रांची. संत अन्ना धर्मसंघ की संस्थापिका माता मेरी बेर्नादेत्त संत बनने की राह पर हैं. उन्होंने यीशु को पहचाना और उसकी राह पर चल पड़ीं. परमेश्वर के प्रेम को सेवा के साथ जोड़ा. गरीबों और लाचारों की सेवा की. ये बातें आर्चबिशप विंसेंट आईंद ने कहीं. वे रविवार को संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ की संस्थापिका मदर मेरी बेर्नादेत्त की पुण्यतिथि के अवसर पर समारोही ख्रीस्तयाग में मुख्य अनुष्ठक के रूप में बोल रहे थे.
विदेशों से आयी लॉरेटों सिस्टर्स से प्रभावित हुईं माता बेर्नादेत्त
आर्चबिशप ने कहा कि यह सब कैसे हुआ. माता बेर्नादेत्त ने विदेशों से आयी लॉरेटों सिस्टर्स को देखा. वे उनकी सेवा भावना से बहुत प्रभावित हुईं. उन्होंने सोचा कि यदि बाहर से रांची आकर सिस्टर्स और फादर इतनी सेवा कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं? इसी सवाल से उस प्रेरणा की शुरुआत हुई जिससे संत अन्ना धर्मसंघ का जन्म हुआ. जिस तरह यीशु ने संत पैत्रुस से कहा कि तुम मुझे प्यार करते हो, तो मेरे मेमनों (लोगों) को चराओ. संत पैत्तुस ने इसे स्वीकार करते हुए अपना जीवन यीशु के लिए समर्पित किया. समारोही ख्रीस्तयाग के दौरान फादर आनंद डेविड, फादर फ्रांसिस मिंज, फादर रेमंड सहित अन्य पुरोहितों ने आर्चबिशप को सहयोग किया. फादर फ्रांसिस मिंज ने संक्षेप में माता मेरी बेर्नादेत्त की संत बनने की प्रक्रिया की जानकारी दी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

