इसे लेकर वन विभाग ने रेलवे के प्रति नाराजगी जतायी है. वन विभाग का कहना है कि हरेक बैठक में रेलवे को चेताया जाता है कि वह डुवार्स इलाके में हाथी कारिडोर में रात में मालगाड़ियों का परिचालन नहीं करे, लेकिन रेलवे मानता नहीं है. इसके साथ उक्त ट्रेन की रफ्तार को लेकर भी रेलवे और वन विभाग के बीच टकराव शुरू हो गया है.
जलदापाड़ा राष्ट्रीय उद्यान के असिस्टेंट वाइल्ड लाइफ वार्डन विमल देवनाथ ने आरोप लगाते हुए कहा कि उस रेल लाइन पर कहीं कोई मोड़ नहीं है. बिल्कुल सीधा रास्ता है. ऐसे में ट्रेन ड्राइवर हाथी को कैसे नहीं देख पाया, इसकी जांच किये जाने की जरूरत है. एक एफआइआर दर्ज करायी जायेगी, जिसके बाद ही जांच शुरू हो पायेगी. श्री देवनाथ ने यह भी कहा कि रेलवे के साथ पिछली बैठक में यह निर्णय हुआ था कि लोकल मालगाड़ियां तो चलेंगी, लेकिन दूरगामी मालगाड़ियां नहीं चलेंगी. फिर रात में मालगाड़ी कैसे जा रही थी, इसकी खोजबीन की जायेगी. इलाके के स्थानीय लोग भी जानते हैं कि रात करीब ढाई बजे एक मालगाड़ी गयी है. उन्होंने बताया कि इस ट्रेन की रफ्तार की भी जांच-पड़ताल की जायेगी. इस पूरे मामले की जानकारी उच्च अधिकारियों को दी गयी है. उनसे जैसा निर्देश मिलेगा उसी के मुताबिक आगे कदम उठाया जायेगा.
रेलवे अलीपुरद्वार डिवीजन के एडीआरएम आर केमाकोयानी ने इस बारे में कहा कि अनाज लदी ट्रेन असम की ओर जा रही थी. वन विभाग की ओर से रेल लाइन के आसपास हाथियों की किसी गतिविधि के बारे में सतर्क नहीं किया गया था. हाथी रेल लाइन पर बिल्कुल अचानक चला आता है. ट्रेन चालक के कथनानुसार हाथी को देखते ही उसने जरूरी ब्रेक लिया. उस समय ट्रेन की रफ्तार 40-50 किलोमीटर प्रति घंटा थी. उन्होंने बताया कि हाथी सिर्फ एक था और शायद लाइन को पार कर रहा था. चालक ने जिस समय हाथी को देखा, ट्रेन से उसकी दूरी यही कोई 40 मीटर रही होगी. चालक ने तुरंत ब्रेक खींचा लेकिन आखिरकार वह हाथी को बचा नहीं पाया.
एडीआरएम ने आरोप लगाया कि दलगाव रेंज रेल लाइन और उसके आसपास हाथी के होने पर पहले से ही सतर्क कर देता है. उसी के मुताबिक ट्रेन चालकों को रफ्तार कम रखने का निर्देश दिया जाता है. लेकिन दुर्घटना वाले दिन वन रेंज ने सतर्कता का कोई संदेश नहीं दिया था.