इटकी. इटकी में दशहरा पर्व मनाने का इतिहास बहुत पुराना है. यहां जमींदार परिवार द्वारा राजा एनीनाथ साय की देखरेख में 17वीं सदी में मां भगवती की पूजा अर्चना कर दशहरा पर्व मनाये जाने की परंपरा शुरू की गयी थी, जो आज भी जारी है. इस क्रम में विशेष बात यह रही की सन 1983 में गांव के छह युवक स्वर्गीय सुबोध कुमार सिन्हा, शत्रुघ्न पांडे, रूपनारायण सिंह, स्वर्गीय रोहित साव, जगदीश गोप और स्वर्गीय जनमेजय प्रसाद जायसवाल राजा के वंशज लाल मोहन नाथ शाहदेव द्वारा की जा रही दुर्गा पूजा से प्रभावित होकर स्थानीय महावीर चौक बिड़पी टोला में जुटे और सार्वजनिक दुर्गापूजा समिति का गठन कर उसी बैनर के तले मां भगवती कि प्रतिमा स्थापित कर दुर्गापूजा पंडित रामवृक्ष नारायण पांडे की पुरोहिताई में शुरुआत की. इनमें किसी ने एक छोटी कोठरी की व्यवस्था की, तो दूसरे ने मां भगवती की मूर्ति बनवाने का जिम्मा लिया. वहीं किसी ने साज सज्जा एवं अन्य सामग्री जुटाने की जिम्मेवारी उठायी. और उस समय 1500 रुपये कि लागत से पूजा प्रारंभ की गयी. बाद के वर्षो में कालीचरण महली, बैजनाथ साव, धीरजू महतो, गणेश महतो, डॉ अर्जुन राम द्वारा सहयोग किया गया. वर्तमान में दुर्गा पूजा का स्वरूप और शृंगार अब भव्य तरीके से किया जा रहा है. अभी के समय में इस समिति के अंदर दर्जनों सदस्य सक्रिय रूप से समिति को सहयोग दे रहे हैं. इस समिति की विशेषता है कि यहां चंदा नहीं मांगा जाता है, बल्कि इटकी सहित आसपास के गांव के श्रद्धालु स्वयं अपनी इच्छा से सहयोग राशि समिति के सदस्यों को दे जाते हैं. साथ ही साथ स्थानीय प्रशासन का भरपूर सहयोग समिति को प्राप्त होता रहा है. आज उन उत्साही सदस्यों में से तीन का निधन हो चुका है, किंतु उनके द्वारा शुरू किये गये इस कार्य की चर्चा क्षेत्र में सर्वत्र होती रहती है. करीब 42 वर्ष का इतिहास यह दर्शाता है कि अगर मन में श्रद्धा और विश्वास हो तो कोई भी काम असंभव नहीं है.
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