लार्स वान ट्रीयर ने फिल्म ‘निम्फोमैनिएक’ में जीवन के अंधेरे और आत्माविहीन पक्षों की चीर-फाड़ की है, जिसमें सेक्स और हत्या की राजनीति, दया, त्याग और मानसिक स्वास्थ पर सवाल उठाये गये हैं.
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मानवीय सभ्यता का नरक
लार्स वान ट्रीयर ने फिल्म ‘निम्फोमैनिएक’ में जीवन के अंधेरे और आत्माविहीन पक्षों की चीर-फाड़ की है, जिसमें सेक्स और हत्या की राजनीति, दया, त्याग और मानसिक स्वास्थ पर सवाल उठाये गये हैं. डेनमार्क के लार्स वान ट्रीयर इस समय विश्व के सबसे महत्वपूर्ण फिल्मकारों में हैं. चार-पांच साल पहले वे साढ़े पांच घंटे की […]
डेनमार्क के लार्स वान ट्रीयर इस समय विश्व के सबसे महत्वपूर्ण फिल्मकारों में हैं. चार-पांच साल पहले वे साढ़े पांच घंटे की लंबी फिल्म ‘निम्फोमैनिएक’ में सेक्स के अतिरेकी दृश्यों के कारण चर्चा में थे. सन् 2011 में हिटलर के प्रति सहानुभूति वाले बयान के कारण उन्हें कान फिल्म समारोह में प्रतिबंधित कर दिया गया था. जबकि कान में उनकी फिल्म ‘डांसर इन द डार्क’ (2000) को ‘पॉम डि ओर पुरस्कार’ मिल चुका है. उन्होंने अपने जर्मन मूल के होने के सवाल पर कहा था- ‘मैंने पाया कि मैं वास्तव में एक नाजी था, जिससे मुझे कुछ खुशी भी मिली. मैं हिटलर को समझ सकता हूं. उसने गलत काम किया था, पर अंतिम दिनों में मैं उसे अपने बंकर में अकेला बैठा पाता हूं. मुझे उससे सहानुभूति है. ओके, मैं नाजी हूं.’
सौ से ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित लार्स वान ट्रीयर की सात साल बाद कान फिल्म समारोह में वापसी हुई है. उनकी नयी फिल्म ‘द हाउस दैट जैक बिल्ट’ देखते हुए वीरेन डंगवाल की मशहूर कविता ‘राम सिह’ की पंक्तियां याद आती हैं- ‘वे स्वयं रक्तपात करते हैं और मृत्यु का शोकगीत गाते हैं/ वे हत्या को कला में बदल देते हैं.’ इस फिल्म का नायक जैक (मैट डिलॉन) एक सीरियल किलर है, जो हर हत्या को आर्टवर्क की तरह देखता है. फिल्म एक साइकोलाॅजिकल थ्रिलर है.
वाशिंगटन में सत्तर और अस्सी के दशक की बारह साल की इस कहानी में नायक एक के बाद एक 60 हत्याएं कर चुका है, जिनमें ज्यादातर स्त्रियां हैं. वह पांच घटनाओं (अध्यायों) में एक अनजान चरित्र वर्ज (ब्रूनो गैंज) को अपनी कहानी सुनाता है. हर हत्या के बाद वह कलात्मक चित्र खींचकर अपनी स्टडी टेबल की दीवार पर चिपका देता है और शव को तथा कभी-कभी उसके अंगों को काटकर स्मारिका या मेमेंटो की तरह अपने घर में बने फ्रीजर रूम में सजा देता है. यह देखना विस्मयकारी और भयावह है कि उसका फ्रीजर रूम मार डाले गये इंसानों की लाशों का एक कलात्मक संग्रहालय बन चुका है. एक बार तो एक औरत की हत्या के बाद लाश को फ्रीजर रूम में लाने पर जब वह उसकी फोटो देखता है और फोटो की गुणवत्ता से संतुष्ट नहीं होता, तो वापस लाश को उसके घर ले जाकर ड्राइंगरूम में विभिन्न मुद्राओं में दोबारा फोटो खींचता है.
जैक इंजीनियर है, पर खुद को आर्किटेक्ट कहता है. वह बहुत बुद्धिमान और तर्कशील इंसान है. फिल्म के एक अनजान चरित्र वर्ज से लगातार उसका संवाद चलता रहता है, जिसमें वह बच्चों की तरह आत्मदया के साथ अपनी हत्या संबंधित विचारधारा को न्यायोचित्त ठहराने की दयनीय कोशिश करता है. वह नदी किनारे लकड़ी का एक घर बनाना चाहता है, पर समस्या यह है कि वह अंत तक उस घर का डिजाइन नहीं बना पाता.
पांच औरतों की निर्मम हत्याओं की कहानी में हिटलर के कंसंट्रेशन कैंप से लेकर अमेरिकी सभ्यता के छद्म पर लगातार बहसें हैं. अंतिम दृश्य में वह फ्रीजर रूम में कैद करके लाये गये कुछ मर्दों को एक लाइन में बांधकर एक ही गोली से ऐसे मारना चाहता है कि वह गोली सभी की खोपड़ी को चीरती हुई निकल जाये. तभी हम उस अनजान चरित्र वर्ज को देखते हैं, जो दरअसल जैक की अंतरात्मा का प्रतीक है. उसी समय पुलिस उसके घर पर धावा बोलती है. वर्ज उसे एक ऐसी गुफा में ले जाता है, जिसमें आग का विशाल कुआं है.
लार्स वान ट्रीयर ने इस फिल्म में जीवन के अंधेरे और आत्माविहीन पक्षों की चीर-फाड़ की है, जिसमें सेक्स और हत्या की राजनीति, दया, त्याग और मानसिक स्वास्थ पर सवाल उठाये गये हैं कि हमने मानवीय सभ्यता को किस नरक में पहुंचा दिया है.
अजित राय,
संपादक, रंग प्रसंग, एनएसडी
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