सीआरपीएफ और राज्यपाल ने क्यों संज्ञान में नहीं लिया? इस समय सिक्योरिटी हेड खुद राज्यपाल ही हैं. फिर इतनी बड़ी गलती कैसे हो गयी? नागरिक वाहनों को क्यों इजाजत दी गयी काफिले के गुजरने के दौरान? आंकड़े बताते हैं कि जब शांति प्रक्रिया जारी थी और बातचीत चल रही थी, सेना पर हमले भी घटते गये और लोग भी कम हताहत हुए थे.
लेकिन, बातचीत खत्म कर दी गयी और अब फिर से वही खूनी मंजर जारी है. सबसे बड़ी त्रासदी यही है कि सरकार बातचीत ही नहीं करना चाहती, जिसका परिणाम हिंसक और वीभत्स रूप में हमारे सामने है, हमारे इतने सुरक्षाबलों की जानें जा रही है, आम नागरिक मारे जा रहे हैं. इंसानी जान की इतनी सस्ती कीमत कभी नहीं होनी चाहिए. सरकार को अपनी राजनीति के लिए सेना के जवानों को तबाह नहीं करना चाहिए.
देश की जनता को खड़े होकर कहना चाहिए, आपको एक भी जान के साथ खिलवाड़ करने का हक नहीं है. देश में कोई ऐसा विपक्ष भी मौजूद नहीं है, जो शांति कायम करने के लिए प्रयास करे और बातचीत शुरू करे. बदले की बात करने से किसी का फायदा नहीं होने वाला. खैर, सरकार से इतनी उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि सुरक्षाबलों को मजबूत वाहन दें, उन्नत श्रेणी के सुरक्षा कवच प्रदान करेंं और सुरक्षा प्रोटोकॉल को सख्ती से लागू करायें.
Prabhat Khabar Digital Desk
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