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अवैध खनन ने लगवा दी यमुना नदी में स्नान पर रोक, शामली जिला प्रशासन ने घाटों पर लगा दिए बोर्ड

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली में अवैध खनन ने से यमुना नदी में लोगों का प्रवेश करना भी खतरनाक हो गया है. 15 दिन के अंदर आठ लोगों की इसमें डूबकर मौत हो गई है.

लखनऊ: यूपी के शामली में एक 30 वर्षीय व्यक्ति के शुक्रवार को अवैध रेत खनन के कारण यमुना नदी के गहरे गड्ढे में डूबने की आशंका है. पिछले 15 दिनों में इस तरह की यह आठवीं घटना है और अभी तक दो शव बरामद नहीं किए जा सके हैं. कुल मौतों में से पांच नाबालिग हैं. हाल की घटनाओं को देखते हुए जिला प्रशासन ने अब लोगों के यहां नदी में नहाने पर रोक लगा दी हैं. उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (शामली) विजय शंकर मिश्रा ने कहा,” घाटों पर स्नान करने पर प्रतिबंध लगाने के लिए साइनबोर्ड लगाए गए हैं.”

सहायक पुलिस अधीक्षक ओपी सिंह ने कहा कि पुलिस यह सुनिश्चित कर रही है कि लोग यहां नदी के तट पर स्नान न करें. शुक्रवार के पीड़ित की पहचान उदपुर गांव के बिंदर कुमार के रूप में हुई है. उसके भाई संजू कुमार ने कहा, “मेरे भाई की मवेशियों को नहलाने के दौरान गहरे गड्ढे में गिरने से मौत हो गई. अधिकारी मौके पर निरीक्षण के लिए पहुंचे, लेकिन कोई तलाशी अभियान नहीं चलाया गया. स्थानीय ग्रामीणों और गोताखोरों ने शाम तक शव की तलाश की, लेकिन वह नहीं मिला.”

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3 जून को दो भाई यमुना में डूबे

3 जून को को तरावड़ी गांव के हरियाणा के एक किसान मेजर सिंह, अपने परिवार के साथ एक धार्मिक अनुष्ठान के तहत नदी में स्नान करने के लिए यूपी आए थे. स्नान के दौरान अपने दोनों बेटों-सुशांत (15) और सागर (18) को खो दिया. मेजर सिंह ने बताया, कि “मेरे लिए यह बहुत दर्दनाक था कि मैंने अपने बच्चों को अपनी आंखों के सामने डूबते देखा. एक शव 5 जून को और दूसरा दो दिन बाद बरामद किया गया. “

माफिया की गतिविधि से लोगों के जीवन को खतरा बढ़ा

नाई नगला गांव के पूर्व ग्राम प्रधान महिपाल सिंह ने अधिकारियों पर खनन माफिया के साथ हाथ मिलाने का आरोप लगाया है.मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि माफिया द्वारा नदी में अवैध खनन बढ़ गया है. माफिया की गतिविधियां बढ़ जाने से लोगों के जीवन को खतरा बढ़ा है.

खननकर्ता नियमों की धज्जियां उड़ा रहे

नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा, “रेत खनन के लिए सरकार द्वारा निविदाएं जारी की जाती हैं, लेकिन खननकर्ता नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं और क्षेत्र को तबाह कर देते हैं, जिससे विशेष रूप से मानसून से कुछ महीने पहले अधिक निकासी हो जाती है। प्री-मानसून के दौरान, गतिविधि बढ़ जाती है क्योंकि बारिश के मौसम में नदियों के उफनने के कारण रेत निकासी असंभव हो जाती है.”

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