RINPAS 100 Year Celebration | रांची, मनोज सिंह: रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो-साइकियाट्री एंड एलाइड साइंसेज (रिनपास) झारखंड में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में एक अहम संस्थान है. वैसे तो रिनपास का इतिहास दो शताब्दियों से भी अधिक पुराना है. लेकिन, रांची के कांके में रिनपास की स्थापना को आज 4 सितंबर को 100 वर्ष पूरे हुए.
1795 में बिहार में हुई थी संस्थान की स्थापना
रिनपास की स्थापना का इतिहास 1795 से है. इसकी स्थापना बिहार के मुंगेर शहर में “लूनैटिक असायलम” (मानसिक अस्पताल) के रूप में हुई. इसे 1821 में पटना कॉलेजिएट में स्थानांतरित किया गया. इसके बाद संस्थान को अप्रैल 1925 में नामकुम होते हुए वर्तमान स्थान कांके में स्थानांतरित किया गया. उस वक्त इसका नाम इंडियन मेंटल हॉस्पिटल रखा गया था.
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4 सितंबर को 110 पुरुष मरीज हुए थे भर्ती
कैप्टन जेइ धुंजीभाई इसके पहले अधीक्षक थे. 4 सितंबर 1925 को यहां 110 पुरुष मरीज और 19 सितंबर 1925 को 53 महिला मरीज भर्ती करायी गयीं. धीरे-धीरे यह संस्थान पटना, ओडिशा और ढाका (अब बांग्लादेश) जैसे क्षेत्रों से आनेवाले मरीजों का इलाज करने लगा. एक समय यहां 1968 में संस्थान में 1580 मरीजों के रखने की क्षमता हो गयी. इसमें बिहार के लिए 871, पश्चिम बंगाल के लिए 600, ओडिशा के लिए 75, त्रिपुरा के लिए 3, मिजोरम के लिए 7 और अन्य 9 मरीजों के लिए सीटें आरक्षित की गयी थीं. 1942 में इसी संस्थान से डॉ एलपी वर्मा को भारत में पहले एमडी (मनोचिकित्सा) की डिग्री मिली थी.
जनवरी 1998 में हुआ ‘रिनपास’ नामकरण
स्वतंत्रता के बाद 1958 में इसका नाम बदल कर रांची मानसिक आरोग्यशाला किया गया. इसके बाद यह बिहार राज्य सरकार के अधीन हो गया. 1970 के दशक में संस्थान की स्थिति खराब हो गयी थी. इसके बाद एक जनहित याचिका दायर की गयी. 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को संस्थान को स्वायत्त दर्जा देने का निर्देश दिया. इसे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की निगरानी में रखा. 10 जनवरी 1998 को इसका नाम बदलकर रांची तंत्रिका मनोचिकित्सा एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान (रिनपास) कर दिया गया.
2024-25 में हुआ 71 हजार से अधिक मरीजों का इलाज
वर्तमान में यहां 550 मानसिक रोगियों के लिए इनडोर वार्ड, 50-बेड का नशामुक्ति केंद्र और पुनर्वास के लिए हाफ-वे होम उपलब्ध हैं. शैक्षणिक दृष्टि से संस्थान में मनोचिकित्सा में डीएनबी, क्लिनिकल साइकोलॉजी और मनोरोग सामाजिक कार्य में एमफिल और पीएचडी कोर्स चलाये जा रहे हैं. यह राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग और पुनर्वास परिषद से संबद्ध है. वर्ष 2024-25 में ही संस्थान ने 71,000 से अधिक मरीजों का इलाज किया.
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