सिमडेगा. नगर परिषद द्वारा बनाये गये 42 नवनिर्मित दुकानों का आवंटन अब तक अधर में लटका है. तीन माह से अधिक समय गुजरने के बावजूद लॉटरी प्रक्रिया नहीं करायी गयी है. इस बीच लगभग चार करोड़ रुपये नगर परिषद के पास ड्राफ्ट के रूप में फंसे हैं. जानकारी के अनुसार कई आवेदकों ने ब्याज पर रुपये लेकर फॉर्म भरे थे. लेकिन लगातार तारीख निकलने के बावजूद लॉटरी न होने से लोग परेशान हैं. अब जिले के प्रभावशाली नेता द्वारा अपने चहेतों के नाम दुकान आवंटन के लिए दबाव बनाने की चर्चा तेज हो गयी है. इससे पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो गये हैं. पूर्व में विधायक मद से बनी दुकानों की भी हो चुकी है लॉटरी : याद दिला दें कि पहले भी नगर परिषद ने दो बार समय सीमा के अंदर पूरी तरह पारदर्शी तरीके से लॉटरी आयोजित की थी. इतना ही नहीं पिछली बार विधायक मद से बनी दुकानों के लिए भी तत्कालीन उपायुक्त विजय कुमार सिंह को विधायक द्वारा सूची सौंपी गयी थी. किंतु तत्कालीन उपायुक्त विजय कुमार सिंह ने किसी तरह की सिफारिश को दरकिनार कर लॉटरी के जरिये दुकानों का बंटवारा कराया था. गड़बड़ी हुई, तो हाई कोर्ट का रुख करेंगे: आवेदक लेकिन इस बार स्थिति उलट है. बार-बार तारीख घोषित होने के बावजूद लॉटरी नहीं हो रही. इससे साफ अंदेशा जतायी जा रही है कि राजनीतिक दबाव और सिफारिशों का खेल चल रहा है. आवेदकों का कहना है कि अगर पारदर्शी लॉटरी नहीं करायी गयी, तो वे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने को मजबूर होंगे. नियमों के तहत जल्द लॉटरी करायी जाये: लोगों की मांग है कि दुकानों का आवंटन सिर्फ और सिर्फ एनआइटी के तहत तय नियमों के अनुसार होना चाहिए. अगर नगर परिषद परिषद इस पर अमल नहीं करता और दबाव में आकर चहेतों को फायदा पहुंचाता है, तो यह न केवल नियमों का उल्लंघन होगा, बल्कि आम आवेदकों के साथ सरासर अन्याय होगा. बहरहाल अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि प्रशासन पारदर्शिता का रास्ता चुनता है या फिर नेताओं की सिफारिशों के आगे झुक कर अवैध तरीके से दुकानों का बंटवारा करता है.
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